राजा और बुद्धिमान चोर 

एक बार चार चोर चोरी करते रंगे हाथ पकड़े गये। चारों को राजा के समक्ष पेश किया गया। राजा ने चारों चोरों को मौत की सजा सुना दी। अगले दिन एक-एक कर चोरों को फांसी पर लटकाया जाने लगा। जब तीन को फांसी लग गई तो चौथे चोर को अपने बचने की उम्मीद न रही। वह पहली बार में ही चोरी करते पकड़ा गया था। वह कल से ही जान बचाने के उपाय सोच रहा था। अंतिम समय में उसे एक युक्ति सूझ गयी। जब जल्लाद उसे लेने आए तो उसने कहा, ’रूको, जरा मेरा एक काम कर दो। राजा को जाकर बताओ कि मैं एक ऐसा हुनर जानता हूं जिससे सोने की खेती की जाती है। अगर मैं मर गया तो वह हुनर मेरे साथ ही खत्म हो जाएगा। राजा से कहो कि खेती करने का हुनर सीखना हो तो मुझे फांसी देने से पहले सीख लें।‘ जल्लादों ने यह खबर राजा को दी। राजा ने चोर को अपने पास बुलवा लिया। चोर के आने पर राजा ने पूछा, ’तुम सोने की खेती का हुनर जानते हो?‘ चोर बोला, ’जी हुजूर, वह हुनर सिर्फ मैं ही जानता हूं।‘ राजा बोला, ’तो बताओ कैसे की जाती है सोने की खेती?‘ चोर ने कहा, ’हुजूर, सबके सामने बता दूं? इस तरह तो सब जान जाएंगे और खेती कर धनवान बन जाएंगे। फिर आपका हुक्म कौन मानेगा?‘ राजा को झटका लगा। बात तो सही है। चोर अक्लमंद है। वह उसे निजी कक्ष में ले गया। चोर ने बताया, ’हुजूर, एक किलो सोने के सरसों जैसे दाने सुनार से बनवाकर मंगवा दीजिए और अपने ही राजमहल के प्रांगण में क्यारी बनाने की जगह मुझे बता दीजिए। जब तक सोने के दाने आएंगे, तब तक मैं क्यारियां तैयार कर लूंगा।‘राजा ने एक बड़े सुनार को सोने के दाने बनाकर भेजने का आदेश भिजवा दिया और चोर को क्यारी के लिए जगह बता दी। चोर बोला, ’अब, आप मुझे देखते रहिए, कैसे क्यारी बनती है। चोर ने फावड़े से मिट्टी खोदी। फिर खुरपा और हाथों की सहायता से मिट्टी भुरभुरी की। उसने खेत में गोबर की खाद, आटा वगैरह कई चीजें मिलाई।  जब सोने के दाने आ गये तो चोर ने बताया, ’हुजूर, आप अपने हाथों से इन क्यारियों में सोने का यह बीज बो दें। मैं अपने हाथों से इन्हें नहीं बो सकता क्योंकि मैंने चोरी की है। सोने की खेती सिर्फ वही कर सकता है जिसने कभी चोरी न की हो।‘ राजा शर्मिंदा होकर बोला, - यार, मैंने तो एक षड्यंत्र के तहत पहले राजा को मरवा कर राजशाही हथियाई थी, इसलिए मैं भी तो चोर हुआ।‘ चोर बोला, ’किसी मंत्री को बुला लीजिए।‘ राजा ने एक-एक मंत्री को सोने की खेती की शर्त बताकर पूछताछ की तो पता चला कि वेतन कम और खर्चे अधिक होने के कारण राजकाज के खर्चों में उन्हें कभी-कभी हेराफेरी करनी पड़ती है। फिर अफसरों से संपर्क किया गया। वे भी हेराफेरी करने वाले निकले। नगर के व्यापारियों में से कोई भी ईमानदार ढूंढने की कोशिशों के दौरान पता चला कि वे टैक्स की चोरी, घटतौली और मिलावट करते हैं। राजा इससे चकरा गया। बोला, ’चोर भाई, यहां तो सभी चोर हैं।‘ चोर हाथ जोड़कर बोला, ‘हुजूर, मेरी फांसी तो है तय, एक बात जाते जाते कहना चाहूंगा। जिस राज्य का राजा चोर हो, वहां जनता से ईमानदारी की अपेक्षा करना न्यायपूर्ण नहीं है। राजा को यदि जनता की दुख तकलीफाें से कोई मतलब नहीं है, सिर्फ अपने ऐशो आराम से मतलब है तो वहां अपराध होंगे ही।‘ थोड़ा रूककर चोर ने आगे कहा, ’यहां आपके कृपापात्र जमींदार किसानों को लूटते हैं, व्यापारी उत्पादकों और ग्राहकों को, अफसर जनता को लूटते हैं। आप या आपके परिवार के लोग कोई काम धंधा न कर मुफ्त की आमदनी-मतलब जनता की मेहनत की कमाई में से जबरदस्ती लिए जाने वाले टैक्स पर ऐश करते हैं। मैं भी जब बेरोजगारी और परिवार की भुखमरी से तंग हो गया तब चोरों के गिरोह में शामिल हुआ। अगर सभी को रोजगार, ईमानदार, शासन-प्रशासन मिले तो कोई बेईमान, अपराधी न बने।‘  राजा बड़ा लज्जित हुआ। उसने चोर की सजा माफ कर उसे सोने सहित जाने दिया और अपना सलाहकार नियुक्त कर लिया। (उर्वशी)