भ्रष्टाचार व नौकरशाही पर नकेल कसे बिना भारतीय वापस नहीं आएंगे
भारत से हर साल बड़ी संख्या में युवा पढ़ाई और रोज़गार के लिए विदेश इसलिए जाते हैं क्योंकि उनकी योग्यता, प्रतिभा का मूल्यांकन यहां नहीं होता, पढ़ाई-लिखाई की सुविधाएं जैसी वहां हैं, यहां नहीं हैं। वर्तमान में लगभग 18 लाख भारतीय छात्र अमरीका, कनाडा, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। वे करोड़ों में होंगे और उन देशों को समृद्ध बनाने में अहम भूमिका निभा रहे हैं।
कोई क्यों आएगा : हमारे प्रधानमंत्री का संकल्प है कि चिप से लेकर शिप तक का निर्माण भारत में हो और चाहे जहां भी बने, कोई भी बनाये ‘मेड इन इंडिया’ का लेबल लगा होना चाहिए। यही आत्म-निर्भर भारत की पहचान बने। इसमें विदेशों में बसे भारतीयों का योगदान हो और वे अपने देश लौट आयें। प्रश्न यह है कि क्या वे भारत आयेंगे? इसका विश्लेषण करने और वास्तविकता को समझने के लिए देश भर चर्चा होना आवश्यक है।
अक्सर जब हम अपने ही देश में व्यापार-व्यवसाय अथवा रोज़गार या फिर घूमने फिरने यानी पर्यटन के लिए जाते हैं तो बहुत सी चीज़ें अलग पाते हैं और उनकी तुलना करते हैं। उदाहरण के लिए कोई ऐसी इमारतें व सड़कें जो 20-30 साल पहले बनी होंगी, परन्तु आज भी एकदम चमचमाती हुई दिखेंगी। तुरन्त आप सोचने लगते हैं कि आपके शहर, कस्बे और गांव में सड़क है, लेकिन टूटी हुई, बरसों बिना मरम्मत, बरसात में गड्ढे, फिसलन और काई-कीचड़ से भरी नालिया, गलियों में क्या, मुख्य सड़क पर भी पानी का भराव और निकासी का कोई इंतज़ाम नहीं और अखबार, टीवी पर यह सूचना कि यह तो पिछले दिनों ही बनी थी और पहली बरसात भी नहीं झेल पाई। विशेष यह कि यह स्थिति महानगर से लेकर नगर निकायों तक की है। दूसरी बात पुलिस, प्रशासन और कानून व्यवस्था की है। अपने ही देश में कहीं तो एकदम दुरुस्त, चाक-चौबंद है परन्तु अधिकतर स्थानों पर सब कुछ उलझा हुआ मिलेगा। लूट-खसोट का वातावरण, प्रदूषण और पर्यावरण का संकट, चौराहों, बाज़ारों, सार्वजनिक स्थानों व फुटपाथ पर कब्ज़ा है। महिलाओं से छेड़छाड़ मामूली बात है।
जब यह हालात हों और देश में ही एक से दूसरे स्थान पर जाने से पहले सौ बार सोचता है तो फिर विदेश से यहां बसने के इरादे से गए व्यक्ति का लौटने की बात सोचना जोखिम उठाने की तरह है। यही नहीं, कई बार देश प्रेम उमड़ने लगे और यहां आकर कोई व्यवसाय, उद्योग लगाने के लिए विदेश में कमाई पूंजी निवेश करने की इच्छा हो तो बिना रिश्वत दिए एक भी काम होना मुश्किल ही नहीं, असंभव है। ज़मीन ख़रीदने से लेकर उस पर निर्माण करने, अपना प्रोजैक्ट मंज़ूर कराने और वित्तीय संसाधन जुड़ने तक बहुत-सी मंज़िलें तय करनी होती है और हरेक सीढ़ी चढ़ने से पहले सुविधा शुल्क (रिश्वत) देना पड़ता है।
इसके लिए मानसिक और व्यवहारिक तौर से मज़बूत होना भारत आने की पहली शर्त है। यदि सरकार चाहती है कि विदेशों में रहते भारतीय वापसी करें तो यह तब तक संभव नहीं, जब तक उनके लिए वैसी प्रशासनिक प्रक्रिया शुरू नहीं होगी जैसी उन्हें विदेशों में मिलती है। अमरीका जैसे देशों में जाना और बसना बहुत महंगा होता जा रहा है, यह निश्चित है कि यदि थोड़े-से भी लोग भारत वापस आते हैं तो यह एक क्रांतिकारी बदलाव होगा, क्योंकि वे अपने साथ अपनी पूंजी के अतिरिक्त उन देशों में काम करने की सोच और तरीके भी लायेंगे।
