अरब सागर का रहन-सहन व टोये-टिब्बे

केरल में जन्मी तथा यमन में नर्स का कार्य करती निमिशा प्रिया को यमन की अदालत ने फांसी की सज़ा सुनाई है तो इसकी गूंज भारत में ही नहीं अपितु दुबई तथा निकटवर्ती संयुक्त अरब देशों में सुनाई देना स्वाभाविक था। विशेषकर दुबई में, जहां 17 दोषियों को 2012 में दुबई की अदालत ने फांसी की सज़ा सुनाई थी, परन्तु वहां रह रहे दानी पुरुष एस.पी. सिंह ओबराय ने ब्लड मनी के 8 करोड़ 50 लाख रुपये पेश करके उन सभी की सज़ा माफ करवा ली थी। यहीं बस नहीं, ओबराय आज तक 142 दोषियों की फांसी की सज़ा माफ करवा चुके हैं। दुबई की सहमति लेकर किए जा रहे ऐसे प्रयासों का यमन की सरकार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा। निमिशा प्रिया को बचाना उसकी गलती से उसे बरी करना नहीं, अपितु यह मामला भारत द्वारा विदेशों में अपने नागरिकों की रक्षा से भी जुड़ा हुआ है।  
धोखाधड़ी तथा दुर्व्यवहार के दोष जिनमें निमिशा का पासपोर्ट ज़ब्त करना, नशीले पदार्थों का इस्तेमाल तथा शारीरिक शोषण शामिल हैं, को गड़बड़ वाले क्षेत्रों में प्रवासी भारतीय श्रमिकों विशेषकर महिलाओं के साथ होती ज़्यादतियों का खुलासा करते हैं। एस.पी. सिंह ओबराय बहुत-से अवसरों पर प्रवासी भारतीयों की मदद के लिए आगे आते रहे हैं। यह ऐसी विरासत है जिसे आज के नेताओं को तेज़ी से कूटनीतिक पहुंच के लिए अपनाना चाहिए क्योंकि विदेशों में बैठे भारतीय नागरिक देश से हमेशा मदद की उम्मीद रखते हैं, जिसे टूटने नहीं देना चाहिए।
यमन में निमिशा प्रिया की फांसी की सज़ा में कुछ दिन शेष बचे हैं, जिस कारण भारत के पास निर्णायक कदम उठाने के लिए समय कम है। 37 वर्षीय निमिशा को अपने यमनी कारोबारी रियाल तलाल अबदो मेहदी की हत्या का देषी करार दिया गया था। सज़ा से बचने के लिए उसने सभी प्रयास कर लिए, परन्तु कोई राहत नहीं मिली। उसकी नियति अंतिम पलों पर किये जाने वाले कूटनीतिक तथा मानवीय हस्तक्षेप विशेषकर पीड़ित के परिवार को अदा की जाने वाली ब्लड मनी (दीयां) पर निर्भर है। भारत सरकार की मजबूरी यह है कि इसके हूती बागियों के साथ कोई कूटनीतिक संबंध नहीं हैं, जिनका इस समय यमन की राजधानी सना पर नियंत्रण है, परन्तु बताया जाता है कि सरकार हर सम्भव मदद पहुंचा रही है। यमन की अंतर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त सरकार के साथ अभी भी कूटनीतिक संबंध चल रहे हैं, परन्तु निमिशा जहां इस समय कैद है, वह क्षेत्र हूती बागियों के प्रभाव में है। भीतरी तौर पर कूटनीतिक प्रयास के लिए अधिक समय नहीं बचा है। निमिशा की कहानी महज़ कानूनी अपराध से नहीं जुड़ी हुई, अपितु शोषण तथा दमन के जटिल हालात से भी जुड़ी हुई है। 
निमिशा की घटना तथा प्रधानमंत्री मोदी की ताज़ा मालदीव यात्रा ने मुझे 50 वर्ष पहले वाला मालदीव याद करवा दिया है, जहां मैं 40 वर्ष रह कर आया था। तब मालदीव की मांग पर भारत ने मेरी डाक्टर पत्नी को वहां की स्वास्थ्य सुविधाओं का जायज़ा लेने के लिए वहां भेजा था और मैं एक मील लम्बे तथा आधा मील चौड़े बकरे की जांघ जैसे इस द्वीप देश के रहन-सहन के तरीके देखने के लिए अपनी पत्नी के साथ वहां चला गया था। 
मालदीव की अत्यन्त विचित्र बातें तो नरेन्द्र मोदी के स्टाफ को किसी मेरे जैसे से पता चलेंगी, जैसे कि वहां पीने के लिए पानी घरों की छतों पर जमा करना पड़ता है। यात्रा करने वाले अपने साथ कुत्ता आदि पालतु जानवर, शराब, हथियार या मूर्ति नहीं ले जा सकते। मालदीव में जन्मे लोगों ने चूहे से बड़ा जानवर नहीं देखा। यदि उन्हें बताना हो कि हाथी कितना बड़ा होता है तो चूहे को हज़ारों गुणा करना पड़ता है। वहां की अविवाहित लड़की बच्चे को जन्म दे सकती है, परन्तु बच्चे के पैदा होने तक अपने घर की चारदीवारी से बाहर नहीं जा सकती तथा बच्चे के पिता का नाम गुप्त रखने पर कोड़े खाती है। वैसे भी वहां पुरुष जितने चाहे विवाह करवा सकता है, परन्तु यदि उसने अपनी ही पत्नी के साथ चौथी बार विवाह करना है तो उसकी होने वाली पत्नी को दो-चार दिन किसी अन्य पुरुष की पत्नी बनना पड़ता है।
यहां के निवासी तो चाहे मुसलमान हैं, परन्तु यहां पर्दे का कोई रिवाज़ नहीं। सुबह-शाम समुद्र के किनारे बेपर्दा सैर करते हैं। यहां के लोग अमीर भी हैं गरीब भी। अमीर लोग दुकानदार हैं या फोटोग्राफर तथा गरीब लोग समुद्र की मछलियां पकड़ कर बेचते हैं। यह भी नोट करने वाली बात है कि समुद्र की लहरें अनेक मछलियों को उछाल कर बाहर फैंक देती हैं, जिन्हें बच्चे तथा बूढ़े उठा लाते हैं। 
हो सकता है कि यदि प्रधानमंत्री अपने से पूर्व के ‘शाही परिवार’ की उपलब्धियों को देखने पुन: मालदीव जाएं तो मुझे भी आधा सदी पहले की और बातें याद आ जाएं। देखें क्या होता है।
अंतिका
(पंजाबी लोक गीतों में भाई-बहन)
बोता बन्न दे पिप्पल दी छावें
मुन्नीयां रंगीन गड्डीयां 
मत्था टेकदां अम्मां दीये जाइये 
बोता भैणे फेर बन्नांगा। 

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