भागवत केन्द्र सरकार के शुभचिंतक ही नहीं, मौन आलोचक भी हैं
इस साल विजयदशमी के दिन यानी 2 अक्तूबर, 2025 को नागपुर में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख डॉ. मोहन भागवत ने आरएसएस के शताब्दी समारोह के सापेक्ष अपने वार्षिक राष्ट्र संबोधन, जो कि विजयदशमी संदेश के नाम से भी जाना जाता है, में न केवल देश के लिए सांस्कृतिक एकता और आत्मनिर्भरता की बात दोहरायी बल्कि मोदी सरकार की सामरिक, आर्थिक और सामाजिक नीतियों पर मौन आलोचना भी की। कुल मिलाकर आरएसएस के सरसंघ चालक ने इस शताब्दी समारोह में केंद्र सरकार के लिए महज शुभचिंतक भाषण ही नहीं किया बल्कि उनके अपने संबोधन में सरकार के लिए मौन शब्दों में मुखर आलोचना भी थी, साथ ही यह अपेक्षा भी कि सरकार इस ओर ध्यान देगी।
आमतौर पर आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ) को बिना कुछ कहे ही मोदी सरकार का समर्थक माना जाता है, लेकिन मोहन भागवन ने संघ के शताब्दी कार्यक्रम में मोदी सरकार को लेकर जो बहु-प्रतीक्षित संबोधन किया, उसमें न सिर्फ सरकार के साथ मजबूती से खड़े रहने की बात थी बल्कि सरकार को कई क्षेत्रों में उनका यह संबोधन आगाह करने वाला भी था या दूसरे शब्दों में कहा जाए तो इसमें सरकार की मौन आलोचना थी। एक तरह से यह भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार के लिए देश के सबसे बड़े सांस्कृतिक संगठन और केंद्र सरकार के संरक्षक समझे जाने वाले संगठन की सरकार को सलाह या सीख की तरह था।
भागवत ने अपने विजयदशमी संबोधन में जिन कई बिंदुओं को उजागर किया और जिन्हें मीडिया ने ‘टॉप टेकअवेज’ की तरह चिन्हित किया है, उनमें स्वदेशी और स्वालंबन यानी आत्मनिर्भरता की ज़रूरत, प्राकृतिक पर्यावरण और हिमालयी भू-भाग की स्थिति को विकास के आईने में नये सिरे से देखना, सामाजिक एकता बनाने की अत्यंत ज़रूरत तथा असामाजिक तत्वों से सावधान रहने की चेतावनी और अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक दबावों के सामने सूझ-बूझ से खड़े रहने व आगे बढ़ने की स्थिति को रेखांकित किया है। भागवत ने स्पष्ट शब्दों में कहा, ‘डिपेडेंस मस्ट नॉट टर्न इन टू-कम्पल्शन’ यानी वैश्विक निर्भरता तो ठीक है, लेकिन ध्यान रहें यह हमारी बाध्यता न बन जाए। उन्होंने यह टिप्पणी हाल के दिनों में अमरीका की टैरिफ नीतियों का विशेष रूप से ज़िक्र करते हुए किया। उनके संबोधन का अर्थ साफ था कि अमरीका की टैरिफ नीतियां, उनके हित में हैं। लेकिन भारत को अपने हितों की परवाह करना लाजिमी है।
इसके साथ ही उन्होंने सरकार को असंवैधानिक तत्वों से सावधान रहने की सलाह दी। उन्होंने साफ शब्दों में कहा, ‘कई ताकतें भारत को आंतरिक तौर पर अस्थिर करने की कोशिशें कर रही हैं।’ उन्होंने सरकार को इस स्थिति से सावधान रहने के लिए आगाह किया। मोहन भागवत ने सामाजिक विविधता और ‘हम बनाम वे’ की मानसिकता से पैदा होने वाले खतरों की तरफ संकेत किया। उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि हमारे पास एक संविधान और कानून है, हमारे अपने मतभेद उसी के दायरे में रहने चाहिए। साथ ही उन्होंने स्पष्ट रूप से यह भी कहा कि साम्प्रदायिकता को उकसाने वाली ताकतों से हमें हर समय सावधान रहने की ज़रूरत है, ये किसी भी रूप में हमें स्वीकार्य नहीं होनी चाहिए, क्योंकि यह राष्ट्र के अस्तित्व के लिए खतरनाक हैं।
