उचित नहीं नए संसद भवन के निर्माण पर विवाद 

संसदीय लोकतांत्रिक प्रणाली के तहत शासित किसी भी देश में नए संसद भवन के निर्माण का शिलान्यास ऐतिहासिक पल होता है। लोकतंत्र में असहमति, मतभेद, सरकार का विरोध आदि सामान्य बातें हैं, पर किसी परिपक्व और संतुलित राजनीति की पहचान यही है कि ऐसे ऐतिहासिक अवसर पर सब साथ दिखें, मगर 10 दिसम्बर को ऐसा नहीं हुआ। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा नए संसद भवन का शिलान्यास और भूमि पूजन किया गया। उन्होंने देश को संबोधित भी किया। विदेशी राजनयिक तक आए। कुछ दलों ने भी भाग लिया, लेकिन अनेक प्रमुख दलों ने इससे अपने को अलग ही नहीं रखा, कार्यक्त्रम और नए भवन का उपहास तक उड़ाया। इसे दुर्भाग्यपूर्ण के अलावा और क्या शब्द दिया जा सकता है। इससे फिर इस चिंताजनक सच की पुष्टि हुई कि हमारी राजनीति का एक बड़ा समूह दिशाभ्रम का भयावह शिकार है तथा उस पर देश, लोकतंत्र और भावी इतिहास को गौरवूपर्ण बनाने की जगह क्षुद्र राजनीतिक लक्ष्य हाबी है। यह कौन सा तर्क हुआ कि देश में अगर कोई आंदोलन हो रहा है या कुछ अन्य समस्याएं हैं तो संसद भवन निर्माण का समारोह रोक दिया जाए या निर्माण की योजना को स्थगित किया जाए। वस्तुत: यह विरोध के लिए विरोध है, इसके पीछे ठोस तर्क और विचारों का पूरा अभाव है।
लम्बे समय से संसद भवन ही नहीं, सचिवालय, और आसपास के अन्य सरकारी कार्यालयों, भवनों तथा अन्य निर्मित स्थलों के भविष्य का ध्यान रखते हुए आवश्यकतानुसार पुनर्निर्माण या नए सिरे से निर्माण की बात की जा रही थी। जब मोदी सरकार ऐसा कर रही है तो लोग विरोध करने लगे हैं। प्रश्न है कि क्या इसकी आवश्यकता  नहीं थी? व्यावहारिक रूप में सरकारें एवं विपक्ष ही नहीं, अधिकारी-कर्मचारी तथा इनसे किसी भी तरह जुड़े लोग मानते हैं कि भारत को आज या कल नए तरीके से इनका निर्माण करना ही होगा। यह बात अलग है कि समस्याओं को समझते हुए भी किसी सरकार ने पहल करने का साहस नहीं दिखाया। इसमें दो राय नहीं कि हमारा वर्तमान संसद भवन निर्माण का एक बेजोड़ नमूना है किंतु यह जब बना था, तब आज की तरह आबादी, सरकार के कामकाज में जुड़े व्यापक आयामों, संसद में सदस्यों की संख्या का शायद किसी को अनुमान नहीं था। बीच-बीच में थोड़े परिवर्तन और निर्माण आदि होते रहे पर संसद के लिए जिस तरह की मरम्मत और व्यापक बदलावों की जरूरत है, वो नहीं हो पा रहा था। राज्यसभा और लोकसभा दोनों में बैठने की क्षमता भी अधिकतम स्तर पर पहुंच चुकी है। मंत्रालयों के कार्यालय भी अलग-अलग जगहों पर हैं। इससे सुरक्षा व्यवस्था सहित अनेक समस्याएं आ रही हैं। इसलिएनया निर्माण अपरिहार्य है, और अगर इसे करना  है तो टुकड़े-टुकड़े में बिना योजना के करने की जगह, समूचे लुटियन्स जोन का एक साथ योजना बनाकर किया जाना चाहिए। इसके लिए आज़ादी की 75 वीं वर्षगांठ यानी 2022 तक पूरा करने से बेहतर अवसर नहीं हो सकता है। नए संसद भवन का निर्माण उस समय तक पूरा होने का लक्ष्य रखा गया है।
