ऐसे अस्तित्व में आई सिलाई मशीन

लगभग 200 वर्ष पूर्व अमरीका के वरमीण्ट नामक स्थान पर एक कुशल कारीगर रहता था। उसके मन में सबसे पहले सिलाई मशीन के निर्माण की बात पैदा हुई। उसने एक ढांचा तो बनाया किन्तु अपने लापरवाह स्वभाव के कारण वह लोगों के समक्ष उसे प्रकट नहीं कर सका। बस, उसकी खोज यों ही बेकार गई।रेवरेण्ड जान के बाद 1830 में बरथेलोमी थिलीनियर नाम के फ्रांसीसी वैज्ञानिक के मन में सिलाई मशीन बनाने की बात पैदा हुई। थिमोनियर स्वयं एक दर्जी रह चुका था। उसने केवल लकड़ी से मशीन का ढांचा बनाया, जो देखने में सुंदर और आकर्षक नहीं था लेकिन फ्रांस के काफी घरों में बरथेलोमी द्वारा बनाई गई मशीनों का ही प्रयोग होने लगा। फ्रांस के सैनिकों की वर्दियां भी इसी मशीन से तैयार होती थी।इस मशीन के निर्माण से, हाथ से काम करने वाले दर्जियों को नुकसान जरूर हुआ। उन्होंने बरथेलोमी द्वारा बनाई गई मशीनों का काफी विरोध किया लेकिन बरथेलोमी अपनी मशीन में सुधार करने का प्रयत्न करता रहा। उसने लकड़ी के स्थान पर धातु का प्रयोग भी मशीन में किया। 1832 के आसपास अमरीका के वाल्टाहण्ट नामक व्यक्ति ने भी सिलाई मशीन का निर्माण किया। उसकी मशीन में ‘लॉक स्टिच’ की भी व्यवस्था थी लेकिन वाल्टाहण्ड की सिलाई मशीन का प्रचार ज्यादा न हो सका। 1844 में व्यक्ति ने दूसरे प्रकार से सिलाई मशीन बनाई। उसने यह मशीन अपनी मौलिक सूझबूझ से तैयार की थी। उसने पहले निर्मित की गई मशीनों को देखा तक नहीं था। होब द्वारा ही सिलाई मशीन का आविष्कार माना जाता है। होब काफी गरीब परिवार में जन्मे थे। उन्हें अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए स्वयं अपने हाथों से सिलाई करनी पड़ती थी इसलिए उन्होंने कड़े परिश्रम से ऐसी मशीन तैयार की जिससे गरीब से गरीब व्यक्ति अपना भरण-पोषण कर सके। 1947 में इटली के कारीगरों ने तमाम प्रकार की नई-नई मशीनें निर्मित कर सिलाई मशीनों के इतिहास में धूम मचा दी। आजकल तो सिलाई के लिए सैंकड़ों प्रकार की मशीनें पूरे विश्व में प्रचलित हैं। (उर्वशी)