कुपोषण से अधिक मोटापे का शिकार हो रहे बच्च्े

अभी तक बच्चों में कुपोषण की ही चर्चा होती थी लेकिन हालात तेज़ी से बदल रहे हैं। एक ओर जहां बच्चों की बड़ी आबादी कुपोषण का दंश झेल रही है वहीं कड़वा सच यह भी है कि बाज़ारवाद के इस युग में बच्चे अपनी खराब फूड हैबिट के कारण मोटापे के शिकार हो रहे हैं। हाल ही में यूनिसेफ  ने ‘फीडिंग प्रॉफिट—हाउ फूड एनवायरमेन्टस आर फेलिंग चिल्ड्रन’ शीर्षक से वर्ल्ड न्यूट्रिशन रिपोर्ट 2025 जारी की है जो यह बताती है कि दुनिया भर में हर दसवां बच्चा मोटापे से जूझ रहा है। 39 करोड़ बच्चे बढ़ते वजन से परेशान हैं। 18.8 करोड़ बच्चे बढ़ते मोटापे से त्रस्त हैं। इतिहास में पहली बार है जब दुनिया भर में बच्चों और किशोरों में मोटापे का स्तर कुपोषण के सबसे आम रूप यानी कम वजन से जूझ रहे बच्चों से ज्यादा हो गया है। 2000 से अब तक उन बच्चों (पांच से 19 वर्ष) की संख्या घटी है जो कम वजन से जूझ रहे थे। वहीं दूसरी तरफ मोटापे से पीड़ित बच्चों की संख्या में तीन गुणा इजाफा हुआ है और उनकी संख्या तीन फीसदी से बढ़कर 9.4 फीसदी पर पहुंच गई है। 
रिपोर्ट के अनुसार पहले बच्चे खाने की कमी, नाटेपन, घटते वजन जैसी समस्याओं से जूझ रहे थे। अब इसकी जगह मोटापे और बढ़ते वजन ने ले ली है। रिपोर्ट में खुलासा किया है कि आज दुनिया का हर दसवां बच्चा (5 से 19 वर्ष) मोटापे से जूझ रहा है यानी करीब 18.8 करोड़ बच्चे बढ़ते मोटापे से त्रस्त हैं। यह स्थिति उन्हें गंभीर और जानलेवा बीमारियों के खतरे में डाल रही है। इन बच्चों में मधुमेह, हृदय रोग और कैंसर जैसी घातक बीमारियों का खतरा बढ़ रहा है। यूनिसेफ की कार्यकारी निदेशक कैथरीन रसेल के अनुसार मोटापा एक बढ़ती समस्या है जो बच्चों की सेहत और मानसिक एवं शारीरिक विकास को खतरे में डाल रहा है। 
 इसक मतलब है कि यदि उप-सहारा अफ्रीका और दक्षिण एशिया को छोड़ दें तो अब दुनिया के सभी हिस्सों में मोटापे से जूझ रहे बच्चों की गिनती, कम वजन वाले बच्चों की संख्या से आगे निकल गई है। प्रशान्त द्वीप समूह में यह स्थिति विशेष रूप से गंभीर है जहां पारम्परिक आहार की जगह सस्ते, ऊर्जा-सघन आयातित खाद्य पदार्थों ने ले ली है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक बच्चों को तब अधिक वजन वाला माना जाता है जब उनका वजन अपनी उम्र, लिंग और ऊंचाई के हिसाब से स्वस्थ वजन वाले बच्चों से काफी अधिक होता है। मोटापा अधिक वजन से जुड़ी अवस्था का ही एक गम्भीर रूप है और इससे शरीर में इंसुलिन रेसिस्टेन्स और उच्च रक्तचाप का खतरा बढ़ जाता है। रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि दुनिया में पांच से 19 वर्ष के करीब 39.1 करोड़ बच्चे बढ़ते वजन से जूझ रहे हैं। मतलब की हर पांचवां बच्चा इस समस्या से पीड़ित है। इनमें से करीब आधे बच्चे मोटापे की चपेट में हैं। देखा जाए तो यह समस्या आगे चलकर बच्चों में मधुमेह, हृदय रोग और कैंसर जैसी घातक बीमारियों की वजह बन सकती है।
रिपोर्ट के मुताबिक बच्चों की सेहत पर बाज़ार की ताकतें हावी हो रही हैं। चीनी, नमक और अस्वास्थ्यकर वसा से भरे अल्ट्रा-प्रोसेस्ड और फास्ट फूड उनके खाने पर काबिज हो रहे हैं। इनका आक्रामक प्रचार बच्चों को और भी ज्यादा अपनी ओर खींच रहा है। यूनीसेफ ने 170 देशों के 64 हजार से ज्यादा युवाओं पर एक सर्वेक्षण किया था। सर्वे में 75 फीसदी युवाओं ने माना कि उन्होंने पिछले हफ्ते जंक फूड और सॉफ्ट ड्रिंक के विज्ञापन देखे थे। वहीं 60 फीसदी का कहना था कि इन विज्ञापनों से उन्हें इन खाद्य पदार्थों को खाने की इच्छा और बढ़ गई थी। रिपोर्ट में चेताया गया है कि यदि तुरंत कदम न उठाए गए तो मोटापे से जुड़ी स्वास्थ्य समस्याएं गंभीर रूप ले सकती हैं। इससे वैश्विक अर्थव्यवस्था को 2035 तक सालाना 4 ट्रिलियन डॉलर से अधिक का नुकसान होगा।
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसईद) ने भी अपनी रिपोर्ट में भारत में जंक फूड से जुड़े खतरों के बारे में चेताया है। इस रिपोर्ट के अनुसार भारत में बेचे जा रहे अधिकांश पैकेज्ड और फास्ट फूड आइटम में खतरनाक रूप से नमक और वसा की उच्च मात्रा मौजूद है जो भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) द्वारा निर्धारित तय सीमा से बहुत ज्यादा है। सीएसई ने इस खतरे से लोगों को आगाह करने के साथ ही लेबलिंग से जुड़ें कानूनों को तत्काल लागू करने की मांग की थी। साथ ही जो खाद्य पदार्थ स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं, उन पर अलग से लाल चेतावनी लेबल लगाने की मांग की थी। कुछ देशों ने इस दिशा में सुधार की पहल की है। उदाहरण के लिए मेक्सिको ने स्कूलों में जंक फूड और मीठे पेय पदार्थों की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया है, जिससे 3.4 करोड़ बच्चों के खान-पान में सुधार हुआ है। मैक्सिको में मीठे पेय और अल्ट्रा प्रोसेस फूड बच्चों द्वारा ली जा रही दैनिक कैलोरी का करीब 40 फीसदी हिस्सा हैं। रिपोर्ट के मुताबिक भारत ने भी इस दिशा में प्रयास किए हैं, भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण ने खाद्य पदार्थों में ट्रांस-फैट की मात्रा धीरे-धीरे घटाई है और 2022 में इसे अनिवार्य रूप से अधिकतम 2 फीसदी पर सीमित कर दिया है। यह नियम खाने के तेल, वसा और उनसे बने उत्पादों पर लागू है। (एजेंसी)

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