जम्मू-कश्मीर में रोहिंग्याओं को बसाने का षड्यंत्र

जम्मू-कश्मीर में लम्बे समय तक मुख्यमंत्री रहे फारूख अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती, गुलाम नबी आज़ाद और उमर अब्दुल्ला ने घाटी के मूल निवासी पंडितों के पुनर्वास की तो कभी चिंता नहीं की, लेकिन म्यांमार से विस्थापित रोहिंग्या मुसलमानों को विधिवत बसाने का इंतजाम जरूर कर दिया। अब इस साजिश का खुलासा केन्द्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के प्रशासन ने जांच के बाद किया है। इन्हें भारतीय नागरिक बनाने का कानूनी काम ऐसे एनजीओ ने किया जिसके तार नेशनल कांफ्रैंस और पीडीपी से जुड़े होने के साथ यूएई और पाकिस्तान से भी जुड़े थे। इन देशों से हवाला के मार्फत धन मंगाने के सबूत जांच में मिले हैं। ये सभी शरणार्थी हिंदू व सिख बहुल इलाकों में बसाए गए। एनजीओ ने इन्हें घर भी खरीदकर भी दिए। रोहिंग्याओं के स्थायी तौर से बस जाने पर जब पड़ोसियों को दिक्कतें हुईं तो लाचार हिंदु, सिख पुश्तैनी घर बेचकर दूसरी जगह रहने को विवश हुए। इनमें से अधिकांश रोहिंग्या शरणार्थियों को पश्चिम बंगाल के मालदा और आस पास के जिलों के शरणार्थी शिविरों से लाकर बसाया गया था। इन्हें ऐसे संवेदनशील क्षेत्रों में बसाया गया है, जहां ये आतंकियों को शरण देने के साथ भोजन पानी आसानी से दे सकते हैं। कुल 2513 परिवार बसाए गए, जिनमें लोगों की संख्या 5514 है। पिछले तीन दशक से अधिक समय से पाकिस्तान पोषित आतंकवाद से ग्रसित इलाके में सुरक्षा के लिए ये रोहिंग्या खतरनाक बने हुए हैं।       
भारत सरकार ने रोहिंग्यों समेत सभी अवैध प्रवासियों के प्रति सख्ती दिखाते हुए संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायोग (यूएनएचसीआर) की ओर से जारी होने वाले शरणार्थी पहचान-पत्र की मान्यता दो साल पहले रद्द कर दी थी। दूसरी तरफ  नरेंद्र मोदी सरकार के दबाव में म्यांमार सरकार ने भारत से अनुरोध किया है कि यहां अवैध रूप से रह रहे रोहिंग्या शरणार्थियों की पहचान की पुष्टि के लिए जरूरी पहल की जाए। इस मकसद की पूर्ति के लिए दिल्ली स्थित म्यांमार दूतावास ने भारत सरकार को दो भाषाओं वाले फार्म का नया प्रारूप उपलब्ध कराया है, ताकि स्थानीय भाषा की जानकारी के आधार पर शरणार्थियों की पहचान तय की जा सके। इस नजरिए से भारत सरकार ने सभी राज्य सरकारों को शरणार्थियों अथवा घुसपैठियों की मूलभाषा के आधार पर नए सिरे से आंकड़े जुटाने के निर्देश दिए हैं। ये दोनों ऐसे आगे बढ़ाए गए कदम हैं, जिनसे इन प्रवासियों की वापसी आसान होगी। गृह मंत्रालय ने राज्यों को निर्देश दिए हैं कि रोहिंग्याओं सहित अवैध रूप से देश में रह रहे सभी लोगों को राज्य सरकारों की ओर से जारी किए गए मतदाता पहचान-पत्र, राशन-कार्ड, आधार-कार्ड और ड्राइविंग लाइसेंस आदि को रद्द किया जाए। 
केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से सभी राज्यों के पुलिस प्रमुखों और राज्य गृह मंत्रालयों को जारी विशेष पत्र में कहा गया है कि संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी शरणार्थी कार्ड भारत में कोई महत्व नहीं रखता है क्योंकि इस बाबत शरणार्थियों के विषय को लेकर हुए 1951 के संयुक्त राष्ट्र समझौते पर भारत ने दस्तखत ही नहीं किए हैं। इस कारण यह समझौता भारत पर लागू नहीं होता है। इनमें से केवल उन लोगों के आधार कार्ड बनेंगे जिन्हें शरणार्थी के रूप में भारत सरकार ने भारत में रहने की इजाज़त दी है। मालूम हो, भारत में रोहिंग्याओं के अलावा बांग्लादेशी और अफगानी घुसपैठिए भी बड़ी संख्या में रह रहे हैं। साफ  है, इन घुसपैठियों की पहचान ठीक से होती है तो सभी घुसपैठियों का देश निकाला आसान हो जाएगा।     
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग के अनुसार 14,000 रोहिंग्या भारत में रह रहे हैं जबकि इनके अनाधिकृत तौर से रहने की संख्या करीब 40,000 है। भारत में गैर-कानूनी ढंग से घुसे रोहिंग्या किस हद तक खतरनाक साबित हो रहे हैं, इसका खुलासा अनेक रिपोर्टों में हो चुका है। इसके बावजूद भारत के कथित मानवाधिकारवादी इनके बचाव में बार-बार आगे आ जाते हैं जबकि दुनिया के सबसे बड़े और प्रमुख मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि म्यांमार से पलायन कर भारत में शरणार्थी बने रोहिंग्या मुसलमानों में से अनेक ऐसे हो सकते हैं, जिन्होंने म्यांमार के अशांत रखाइन प्रांत में हिंदुओं का नरसंहार किया है। रोहिग्ंयाओं ने 25 अगस्त, 2017 को इस प्रांत के दो ग्रामों में 99 हिंदुओं की निर्मम हत्या कर उन्हें धरती में द़फन कर दिया था। रोहिंग्या आतंकियों ने अगस्त 2017 में रखाइन में पुलिस चैकियों के साथ म्यांमार के गैर-मुस्लिम बौद्ध और हिंदुओं पर कई जानलेवा हमले किए थे। इन हमलों में हजारों बौद्ध और हिंदू मारे गए थे। 
दूसरी तरफ  केंद्र सरकार ने रोहिंग्या मुसलमानों को देश में नहीं रहने देने की नीति पर शीर्ष अदालत में एक हलफनामा देकर साफ कर दिया था कि रोहिंग्या गैरकानूनी गतिविधियों में शामिल हैं। ये अपने साथियों के लिए फर्जी पेनकार्ड, वोटर आईडी और आधार कार्ड उपलब्ध करा रहे हैं। कुछ रोहिंग्या मानव तस्करी में भी लिप्त हैं। इन पर इन्सानी मांस खाने के भी आरोप हैं। मांस खाते हुए ये यू-ट्यूब पर देखे जा सकते हैं। देश में करीब 40,000 रोहिंग्या रह रहे हैं, जो सुरक्षा में सेंध लगाने का काम कर रहे हैं। इनमें से कई आतंकवाद में लिप्त हैं। इनके पाकिस्तान और आतंकी संगठन आईएस से भी संपर्क हैं। ये संगठन देश में आतंकी गतिविधियों को बढ़ावा देते हैं। देश में जो बौद्ध धर्मावलम्बी हजारों साल से शांतिपूर्वक रह रहे हैं, उनके लिए भी ये हिंसा का सबब बन सकते हैं। 2015 में बोधगया में हुए बम विस्फोट को पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा ने रोहिंग्या मुस्लिमों को आर्थिक मदद व विस्फोटक सामग्री देकर अंजाम दिया था। वैसे भी भारत के किसी भी हिस्से में रहने व बसने का मौलिक अधिकार केवल भारतीय नागरिकों को है, घुसपैठियों को नहीं। किसी भी पीड़ित समुदाय के प्रति उदारता मानवीय धर्म है, लेकिन जब घुसपैठिये देश की सुरक्षा और मूल भारतीय समुदायों के लिए ही संकट बन जाएं, तो उन्हें खदेड़ा जाना ही बेहतर है।
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