चांद की रहस्मय दुनिया

चांद हमारी संस्कृति और प्रतिदिन के जीवन से जुड़ा हुआ है। हमारे पास लोक गीतों में ऐसे अनगिनत विवरण हैं। हमारी तुलना को चांद के साथ जोड़ा जाता है। चांद धरती का इकलौता पुत्र है। मानव अपने जीवन से लेकर ही इसके बारे में सोचता रहता है। कभी उसके बीच का द़ाग उसको बुड्ढी माई के चरखे  कातने जैसा लगता है, तो कभी चांद रोटी की तरह लगता है। 20 जुलाई, 1969 का दिन इन धारणाओं का तोड़ने वाला एक बहुत बड़ा दिन था। जब अमरीका ने मनुष्य को चांद पर उतार कर सभी को हैरान कर दिया। उस रात यह समाचार सुन कर मैं सो न सका।  वह मानने को तैयार ही नहीं था कि चन्द्रमा भी धरती की तरह मिट्टी व चट्टानों से बना है। चाहे वैज्ञानिकों ने सदियों पहले यह बातें करनी शुरू कर दी थी, लेकिन अनपढ़ता के कारण आज भी लोग मानने को तैयार नहीं हैं। आज मानव के पास आसमान को देखने का समय तक नहीं है। पिछले वर्ष चांद पर मानव के उतरने की 50वीं वर्षगांठ मनाई गई थी। कुछ वर्ष पूर्व मानव ने चांद के लिए उड़ान भी भरी थी। चांद का जन्म साढ़े चार अरब वर्ष पूर्व हुआ माना जाता है। जबकि मंगल ग्रह के आकार की कोई अन्य पृथ्वी हमारी पृथ्वी से आ टकराई। ऐसे आकाशीय पिंड कई बार हमारी पृथ्वी के ग्रहों के भीतर आ गए। बैईया नामक आकाशीय पिंड के साथ टकराने के कारण हमारी धरती का एक बड़ा हिस्सा इससे टूट कर आकाश में बिखर गया। धरती के गुरुत्त्वकर्षण के कारण यह मलबा इकट्ठा होता रहा और धरती के आस-पास घूमने लगा। अब भी यह टुकड़ा हमारी धरती का एक उपग्रह है। चांद की अपनी कोई रोशनी नहीं है, बल्कि यह सूर्य की किरणों को पूरी तरह न सोखने के कारण वापिस कर देता है। जिसको हम चांद कीचांदनी कहते हैं और इन परिवर्तित हुई किरणों के कारण चांद हमें चमकता हुआ दिखाई देता है। चांद से रोशनी को धरती तक आने के लिए 1.3 सैकेंड लगते हैं। चांद की दूरी धरती से घटती बढ़ती रहती है। चांद अपने ग्रह कार्य पर धरती के गिर्द चक्कर काटता रहता है। इसकी रफ्तार 3683 किलोमीटर प्रति घंटे के लगभग है। चांद की दूरी भी झुकी हुई है। और अपना स्थान बदलती रहती है। चांद अपनी धूरी पर धरती की तरह झुक कर चलता है और यह झुकाव 1.5 है। चांद का एक हिस्सा धरती से दिखाई देता है। यदि एक हवाई जहाज़ ने चांद तक 3 लाख 87 हज़ार किलोमीटर का सफर तय करना हो तो उसको 18 दिन लगते हैं। चांद की चट्टानों के पास बहुत-सी आक्सीजन है। चांद और सूर्य की ओर तापमान बहुत गर्म है अर्थात् 127 डिग्री सैल्सियस। पानी तक उबल सकता है, लेकिन इसके विपरीत तरफ 173 डिग्री तक ठंड हो सकती है। चांद के कारण धरती की गुरुत्त्वता 2.3 मिली सैकेंड 100 वर्ष के बाद धरती की लम्बाई 2.3 मिली सैकेंड घट रही है और चांद 3.8 सैंटीमीटर प्रति वर्ष धरती से दूर होता जा रहा है। 20 जुलाई, 1969 को नासा का स्पेस क्राफ्ट अपोलो-11 पहली बार धरती के मनुष्य को चांद पर लेकर गया। इसमें 38 वर्षीय नील आर्मस्ट्रांग थे। बज ऐलड्रीन भी चांद पर उतरे जबकि शटल कमांडर माइकल क्लोनिज़ 90 किलोमीटर की ऊंचाई पर उड़ता रहा । अब तक 6 स़फर मिशन चांद के धरातल तक पहुंच चुके हैं। चांद अपनी धूरी के द्वारा उतने ही दिनों में चक्कर पूरा करता है जितना समय  वह धरती के इर्द-गिर्द घूमने को लगाता है। यह भी कारण है कि चांद का एक हिस्सा धरती की ओर रहता है। दूसरा हिस्सा जिसको डार्क साइड कहा जाता है धरती के लोगों ने कभी नहीं देखा। लेकिन प्रकृति बदलती रहती है। हो सकता है कि कभी चांद भी धरती को छोड़ कर चला जाए। चांद हर वर्ष धरती से 3.8 सैंटीमीटर दूर होता जा रहा है। जैसे-जैसे धरती का गुरुत्त्वाकर्षण कमज़ोर होता जाएगा यह दूरी तेजी से बढ़ती जाएगी। धरती की अपनी गति भी धीमी होती जा रही है, जिस कारण दिनों की लम्बाई और चांद पर आधारित कैलेंडर भी बदले जाएंगे। चांद पर अंतिम मिशन अपोलो-17 था जोकि 14 दिसम्बर, 1972 को किया गया। लेकिन अधिक खर्चे के कारण इस मिशन को रोकना पड़ा। वी. सैटर्न जैसे रॉकेट बनाना कोई आसान काम नहीं । उसके बाद कोई मानवीय मिशन चांद पर नहीं गया। लेकिन अब फिर से नासा ऐसे मिशन भेजने की योजना बना रहा है। इसी के साथ ही मंगल पर मानव भेजने की तैयारी की जा रही है। ‘मिशन मंगल’ के लिए चांद को एक पड़ाव के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।  तारामंडल की जानकारी हमसे कहीं अधिक हमारे पूर्वजों को थी। जिन्होंने चांद के बदले स्वरूपों को देखना और जानना चाहा था। इसी कारण चांद आज भी हमारे लिए रहस्य है। 50 वर्ष बीत जाने के बाद भी चांद पर हुए आविष्कारों की हमें कोई जानकारी नहीं है।