शहरों के लिए सिरदर्द बने आवारा पशु

सुबह के पांच बजे हैं। हम राजधानी दिल्ली में हमेशा व्यस्त रहने वाले विकास मार्ग के कड़कड़ी मोड़ फ्लाईओवर के नीचे हैं। यहां से यूपी की तरफ  जाने वाली सड़क पर जाम लगा है। वजह वाहनों की अधिकता नहीं बल्कि आवारा पशुओं का सड़क पर कब्जा है। करीब 30-35 से ज्यादा गायें सड़क पर कुछ खड़ी हैं, कुछ बैठी हैं। लोग हताशा में हॉर्न बना रहे हैं, कुछ लोग गाड़ियों से उतरकर गायों को इधर उधर हांक रहे हैं, लेकिन बात बन नहीं रही। अब पुलिस आयी है, वह भी लोगों के साथ सड़क को पशुओं से मुक्त कराने में लगी है। 
दिन के 11:30 बजे हैं, राजधानी दिल्ली से सटे हरियाणा के गुरुग्राम नगर के सेक्टर 46 की मुख्य सड़क पर बड़ी अफफा-तफरी का माहौल है। कारण कुछ गायें और कुछ भैंसें सड़क के बीचोंबीच बैठकर पागुर ले रही हैं। लोग उनके इर्दगिर्द से दोपहिया वाहन तो लेकर निकले जा  रहे हैं, लेकिन कारों और दूसरे वाहनों का रास्ता रुका हुआ है। लोग बार-बार पुलिस को फोन कर रहे हैं और पुलिस ‘अभी पहुंची’ करके आधा घंटे से अभी तक नहीं पहुंची। दोपहर बाद 3 बजे का समय है। मुम्बई के कांदीवली इलाके की न्यू लिंक रोड पर भीड़ जमा है। 
वजह एक मोटरसाइकिल सवार सड़क के बीचोंबीच खड़ी दो भैसों के कारण डिवाइडर से जा टकराया और गिर पड़ा है। हालांकि उसे गंभीर चोट नहीं आयी, लेकिन लोग बताते हैं  कि पिछले एक पखवाड़े में दो लोग यहं अपने हाथ-पैर, तुड़वा चुके हैं, जिसका कारण यही आवारा पशुओं का सड़क पर कब्जा है। राजस्थान की राजधानी जयपुर के फुलेरा इलाके में दिन हो या रात, सुबह हो या शाम, आवारा पशुओं का जमावड़ा लगा रहता है, जो हर तरह के वाहनों के लिए सिरदर्द बन गया है। आये दिन कोई न कोई हादसा होता रहता है, लेकिन म्युनिस्पैलिटी के कान पर जूं नहीं रेंग रही।
सिलिगुड़ी की मशहूर हिलकॉर्ट रोड पर अकसर पशुओं का झुंड मंडराता रहता है जिस कारण यहां यातायात व्यवस्था बुरी तरह से चरमरायी रहती है। सबसे बड़ी समस्या दुपहिया चालकों और राहगीरों को होती है, क्योंकि महानंदा पुल पर दोनों किनारे अकसर आवारा सांडों का जमावड़ा होता है जो किसी न किसी को घायल करते रहते हैं। 
इन घटनाओं से साफ  है कि देश का कोई छोटा शहर हो या बड़ा शहर अथवा महानगर, आवारा पशुओं की समस्या से देश का कोई भी शहर मुक्त नहीं है। दिल्ली, मुम्बई, चेन्नई, बंग्लुरु और हैदराबाद जैसे महानगरों में भी आवारा पशु पॉश से पॉश इलाके की सड़कों में घूमते रहते हैं और सड़क पर चलने वाले लोगों के लिए सिरदर्द बनते रहते हैं। बहुत साल पहले भारत में दक्षिण अफ्रीका की क्रिकेट टीम टैस्ट मैच खेलने आयी थी। दौरे का पहला टैस्ट मैच बड़ौदा में होना था। तब दक्षिण अफ्रीका की टीम बड़ौदा में घूम रहे आवारा पशुओं से बहुत परेशान हो गयी थी। टीम के प्रबंधक ने तो इसकी शिकायत बीसीसीआई से भी की थी। भारत घूमने आने वाले ऐसे विदेशी सैलानी लौटकर जब हिन्दुस्तान पर कोई किताब, लेख, सोशल मीडिया में कोई संस्मरण आदि लिखते हैं तो हिन्दुस्तान के तमाम जादुई आकर्षणों के साथ साथ भारतीय शहरों में घूमने वाले और लोगाें के लिए सिरदर्द बनने वाले आवारा पशुओं का जिक्त्र करना नहीं भूलते।
एक अनुमान के मुताबिक कोई 10 से 12 लाख पशु देश के 3000 से ज्यादा छोटे बड़े शहरों में हमेशा सड़कों पर मौजूद रहते हैं। वैसे तो इनमें से काफी बड़ी संख्या उन पशुओं की होती है, जिनके मालिक शाम, सुबह उनका दूध निकालते हैं और दिन में आवारा छोड़ देते हैं लेकिन इन आवारा पशुओं में दो तिहाई से ज्यादा आवारा ही होते हैं, जिनका कोई मालिक नहीं होता। इन आवारा पशुओं के चलते हर साल 4000 से ज्यादा सड़क दुर्घटनाएं होती हैं। करीब 2000 लोग मारे जाते हैं और 50,000 से ज्यादा लोग घायल हो जाते हैं। ये आवारा पशु सिर्फ  शहरों की ट्रैफिक व्यवस्था को ही परेशानी में नहीं डालते बल्कि अधिकतर लोग इन पशुओं की हिंसा का शिकार होकर मर भी जाते हैं और बड़े पैमाने पर घायल या अपाहिज हो जाते हैं। भारत में पशुओं से संबंधित बहुत संवेदनशील कानून हैं। मसलन भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत पशुओं को पीटा नहीं जा सकता, उन्हें शराब नहीं पिलायी जा सकती, न ही उन्हें भूखा रखा जा सकता है और न ही उन्हें बहुत तंग जगहों में बांधा या रखा जा सकता है। इसी तरह पशुओं को लेकर ऐसा भी कानून है कि उनकी जान लेने वाले पर वैसा ही हत्या का मामला चलता है, जैसे कि किसी इन्सान को मार देने पर। 
वक्त आ गया है कि हम देश के पशु धन से व्यवस्थित तरीके से निपटें। पशुपालकों से उनके हितों को जानें और उन्हें आधुनिक जीवन की मुख्यधारा में लाएं। अगर ऐसा नहीं किया जाता तो भारतीय शहर जो पहले से ही अपनी व्यवस्थाओं से चरमरा रहे हैं, आवारा पशुओं की जानलेवा हरकतों से किसी भी कीमत में रहने लायक नहीं रह जायेंगे।