 जैसा कि हम जानते हैं, 1911 में ब्रिटिश आर्किटेक्ट एडविन लुटियन्स के डिजाइन पर निर्माण के बाद नई दिल्ली का नया स्वरूपप अस्तित्व में आया। 1921-27 के बीच संसद भवन बना। उस समय के निर्माण के बाद के लिए इंडिया गेट से राष्ट्रपति भवन तक के तीन किलोमीटर लंबे राजपथ के आसपास के इलाके की पहचान हुई। इसे ही सेंट्रल विस्टा नाम दिया गया। तब से लुटियन्स जोन के इस इलाके को सेंट्रल विस्टा के नाम से भी जाना जाता है। इसीलिए मोदी सरकार ने इसे सेन्ट्रल विस्टा परियोजना नाम दिया है। मौजूदा संसद भवन से सटे त्रिकोणीय आकार के नए संसद भवन की पूरी योजना को देखने से आभास होता है कि इसके पीछे कितना गहरा व दूरदर्शी चिंतन तथा परिश्रम निहित है। योजनानुसार नए संसद भवन को अगले सौ वर्ष की आवश्यकताओं का ध्यान रखते हुए बनाया जाएगा ताकि भविष्य में कठिनाई न हो। लोकसभा और राज्यसभा दोनों के आकार में वृद्धि की गई है। अभी लोकसभा कक्ष में 590 लोगों के बैठने की व्यवस्था है। नई लोकसभा में 888 सीटें होंगी और दर्शक गैलरी में 336 से ज्यादा लोग बैठ सकेंगे। संयुक्त सत्र में 1224 सदस्यों के बैठने की व्यवस्था होगी। संयुक्त अधिवेशन के लिए केन्द्रीय कक्ष नहीं होगा, लोकसभा कक्ष ही संयुक्त अधिवेशन के काम में लाया जाएगा। राज्यसभा में वर्तमान 280 की जगह 384 सीटें होंगी और दर्शक गैलरी में 336 से ज्यादा। भवन में एक संविधान हॉल बनेगा जो आम जनता के लिए खुला होगा ताकि वे संविधानसे संबंधित सारी जानकारी पा सकें। यह भवन अत्याधुनिक, तकनीकी सुविधाओं से युक्त और ऊर्जा कुशल होगा। इसमें उच्च गुणवत्ता वाली ध्वनि तथा दृश्य-श्रव्य सुविधाएं, संसद सदस्यों के लिए लाउंज, पुस्तकालय, कई समिति कक्ष, भोजन क्षेत्र, पार्किंग स्थान, आपातकालीन निकासी आदि होगी। इमारत उच्चतम संरचनात्मक सुरक्षा मानकों का पालन करेगी, जिसमें भूकंपीय क्षेत्र 5 की आवश्यकताओं को पूरा करना भी शामिल है। क्या कोई ईमानदारी से कह सकता है कि इन सबकी अनिवार्यता नहीं थी?  केन्द्रीय सचिवालय के लिए दस भवन बनेंगे। इनमें मंत्रालयों के कार्यालय यानी कृषि भवन, शास्त्री भवन आदि सब आज और भविष्य की आवश्यकताओं को ध्यान रखकर नए बनाए जाएंगे। सच यही है कि पुराने भवनों में भविष्य तो छोड़िए, आज की समस्त आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए भारी कवायद करनी पड़ रही थी। हल्के परिवर्तन से काम नहीं चल सकता था। 
किसी देश का संसद भवन केवल एक निर्जीव इमारत नहीं हो सकता। उससे देश की पहचान की भी अभिव्यक्ति होनी चाहिए।  वस्तुत: नए भवन की सज्जा में भारतीय संस्कृति, क्षेत्रीय कला, शिल्प और वास्तुकला की विविधता का समृद्ध मिलाजुला स्वरूप होगा। सबसे बड़ा सवाल पर्यावरण को लेकर उठाया जाता रहा है। उच्चतम न्यायालय में डाली गई याचिकाओं का मुख्य आधार यही है। लोकसभा सचिवालय का नोट कहता है कि यह सुनिश्चित करने के लिए विशेष ध्यान दिया जा रहा है कि पर्यावरण संबंधी सभी सुरक्षा उपायों का पालन किया जाए। हम समझते हैं कि पर्यावरण एक्टिविस्टों को थोड़ा धैर्य रखना चाहिए।  - मो. 98110-27208