कला-कुशलता का नमूना है पक्षियों का घौंसला

संसार में हर प्राणी को एक घरनुमा सुरक्षित जगह की जरूरत होती है, चाहे वह जंगल का राजा शेर हो या फु दक  फुदक कर एक से दूसरे पेड़ में जा बैठने वाली कोई चिड़िया। कुछ जीवों के बारे में हम कह सकते हैं कि उनका कोई घर नहीं होता, लेकिन ये हमें लगता है।  घोंसले सिर्फ  पक्षियों की कलाबाजी का नमूना नहीं होते, उनके घोंसलों में उनकी बेहतरीन कला के दर्शन तो होते ही हैं और इसे बनाने में उनका अद्भुत कौशल भी लगा होता है। लेकिन कला और इस कुशलता के साथ ही चिड़ियों को अपना घोंसला बनाने में एक और महत्वपूर्ण चीज की जरूरत होती है, जिसे कड़ी मेहनत कहते हैं।जी हां, सुनने में थोड़ा अटपटा लग सकता है, लेकिन हकीकत यही है कि कई छोटे-छोटे पक्षियों को अपना खूबसूरत सा घोंसला बनाने के लिए कुछ दर्जन, सैकड़े या हजार नहीं बल्कि दसियों हजार बार उड़ना पड़ता है, तिनके-तिनके घोंसले की सामग्री जुटानी पड़ती है और इस मेहनत के दौरान, थकने, ऊबने या इस सबसे विचलित होने के लिए कोई सुविधा नहीं होती। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि एक घोंसला बनाने वाला पक्षी कितना मेहनतकश होता होगा। दकुछ पक्षी बहुत ऊंचे पेड़ों पर घोंसला बनाते हैं, कुछ पक्षी बहुत निचले पेड़ों में घोंसला बनाते हैं, कुछ तो पानी के ऊपर तैरता हुआ घोंसला बनाते हैं और दुनिया में सबसे कुशल घोंसला इंजीनियर मानी जाने वाली बया पक्षी नदियां, झीलों, सरोवरों में झुके ऐसे पेड़ों को अपना घोंसला बनाने के लिए प्राथमिकता से चुनती है, जिनका एक हिस्सा पानी की तरफ झुका हुआ बिल्कुल उसे छूता हुआ सा होता है।पक्षी घोंसलों में वही सब काम करते हैं जैसे इंसान अपने सुरक्षित घरों में करता है मसलन रात में आराम, बारिश में बारिश से बचना, ज्यादा धूप से बचना। इस तरह देखें तो पक्षी भी अपने घोंसलों से वही सारे काम लेता है, जो इंसान अपने घरों से लेता है। लेकिन जहां तक घोंसलों को बनाने में लगने वाली मेहनत का सवाल है, तो इसकी आमतौर पर कभी चर्चा नहीं होती। क्योंकि इंसान अपने श्रम के अलावा दूसरे किसी के श्रम को भाव नहीं देता। मेल विवर बर्ड जो कि घोंसला बनाता है, वह इसके लिए पानी के किनारे उगने वाली मज़बूत घास की लंबी पत्तियों का इस्तेमाल करता है और दो पक्षियों के लायक सुरक्षित घोंसला बनाने में उसे छह से सात महीने लग जाते हैं। इस दौरान वह कम से कम पांच हजार से सात हजार बार उड़ान भरता है, तब कहीं जाकर उसका घोंसला पूरा होता है। जरा सोचिए यह कितनी कड़ी मेहनत है। लेकिन रुकिये ये मेहनत तब तक किसी काम की नहीं, जब तक आधा घोंसला बनने तक मादा पक्षी घोंसले को पास नहीं कर देती। अगर मादा पक्षी को घोंसला पसंद नहीं आता तो नर पक्षी उस घोंसले को तहस नहस कर डालता है और फि र शून्य से शुरू करके नया घोंसला बनाता है। इस बनावट में उसे चार से छह महीने तक लग जाते हैं, कई बार इससे भी ज्यादा। लेकिन विवर पक्षी जो खूबसूरत घोंसला तैयार करता है, वैसी उत्कृष्ठ तकनीकी आज तक कोई विज्ञान विकसित नहीं कर पाया। विवर पक्षी का यह घोंसला वाटर प्रूफ होता ही है, चाहे कितनी ही तेज आंधी क्यों न आए, लेकिन यह घोंसला पेड़ की डाली से नहीं टूटता, बशर्ते ये पेड़ ही न टूट जाए। विवर पक्षी अकेला ऐसा पक्षी नहीं है जो अपना घोंसला बनाने में इतनी मेहनत या उत्कृष्ट तकनीक का प्रदर्शन करता है। लाखों पक्षी अपनी विशिष्ट कुशलता से ऐसे ही एक से बढ़कर एक उत्कृष्ठ घोंसलों का निर्माण करते हैं, जिनमें कुछ घोंसलों का आकार कई हजार किलो तक का होता है। लब्बोलुआब यह कि घोंसलों की दुनिया लगती भले मामूली हो, लेकिन वह उतनी मामूली होती नहीं है।

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