भाग्यहीनता एवं कर्म फल  किस्मत का लिखा नहीं है

अक्सर जब कुछ अपने हिसाब से न हो तो अपने-आप से यह कहने का मन करता है कि ऐसा मेरे ही साथ क्यों होता है, मेरी तो किस्मत खराब है, मैंने किसी का क्या बिगाड़ा, जो यह देखने को मिल रहा है या फिर ज़रा सी बात पर क्रोधित हो आना, दूसरे को भला-बुरा कहना या स्वयं ही रोने लगना जैसे कि अब जीवन में कुछ बचा ही नहीं। इसके विपरीत कुछ लोग कैसे भी हालात हों, कितनी भी कोई आलोचना करे और जीवन में कैसे भी उतार-चढ़ाव आएं, ऐसा व्यवहार करते हैं जैसे कि उन पर किसी भी चीज़ का ज्यादा असर नहीं पड़ता और अगर थोड़ा बहुत पड़ भी जाए तो वह कंधे पर पड़ी धूल या बारिश की बूंद की तरह ऐसे झटक देते हैं कि मानो कुछ हुआ ही न हो और पहले की तरह मस्त मौला जैसा बर्ताव करते रहते हैं।
ज्योतिष का मायाजाल
ऐसे लोग जो निराशा के भंवर में डावांडोल हो रहे हों या आशा के समुद्र में हिचकोले खाने का लुत्फ  उठा रहे हों, उन लोगों के सम्पर्क में ज्यादातर आते हैं, जो उनकी कुंडली के ग्रह देखकर या हाथों की रेखाएं पढ़कर या फिर भविष्य जानने के दूसरे तरीकों जिसमें टैरो कार्ड, फेंग शुई से लेकर तारामंडल की चाल तक शामिल है, यहां तक कि साधु संन्यासी के पास भी, अवश्य जाते हैं ताकि अपना भविष्य जान सकें।
कर्म और उसका परिणाम
जिस प्रकार प्रत्येक क्रिया की प्रतिक्रिया होती है उसी प्रकार हम चाहे अपनी समझ से कोई अच्छा  काम करें या जानबूझ कर बुरा काम अथवा अनजाने में ही दोनों में से एक काम हो जाए तो भी उसका परिणाम अवश्य ही निकलेगा और  कर्ता को उसका फल मिलना तय है।
व्यक्ति के तौर पर और समाज में सामूहिक रूप से भी कोई काम किया जाता है तो उसका आधार परवरिश, वातावरण और आर्थिक स्थिति ही होता है। उदाहरण के लिए चोरी डकैती, हत्या व अन्य अपराध से लेकर स्वयं का कोई लाभ न होने पर भी दूसरे का अनिष्ट करने तक का कर्म हो सकता है कि विरासत में मिले हों या संगत के नतीजे के तौर पर हों, पर उनका फल मिलना निश्चित है। इसी तरह अपनी हानि की संभावना को जानते हुए भी सकारात्मक, सुहृदयता, ज़िम्मेदारी के साथ कोई भी कार्य करने पर परिणाम जो भी हो, मन में ग्लानि नहीं रहती।
जहां तक भाग्य का संबंध है, वह हमारा लक्ष्य तो दिखा सकता है लेकिन उस तक पहुंचना तो स्वयं को ही पड़ेगा। इसके अलावा एक भी गलत कदम कभी भी सही मोड़ पर नहीं ले जा सकता। जहां तक भाग्य का संबंध है तो इसका निर्धारण किसी के वश में नहीं, मिसाल के लिए पहला विश्व युद्ध दो देशों के राजपरिवारों के बीच घटी एक साधारण सी घटना से शुरू हुआ और पूरी दुनिया उसकी चपेट में आ गई। इसी तरह दूसरे विश्व युद्ध में यदि एक नाजी ने सैकड़ों यहूदियों को मौत के घाट उतार दिया तो इसका मतलब यह नहीं कि इस अकेले को उसका फल भोगना था बल्कि पूरी दुनिया को भोगना पड़ा।
वर्तमान में जीना
हालांकि यह संभव नहीं है कि जीवन में घटी किसी घटना को मिटाया जा सके लेकिन इतना तो किया ही जा सकता है कि उसे दिमाग के कम्प्यूटर की हार्ड डिस्क में एक कोने में रखकर भुला दिया जाये और जो वर्तमान में घट रहा है। उसके अनुसार यह सोचकर जिया जाए कि यह भी उसी मेमोरी का हिस्सा बनने वाला है, जिसे भुलाया जा चुका है। ऐसा न करने पर वह बात जो न जाने कब हुई थी, आज भी सीने पर एक बोझ की तरह बनी रहेगी। मतलब यह कि पिछला कोई भी संबंध जो चाहे किसी के अच्छे या बुरे व्यवहार के कारण बना हो, उससे अपने-आप को अलग रख कर या तोड़कर ही उससे मिली खुशी या गम को भुलाया जा सकता है वरना पुरानी यादें जीने नहीं देंगी और वर्तमान के सुखद क्षणों का मज़ा भी नहीं ले पाएंगे। (भारत)