मोहन भागवत की चेतावनियों का क्रम यही नहीं रुका, उन्होंने सरकार का ध्यान विकास और पर्यावरणीय विभीषिकाओं की तरफ भी खींचा है। आरएसएस प्रमुख ने ज़ोर देकर कहा कि हिमालयी क्षेत्र में जिस तरह की पर्यावरणीय समस्याएं हाल के दिनों में उभरकर सामने आयी हैं, वह बेहद खतरनाक हैं। ग्लेशियरों का तेज़ी से पिघलना, असमय वर्षा और भू-स्खलन की घटनाएं ये सभी स्थितियां हमारे विकास मॉडल की खामियों को उजागर करती हैं। हमें समय रहते इन्हें लेकर चेत जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि संघ की शाखा और स्वयं सेवकों का मूल कत्तव्य, चरित्र निर्माण है, क्योंकि व्यक्तियों का संस्कार, अनुशासन और राष्ट्र भावना ही किसी देश को मज़बूत बनाते हैं। अपने इस संबोधन में मोहन भागवत ने कहा कि आरएसएस को अपना यह कर्त्तव्य निभाते रहना चाहिए, यह राष्ट्रहित में है।
इन बिंदुओं को मिलाकर देखें तो साफ कहा जा सकता है कि संघ प्रमुख का भाषण केवल सांस्कृतिक प्रेरणा तक सीमित नहीं था बल्कि सरकार को एक सावधानी भरा संदेश था, उनका यह भाषण। खासकर उन लड़खड़ाती ताकतों के लिए जो सरकार की नीतियों और सामाजिक भागीदारी को चुनौती देती हैं। हाल के दिनों में बार-बार यह बात देखने में आयी है कि कुछ ताकतें सरकार के नाम पर कुछ अराजक तत्वों को अराजकता फैलाने की छूट देती हैं, जो अंतत: सरकार के खाते में जाता है। उन्होंने पड़ोस के देशों में जिस तरह से युवा पीढ़ी यानी जेन-ज़ैड के विद्रोह उभरकर सामने आये हैं, उन पर भी चिंता व्यक्त की और देशवासियों तथा सरकार को आगाह किया कि ऐसी ताकतों को भारत में उभरने देने से चौकन्ना रहना चाहिए। क्योंकि ये ताकतें किसी परिवर्तन के लिए ऐसे विद्रोहों को हवा नहीं देतीं बल्कि देश को कमज़ोर करने को लक्षित होती हैं ये गतिविधियां।
इस तरह देखें तो सरसंघ प्रमुख ने मोदी सरकार को चेताया है कि इस पर ध्यान दें, नहीं तो आने वाले दिनों में परेशानियां बढ़ सकती हैं। मोहन भागवत के इस विजयादशमी संबोधन को केंद्र सरकार के प्रति आलोचनात्मक इसलिए भी कहा जा सकता है, क्योंकि वह सरकार की उद्योग और आर्थिक नीतियों पर साफ-साफ शब्दों में सवाल खड़ा कर रहे हैं। जब वह कहते हैं कि अंतर्राष्ट्रीय निर्भरता हमारी बाध्यता न बन जाए तो वह इशारा कर रहे हैं कि कैसे अंतर्राष्ट्रीय दबाव आज हमारी अर्थव्यवस्था पर भारी पड़ रहे हैं और इनसे निकलना क्यों बहुत जरूरी है? इसलिए वह अनुबंधों की निर्भरता पर सावधान रहने की बात और देश को स्वदेशी तथा स्वायत्तता के प्रति मजबूत कदमों से आगे बढ़ने के लिए कह रहे हैं। पड़ोस के देशों के युवाओं के यह असंतोष से भी मोदी सरकार को आगाह कर रहे हैं कि हमें ऐसी आर्थिक नीति जो आर्थिक ताकत तो बढ़ाए लेकिन समृद्धि को कुछ थोड़े से हाथों में केंद्रित करे, उससे बचना चाहिए। साफ शब्दों में मोहन भागवत सरकार को रोज़गार केंद्रित अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ने की सलाह दे रहे हैं, जिसके केंद्र में स्वदेशी और स्वायत्तता हो यानी वह कुटीर उद्योगों और अन-ऑर्गेनाइज़्ड सेक्टर की अर्थव्यवस्था को मज़बूत करने की बात कर रहे हैं।
कुल मिलाकर डॉ. मोहन भागवत का इस बार का विजयादशमी संबोधन, सिर्फ संरक्षक के नाते सरकार को समर्थन देने भर का नहीं था, बल्कि स्पष्ट रूप से सरकार को आगाह करने की भी कोशिश उनके भाषण में मौजूद थी। -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर