अध्यात्म का केन्द्र है श्री कृष्ण की जन्मभूमि

मथुरा भगवान श्री कृष्ण की जन्मस्थली है। संपूर्ण ब्रज भूमि भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं से ओत-प्रोत है। इसी ब्रजभूमि का हृदय स्थल मथुरा है। यहां के कण-कण में अध्यात्म की धारा बहती है तथा सम्पूर्ण ब्रज में राधाकृष्ण के पावन प्रेम की अनुभूति होती है। यहां की हर एक गतिविधि दिव्य दिखाई देती है। इसी के बारे में कहते हुए बह्मज्ञानी उद्धव ने कहा था कि :-
ब्रज समुद्र कमल, वृंदावन मकरंद।
ब्रज बनिता सब पुष्प है, मधुकर गोकल चंद।।
मथुरा योगीराज भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं की साक्षी है। इसलिए इसके बारे में लोक कहावत प्रचलित है कि तीन लोक में मथुर न्यारी, जामै जन्मे कृष्ण मुरारी। प्राचीन काल से ही मथुरा एक प्रसिद्ध नगर रहा है। आर्यों का यह नगर दीर्घकाल तक भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति का केन्द्र रहा है। आज भी महाकवि सूरदास संगीत के आचार्य स्वामी हरिदास, महाकवि रसखान आदि से मथुरा का नाम जुड़ा हुआ है। भगवान श्री कृष्ण की जन्मस्थली होने के कारण यह वैष्णवों का तो महान तीर्थ है ही, यहां जैन एवं बौद्ध धर्म भी शताब्दियों तक फलते-फूलते रहे हैं। मथुरा का इतिहास भी बड़ा रोचक है। यह भारत के प्रबल प्रतापी यदुवंशियों के ‘शूरसेन’ साम्राज्य की राजधानी थी, जो तत्कालीन राजनीति का एक बड़ा केन्द्र थी। कहते हैं कि मथुरा को भगवान शिव से आशीर्वाद प्राप्त मधु नामक दैत्य ने बसाया था। तब यहां घना जंगल होता था। कालांतर में यह वंश क्रमानुसार यदुवंशी राजा अग्रेसन के आधिपत्य में आई जिसके यहां कंस नामक पुत्र उत्पन्न हुआ, जिसका अंत करने के लिए भगवान को देवकी के गर्भ से जन्म लेकर धरा पर आना पड़ा। इससे पूर्व मथुरा पर तीसरी तथा चौथी शताब्दी ईसा पूर्व में गुप्त वंश का आधिपत्य रहा तथा दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व यहां शुंग वंश ने भी शासन किया। मथुरा कुषाण वंश के अधिकार में भी आई। कुषाण सम्राट महाराजा कनिष्क ने पुरुषपुर के बाद इसे अपनी राजधानी भी बनाया। यह मथुरा का स्वर्ण दौर था जब यहां कला तथा संस्कृति का खूब विकास हुआ। इसी समय मथुरा शैली का जन्म हुआ। समय के साथ मथुरा ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। कटरा केशवदेव मथुरा का प्रमुख दर्शनीय स्थल है। सभी प्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ताओं तथा इतिहासकारों ने यह प्रमाणित किया है कि कटरा केशवदेव ही राजा कंस का मुख्य भवन रहा है और यहीं भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था। यहीं पर प्राचीन मथुरा बसी हुई थी। औरगंज़ेब जब उत्तर भारत में मंदिरों को नष्ट कर रहा था, तब सन् 1669 ई.  