भारत के इतिहास में पान का जुड़ाव

 

पान का भारत के इतिहास एवं परम्पराओं से गहरा जुड़ाव है। इसका उद्भव स्थल मलाया द्वीप माना जाता है। पान को विभिन्न भारतीय भाषाओं में अलग-अलग नामों से जाना जाता है, जैसे ताम्बूल (संस्कृत), पक्कू (तेलुगू), वेटिलाई (तमिल और मलयालम), नागवेल ( मराठी) और नागुरवेल (गुजराती) आदि। हिंदू संस्कारों जैसे नामकरण, यज्ञोपवीत, पूजा आदि में पान का प्रयोग किया जाता है। यहां तक कि वेदों में भी पान के सेवन और उसकी पवित्रता का वर्णन है।  पान का आविष्कार आयुर्वेद में हज़ारों साल पहले धनवन्तरि की मदद से किया गया था जिसका संदर्भ श्रीमद्भगवत्गीता में भी मिलता है। आज भी कृष्ण मंदिरों में पान का बीड़ा चढ़ाया और बांटा जाता है। मुगल महारानी नूरजहां ने पान खाने की परम्परा को लोकप्रिय बनाया। भारतीय धर्म के साथ-साथ संस्कृति में भी ताम्बूल (पान) का स्थान अत्यन्त महत्वपूर्ण माना गया है। जहां एक ओर पान धूप, दीप और नैवेद्य के साथ आराध्य देव को चढ़ाया जाता है, वहीं पान के श्रृंगार और प्रसाधन का भी अत्यावश्यक अंग माना गया है। 
मुख-शुद्धि का साधन होने के साथ-साथ पान औषधीय गुणों से सम्पन्न भी माना गया है। आज पान लगभग हर भारतीय के दिल में जगह बना चुका है। (उर्वशी)

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