स्वच्छ पर्यावरण बारे राष्ट्रीय पहल ज़रूरी

पर्यावरण-प्रदूषण और मनुष्य मात्र के लिए स्वच्छ हवा की दरकार को लेकर सर्वोच्च न्यायालय की ताज़ा दलील ने एक ओर जहां देश में एक नई बहस को जन्म दिया है, वहीं साफ-सुथरी हवा के महत्त्व को भी उजागर किया है। यह बहस इस मुद्दे को लेकर है कि क्या पर्यावरण की स्वच्छता किसी एक क्षेत्र के लिए अधिक, और दूसरे क्षेत्र के लिए कम हो सकती है। यह बहस इस कारण उपजी प्रतीत होती है कि हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने एक टिप्पणी में यह कहा है कि मनुष्य मात्र के लिए सांस लेने हेतु साफ हवा की ज़रूरत सिर्फ दिल्ली अथवा सम्बद्ध राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के लिए ही ज़रूरी नहीं, अपितु देश के प्रत्येक भाग और प्रत्येक प्राणी की पहली आवश्यकता है। यह मुद्दा दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में आगामी दीपावली के अवसर पर आतिशबाज़ी पर रोक लगाने संबंधी याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान उठा। सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस के. विनोद चन्द्रन वाली पीठ ने नि:संदेह रूप से इस तर्क पर बल दिया कि स्वच्छ पर्यावरण और धुआं-रहित स्वस्थ वायु में सांस लेना देश के प्रत्येक नागरिक का प्रमुख मौलिक अधिकार है। इसे अलग-अलग क्षेत्रों अथवा टुकड़ों में बांट कर लागू नहीं किया जा सकता। आतिशबाज़ी और पटाखे फोड़ने पर प्रतिबन्ध अथवा रोक लगाये जाने की बात किसी एक हिस्से पर लागू करना उचित भी नहीं हो सकता। इस संबंध में मुख्य न्यायाधीश का यह तर्क बहुत उचित सिद्ध हो सकता है कि विगत वर्ष पंजाब के शहर अमृतसर के वायु-प्रदूषण की हालत राजधानी दिल्ली से भी अधिक खराब थी।
सर्वोच्च न्यायालय का यह विचार इस लिए भी अहम हो जाता है कि देश भर में उत्साह एवं उल्लास के साथ मनाये जाने वाले त्योहार दीपावली को लेकर अनेक प्रकार की आतिशबाज़ी हेतु अरबों रुपए के पटाखों का भण्डार व्यापारी वर्ग द्वारा कर लिया गया है, किन्तु दूसरी ओर स्वच्छ हवा और प्रदूषण-रहित स्वस्थ पर्यावरण की तीव्र होती मांग के दृष्टिगत पटाखों पर प्रतिबन्ध लगाने और आतिशबाज़ी पर आंशिक नियंत्रण की मांग भी तेज़ होने लगी है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से भी अक्सर ऐसे अवसरों पर खास तौर पर पटाखे चलाये जाने वाले त्योहारों से पहले पर्यावरण को बचाने हेतु अपीलें जारी की जाती रहती हैं। ऐसे में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा समय रहते इस गम्भीर समस्या को लेकर अपनी एक टिप्पणी के ज़रिये बहस की शुरुआत करना एक सद्-प्रयास जैसा हो सकता है। हम समझते हैं कि नि:संदेह यह एक बेहद गम्भीर मुद्दा है, और यह भी कि इस संबंध में जो भी नीति बनाई जाए अथवा जो भी निर्णय लिया जाए, वह यथा-सम्भव पूरे देश के लिए एक समान होना चाहिए, और लागू भी पूरे देश में एक साथ होना चाहिए। दिल्ली में केवल इसलिए कोई एक नीति एकाकी रूप से लागू नहीं होनी चाहिए कि इस क्षेत्र में कुलीन वर्ग अथवा बड़े लोग रहते हैं। ऐसे में यह एक तर्क बहुत ज़रूरी है कि पटाखों और आतिशबाज़ी पर अंकुश वाली कवायद पूरे देश के सभी हिस्सों में एक साथ लागू होनी चाहिए। इस संदर्भ में एक अन्य न्याय-मित्र वकील का यह तर्क भी विचारणीय है कि दिल्ली की कुलीन आबादी हालांकि समुचित शिक्षित और सामर्थ्यवान होने के कारण अपने भले-बुरे को लेकर अच्छी तरह वाकिफ हो सकती है, किन्तु देश के अन्य राज्यों जहां ़गरीब और मध्य-वर्गीय लोग अधिक रहते हैं, वहां के लिए तो ऐसे प्रतिबन्धों की बड़ी आवश्यकता है।
हम समझते हैं कि पर्यावरण की रक्षा और स्वच्छ/स्वस्थ वातावरण के लिए बहुत ज़रूरी है कि धुएं वाले पटाखों और आतिशबाज़ी पर समुचित अंकुश लगे, किन्तु इस समस्या का दूसरा पक्ष यह भी है कि पटाखा व्यापारियों ने इस हेतु अरबों रुपये का निवेश कर रखा है, और कि अकेले दीपावली पर एक-एक शहर में करोड़ों रुपये की आतिशबाज़ी हो जाती है। देश के कई अन्य राज्यों में भी, वहां के लोगों द्वारा मनाये जाने वाले उत्सव-त्योहारों पर भी, समय-समय पर आतिशबाज़ी होती रहती है। इसलिए यह आवश्यक हो जाता है कि पटाखों पर अंकुश लगाने संबंधी एक समान राष्ट्रीय नीति के निर्धारण पर विचार हो, और यह भी कि इस हेतु विचार-विमर्श किये जाने हेतु वार्तालाप में सरकारी पक्ष, पर्यावरण-विदों और पटाखा-व्यवसायी वर्ग के प्रतिनिधियों को भी शुमार किया जाए। हम समझते हैं कि इस प्रकार के किसी साझा प्रयास से ही पर्यावरण की रक्षा की जा सकती है, प्रदूषण पर अंकुश लगाया जा सकता है, और प्रत्येक प्राणी के लिए स्वच्छ हवा को सुनिश्चित किया जा सकता है।

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