जाने पर प्रतिबंध और लौटने का करार : कुछ लोग सुझाव देते रहते हैं कि भारत के जो युवा पढ़ाई करने जाते हैं, उन्हें इस प्रतिबंध के साथ जाने दिया जाए कि वे अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद भारत वापस आयेंगे और यहां नौकरी, रोज़गार, व्यवसाय करेंगे। क्या ऐसा करना व्यावहारिक होगा, कतई नहीं, क्योंकि देश में जो शिक्षा और रोज़गार का माहौल है, विदेशों में पढ़े-लिखे युवा बोझ ही साबित होंगे। कुछ लोगों का कहना है कि भारतीय युवाओं के विदेश जाने पर ही रोक लगा दी जाए ताकि उनकी प्रतिभा का देश में ही इस्तेमाल हो। यह सुझाव ही बचकाना हैं। सबसे पहले तो संविधान में विश्व में कहीं भी जाने की स्वतंत्रता है, इसलिए यह पाबंदी लगाई नहीं जा सकती। दूसरे विदेशों से कमाई का जो हिस्सा विदेशी मुद्रा के रूप में भारत आता है, वह बंद हो जाएगा। तीसरे बेरीज़गारी बढ़ेगी जिससे पहले ही हमारा देश त्रस्त है। चौथी बात यह है कि जो लोग विदेशी रहन-सहन अपना चुके हैं और वहां उपलब्ध सुविधाओं के आधार पर जीवन शैली में अपने को ढाल चुके हैं, उनके लिए यहां घुटन ही हो सकती है, निराशा और तनाव बढ़ सकता है और फायदा होने के स्थान पर नुकसान अधिक हो सकता है।
प्रवासी भारतीयों का स्वागत कैसे हो : इसके लिए सरकार इस प्रकार की नीतियां बनाये कि दूसरे देशों में जाकर उनकी अर्थव्यवस्था का हिस्सा बनना आकर्षक न रहे। यह सब भारत में ही बेहतर करियर और सम्मानजनक वेतन उपलब्ध कराने से यह संभव हो सकता है। यह सब भारत में रह रहे वैज्ञानिकों, पेशेवरों को भी देना होगा ताकि उनके मन में विदेश जाने का आकर्षण कम हो। इंफ्रास्ट्रक्चर को दीर्घकालिक और बेहतर सुविधाओं से लैस करना होगा। पुराने नियमों में बदलाव कर पारदर्शी व्यवस्था को सुनिश्चित करना होगा और जिन लोगों की आदत बिना किसी लेन-देन कोई काम न होने देने और हरेक काम में अड़चन पैदा करने की है, उन्हें कड़ी सज़ा मिलनी चाहिए। और यह केवल एनआरआई लोगों के लिए नहीं बल्कि प्रत्येक भारतीय उद्यमी के लिए होना चाहिए।यदि कोई प्रवासी पूंजी निवेश से उद्योग स्थापित करता है तो क्योंकि वह विदेशी मुद्रा का भंडार बढ़ा रहा है, तो उसे उसका उचित लाभ मिले और सभी शर्तों को उसके अनुकूल बनाया जाए ताकि वह विदेशों में पूंजी रखने या वहां निवेश करने के लिए प्रोत्साहित न हो।
सरकार यह मानकर चले कि कोई भी प्रवासी शुद्ध देश प्रेम के कारण भारत नहीं आएगा, उसे विदेशों जैसी सुविधाएं देनी पड़ेंगी। देश में जो स्टार्ट अप फेल होते हैं, उसका प्रमुख कारण सरकारी नीतियों और नियमों और उनके कारण पैदा की जाने वाली रुकावटें हैं। युवा हताश हो कर सोचने लगता है कि विदेश चला जाए क्योंकि वह यहां अपने ऊपर असफल होने का ठप्पा लगवाकर नहीं रह सकता। केवल पैसा देना ही काफी नहीं, उचित वातावरण का निर्माण करना पहली प्राथमिकता होनी चाहिये। यह वास्तविकता है कि यदि प्रवासी भारतीयों का आंशिक रूप से भी भारत आगमन हो जाए तो निश्चित रूप से प्रधानमंत्री का संकल्प पूरा करने में मदद मिल सकती है। अन्यथा अनर्गल घोषणाओं से चीन जैसे देशों से आगे निकलना कठिन है।