करतारपुर साहिब का रास्ता खुलने के 74 दिन बीते, 42257 श्रद्धालुओं ने किए दर्शन

बटाला, 22 जनवरी  ( डा. काहलों ):  गुरुद्वारा श्री करतारपुर साहिब का गलियारा खुलने का लगभग दो महीने का सफर सफलतापूर्वक पूरा हो चुका है। अब तक 74 दिनों में 42257  श्र्द्धालुओं ने गुरुद्वारा श्री करतारपुर साहिब के दर्शन दीदार किए। जिससे पाकिस्तान द्वारा 823100 डॉलर फीस वसूली गई है। दोनों देशों द्वारा किए समझौते तहत एक दिन में पांच हजार श्रद्धालु जा सके थे और अन्य विशेष दिन, जिनमें गुरुपर्व भी आ जाता है, इस दिन 10 हजार श्रद्धालु भी जा सकते हैं, परंतु नवम्बर व दिसम्बर के महीनों के अलावा जनवरी 22 ्रतक यह आंकड़ा पार नहीं हुआ। चाहे कि दिसम्बर, जनवरी के महीने में कड़ाके की सर्दी होने के बावजूद भी श्रद्धालुओं का निरंतर गुरुद्वारा साहिब में माथा टेकना जारी है, परंतु यह संख्या पाकिस्तान गुरुद्वारा कमेटी की उम्मीद से कहीं कम है। पाकिस्तानी इमीग्रेशन और गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी द्वारा श्रद्धालुओं को बार बार संख्या बढ़ाने के लिए कहा जाता है और उनसे यह उम्मीद लगाई जा रही है कि शायद सर्दी निकलने के बाद मौसम ठीक होने पर संख्या में भी वृद्धि हो। इसके अलावा गुरुद्वारा साहिब प्रबंधक कमेटी के प्रधान सतवंत सिंह द्वारा भी पिछले दिनों भारत सरकार को एक दिन में पांच हजार श्रद्धालु भेजने की अपील की गई थी।  गुरुद्वारा साहिब के कांप्लैक्स में पाकिस्तान के वासियों को आने की इजाजत है, परंतु सिखों की मान-मर्यादा को लेकर औरकिसी किस्मकी कोताही से डरते पाकिस्तान के बशिंदे दरबार साहिब के अंदर पहली मंजिल पर नहीं जा सके। गुरुद्वारा कमेटी द्वारा रखे कर्मचारी दरवाजे पर खड़े रहते हैं जो केवल भारत से आए श्रद्धालुओं और पाकिस्तान की सिख संगत को ही अंदर जाने देते हैं। वो गुरुद्वारा साहिब के बाहर बनी मजार, कुएं, सरां के अलावा पाक अधिकारियों द्वारा दी इजाजत वाले स्थानों पर ही जाते हैं।
लंगर घर में हर कोई छक सकता है अब प्रसादा
पिछले दिनों यह देखने सुनने में आया था कि पाकिस्तान केबशिंदों को लंगर खाने की इजाजत नहीं दी जा रही, परंतु पाकिस्तान के अधिकारियों और गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटियों का कहना है कि लंगर पाकिस्तान का कोई भी नागरिक छक सकता है। केवल कुछ शरारती तत्वों को लंगर खाने से रोका गया था। 
गुरुद्वारा साहिब में कीर्तन न होने पर श्रद्धालु निराश
 गुरुद्वारा श्री करतारपुर साहिब में नौ बजे अरदास उपरांत कीर्तन किया जाता था, परंतु श्रद्धालुओं का कहना है कि अब किसी भी लोगों द्वारा वहां कीर्तन नहीं किया जाता। यह भी वर्णननीय है कि पाकिस्तान में सिख कम संख्या में है और पेशावर व सिंध के सिखों की बोली भी पंजाबी नहीं है, जिसके कारण गुरुद्वारा साहिब में कीर्तनी जत्थों की कमी नजर आती है। कुछ मुस्लिम भाईचारे से संबंधित पंजाबी का ज्ञान व श्रद्धा रखने वालों द्वारा कीर्तन किया जाता था, परंतु अब वो भीबंद हो चुका है। शिरोमणि कमेटी अमृतसर द्वारा कुछ दिन जत्थे भेजे गए थे, जिनको पाकिस्तान की गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने मना कर दिया था और बाद में भारत से जाने वाले कीर्तनी जत्थों के लिए इस्लामाबाद में पाकिस्तान गुरुद्वारा कमेटी के प्रबंधकों और सरकारी अधिकारियों में इस मुद्दे को लेकर बातचीत हुई थी। हालातों से ऐसा प्रतीत हो रहा है कि वो बातचीत सिरे नहीं चढ़ी। इस संबंधी शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी अमृतसर के पदाधिकारियों द्वारा पाकिस्तान की सरकार को कीर्तनी जत्थों और लांगरियों को वीजा देकर सप्ताह-सप्ताह भेजने की अपील भी की गई थी, लेकिन वो भी बात सिरे नहीं चढ़ी।