सच्ची दिवाली

दिवाली आने वाली थी और बच्चे उत्साह-उमंग से सराबोर थे। बच्चे दीवाली की तैयारी की योजना बना रहे थे। तभी बच्चों की निगाहें एक फटे-पुराने कपड़े पहने और बड़े-बड़े बिखरे बाल वाले एक व्यक्ति पर पड़ी। सभी बच्चे उस व्यक्ति को गौर से देखने लगे। वह व्यक्ति अपनी ही दुनिया में खोया था। ‘तुम लोग उस व्यक्ति को गौर से क्यों देख रहे हो?’ अरूण ने अपने दोस्तों का ध्यान भंग करते हुए बोला। 
‘देखो न वह व्यक्ति फटे-पुराने कपड़े पहने कैसे आसमान को एकटक निहार रहा है।’ रमेश उसकी ओर इशारा करते हुए बोला। 
‘अरे! वह पागल है। उसके बारे में क्या सोचना? हम तो अपनी दिवाली को यादगार बनाने की योजना बनाने आये हैं। फिर बीच में यह पागल कहां से आ गया?’ अरूण बोला। 
‘पागल है तो क्या हुआ? आखिर वह भी इंसान है। दिवाली आने वाली है और वह बेचारा फटे-पुराने कपड़े पहने है। वह दिवाली के अवसर पर बनने वाले तरह-तरह के पकवान से भी वंचित रहेगा। मिठाई और पटाखे तो दूर की बात।’ रमेश उदास स्वर में बोला। 
‘इसके जैसे न जाने कितने लोग और बच्चे दिवाली का आनंद नहीं उठा पाते हैं। छोड़ो इन बातों को। हम क्यों इनके बारे में सोचकर अपना मूड खराब करे।’ मुकेश बोला। 
‘तुमने ठीक कहा। गरीब और बेसहारा लोग के बच्चे भी दिवाली का त्योहार कहां मना पाते हैं? फिर फुटपाथ पर रहने वाले ऐसे विक्षिप्त लोगों को उस दिन भोजन भी नहीं मिल पाता।’ रमेश मुकेश की ओर देखते हुए बोला। 
‘हम लोग इन जैसे लोगों के लिए कर भी क्या सकते हैं?’ मुकेश ने प्रश्न किया। 
‘हम लोग दिवाली के दिन पटाखे जलाकर खूब मस्ती करते हैं। हम गरीब और इन जैसे लोगों के बारे में सोचते ही कहां हैं? पटाखे चलाने में हम लोगों को खूब आनंद आता है लेकिन इससे हमारा पर्यावरण भी दूषित होता है। वायु में जहर घुल जाता है, जिससे लोगों के शरीर पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसलिए इस बार हम दिवाली में पटाखे नहीं चलाएंगे, बल्कि इस बार की दिवाली को यादगार बनायेंगे।’ रमेश बोला। 
‘इस बार बिना पटाखों के दिवाली को कैसे यादगार बनायेंगे? इस बार दिवाली कैसे मनाओगे? जरा हम लोगों को बताओ।’ अरूण बोला। 
‘इस बार हम दिवाली में पटाखे नहीं जलायेंगे बल्कि उन गरीब और बेसहारा लोगों को मीठे पकवान खिलायेंगे। दीन-दुखियों की सेवा से बढ़कर कोई और धर्म नहीं हो सकता। इससे हमें आत्मिक सुख तो मिलता ही है और समाज में समरसता का भाव फैलता है। हम अमीर-गरीब का भेद मिटाकर दिवाली का असली आनंद उठायेंगे।’ रमेश बोला। 
‘तुम ठीक कहते हो। हम लोग दिवाली के दिन पटाखे नहीं जलाते बल्कि पैसों में आग लगाते हैं। फिर इन पटाखों के धुएं से सारा वातावरण दूषित हो जाता है। इस बार मैं भी पटाखे नहीं चलाऊंगा और पर्यावरण को स्वच्छ बनाये रखने में अपनी सहभागिता निभाऊंगा। इन पैसों से हम गरीब ओर बेसहारा लोगों के साथ दिवाली को यादगार बनायेंगे।’ अरूण रमेश की बात का समर्थन करते हुए बोला। 
‘इस बार हम लोग भी दिवाली पर पटाखे नहीं जलाएंगे। हम बच्चे इस बार गरीब और अनाथों के बीच मीठे पकवान बांटकर सच्ची दिवाली मनायेंगे।’ सारे बच्चे एक स्वर में बोले। 
जब इस बात की जानकारी उनके माता-पिता को हुई तो वे दंग रह गये। वे सोच में पड़ गये कि जो बड़े न कर सके, वो बच्चों ने करने का निश्चय कर लिया। ऐसी सोच हमारे समाज को नयी दिशा देगा। पर्यावरण के प्रति यह जागरूकता और मानवतावादी सोच हमारे समाज के लिए मिसाल बनेगा। यदि यही जागरूकता पूरे समाज में आ जाये तो हमारा देश महानता की बुलंदियों को छू लेगा। समाज में प्रेम और सौहार्द की गंगा बहने लगेगी। आपसी भाई-चारे के साथ दिवाली मनाने का आनंद ही कुछ और होगा। खुशियों का यह पर्व और भी खुशनुमा हो जाएगा।’ 
बच्चों की इस योजना को साकार रूप देने के लिए लोग दीवाली की तैयारियों में जुट गये।

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