में इसी प्राचीन स्मारक को तोड़कर उसके मलबे से उसने ईदगाह मस्जिद बनवाई थी, जो आज भी विद्यमान है परंतु औरगंज़ेब के सैनिक कैद खाने के अंतिम कक्ष को नहीं तोड़ पाए और उसे वैसे ही छोड़ दिया जहां आज भी कृष्ण गर्भगृह जन्मस्थान बना है। श्रीमद् भागवत भवन एक भव्य एवं आलीशान मंदिर है। यहां श्री राधाकृष्ण, श्री लक्ष्मीनारायण एवं जगन्नाथ भगवान के विशाल मनोहर दर्शन हैं। यहां पारे का एक शिवलिंग अनोखा आकर्षण है। यहां एक विशाल अतिथिगृह तथा गुफा का निर्माण भी किया गया है। श्री द्वारिकाधीश मंदिर एक विशाल भव्य मंदिर है। यह मंदिर 108 फुट लम्बी तथा 120 फुट चौड़ी कुर्सी पर बना है। मंदिर नगर के मध्य में है। इसका निर्माण सन् 1814 ई. के लगभग हुआ था। इसे ग्वालियर के सेठ गोकुल दास पारिख ने बनवाया था। इस मंदिर में बहुरंगी कलाकृतियों तथा शीशे का काम देखने योग्य है। यहां द्वारिकाधीश की सुन्दर एवं चतुर्भुज प्रतिमा है। श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर छत्ता बाज़ार में है। इस मंदिर का निर्माण आगरा के जयराम पालीवाल ने कराया था। यह मंदिर मूंगा जी के नाम से प्रसिद्ध है। इनके अलावा भी मथुरा में कई अन्य आकर्षक मंदिर हैं, जिनमें मानिक चौक स्थित श्री नाथ जी का मंदिर, विजय गोविंद मंदिर, मदन मोहन स्वामी नारायण मंदिर एवं राधा तामोदर मंदिर प्रमुख है। यमुना जी की चर्चा के बगैर मथुरा की पहचान अधूरी है। मथुरा में यमुना जी अर्धचन्द्राकार में बह रही हैं। नगर के मध्य यमुना किनारे अनेक घाट बने हैं। सबसे प्रसिद्ध घाट विश्राम घाट है। कहा जाता है कि श्री कृष्ण ने कंस का वध करने के बाद यहीं विश्राम किया था, इसलिए इसे विश्राम घाट कहते हैं। यम द्वितीया के दिन लाखों श्रद्धालु यहां दूर-दूर से आकर स्नान करते हैं। मथुरा की परिक्रमा भी इसी घाट में आचमन लेकर प्रारंभ होती है तथा इसी घाट पर आकर समाप्त की जाती है। ओरछा राजा वीर सिंह ने इसी घाट पर 51 मन सोने का दान किया था। यमुनाजी के प्रमुख घाटों में से 12 घाट इसके उत्तर में तथा 12 घाट दक्षिण की ओर हैं। कुछ घाटों को छोड़कर सभी जीर्ण दशा में हैं। इनकी देखरेख न होने से सबकी सीढ़ियां टूट-फूट गई हैं। कलात्मक स्थापत्य के नमूने छतरियां तथा झरोखे, जालियां अब कम ही रह गए हैं। अतिक्रमण से घाटों को दबा दिया गया है। यमुना की धारा बदलने से भी घाटों की सुन्दरता कम हुई है। यहां के प्रमुख घाट चक्रतीर्थ घाट, गोघाट, स्वामी घाट, असकुंडा घाट, प्रयाग घाट, बंगाली घाट, सरयू घाट और ध्रुवघाट आदि है। राज्य सरकार द्वारा यमुना के सौंदर्यीकरण के लिए गोकुल बैराज का निर्माण करवाया गया है। विश्राम घाट पर संध्या समय यमुना जी की आरती होती है। आरती के बाद यमुनाजी में एक साथ सैकड़ों जलते हुए दीये प्रवाहित किए जाते हैं। यह दृश्य बड़ा ही मनोहारी होता है। मथुरा में मंदिरों के अलावा वल्लभ संप्रदाय के स्थल भी हैं, जिनमें मणिकर्णिका घाट पर बल्लभाचार्य  की बैठक, तुलसी चबूतरे पर श्रीनाथजी की बैठक तथा तुलसी थामला गली सतघड़ा में सातों स्वरूपों के घर तथा कीलमठ गली में स्वामी कील जी की गुफा प्रसिद्ध है। गौड़िया मठ तथा दुर्वासा ऋषि का आश्रम भी दर्शनीय स्थल हैं। आज का कंस-टीला कभी कंस का भव्य महल हुआ करता था। यह एक टीले पर निर्मित था। आज यह जीर्ण अवस्था में है। मथुरा में जन्माष्टमी महोत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जाता है जिसमें देश विदेश से लाखों श्रद्धालु आते हैं।

-रामचंद्र गहलोत