फलों की काश्त फसली विभिन्नता और पौष्टिक तत्वों के लिए ज़रूरी

संयुक्त राष्ट्र की एफओओ द्वारा यह वर्ष फलों का अंतर्राष्ट्रीय वर्ष घोषित किये जाने के बाद फलों की काश्त कृषि विभिन्नता के लिए और भी आवश्यक हो गई है। फैली कोरोना महामारी के विरुद्ध मनुष्य में लड़ने की शक्ति पैदा करने कि लिए फल प्रत्येक पौष्टिक तत्व की पूर्ति करते हैं। फलों से आवश्यक तत्व विटामिन, मिनरल, एंटआक्सीडैंट प्राप्त होते हैं। फलों की फसल से रोज़गार का दायरा भी बढ़ता है। गांवों और शहरों के लोगों में फलों की घरेलू स्तर पर काश्त करने के लिए रुचि भी बढ़ रही है। चाहे भारत विश्व में दूसरा फलों का उत्पादक देश है परन्तु पंजाब में इसकी काश्त का रकबा बढ़ाने की काफी संभावनाएं हैं। इस समय पंजाब में फलों की काश्त लगभग 93 हज़ार हैक्टेयर पर की जाती है। आजकल सदाबहार फलदार पौधे जैसे अमरूद, नींबू जाति, आम, लीची, पपीता आदि लगाने के लिए उचित समय है। पंजाब में अधिकतर अमरूद और नींबू की काश्त की जाती है। अमरूद की काश्त लगभग 10.5 प्रतिशत रकबे पर की जा रही है। 
पी.ए.यू. द्वारा अमरूदों की कई किस्में जो खाने तथा प्रोसैसिंग करने के अनुकूल हैं, सिफारिश की गई हैं। इन किस्मों में पंजाब सफेदा, पंजाब किरण, पंजाब एप्ल, सरदार, इलाहाबाद सफेदा और पंजाब पिंक किस्में शामिल हैं। इसमें संतरे और नींबू जाति के सभी फलों से अधिक मात्रा में विटामिन सी है। इसके पौष्टिक तत्वों के मद्देनज़र इसकी काश्त का रकबा बढ़ाने की आवश्यकता है। परन्तु फल की मक्खी का हमला इस फल की काश्त करने की रुचि को कम करता है, वरना अमरूदों के बाग की देखभाल और संभाल दूसरे फलों के बागों से आसान है, लाभदायक भी है, क्योंकि इसका उत्पादन काफी ज़्यादा है। बरसात के मौसम में विशेष तौर पर फलों की मक्खी का हमला हो जाता है जिससे फल खराब हो जाते हैं और खाने के योग्य नहीं रहते। 
मक्खी के हमले वाले गिरे हुए फलों को भूमि में गहरा दबा देना चाहिए। फलों की मक्खियों की रोकथाम के लिए जुलाई में पी.ए.यू. द्वारा तैयार की गई ‘पी.ए.यू. फ्रूट फ्लाई ट्रैप’ पेड़ को लगा देनी चाहिए। एकड़ में 16 ट्रैप लगा देना आवश्यक है। कीड़ा रहित बढ़िया फल लेने के लिए बरसात में एक-एक फल पर नानवुवन लिफाफे चढ़ा देने चाहिएं। लिफाफे चढ़े हुए फल मक्खी द्वारा खराब करने से बच जाएंगे और इनका आकार भी अच्छा होगा। मार्च महीने में पौधों की कांट-छांट कर देनी चाहिए। अमरूद वर्ष में दो बार फल देता है। एक बार बरसात में और दूसरी बार शरद ऋतु में। घरेलू उत्पादकों की आम धारणा है कि बरसात का फल नहीं लेना चाहिए क्योंकि यह मक्खी ने काना किया होता है। पी.ए.यू. से सम्मानित बलबीर सिंह जड़िया धर्मगढ़ (अमलोह) ने अपनी बगीची में अमरूद लिफाफों का उपयोग करके बरसात ऋतु का फल भी सही सलामत प्राप्त किया  है। 
बागबानी विभाग के डिप्टी डायरैक्टर पटियाला डा. स्वर्ण सिंह मान ने वजीदपुर (पटियाला) में स्थापित की गई अमरूदों की एस्टेट और पी.ए.यू. द्वारा विकसित की गई किस्मों तथा अमरूदों को बीमारियों और मक्खियों से मुक्त रखने संबंधी किसानों को प्रशिक्षण देने का प्रबंध किया है। 
पंजाब में अब आमों की काश्त बढ़ाने की भी काफी गुंजाइश है। इसकी काश्त पंजाब में लगभग 7 हज़ार हैक्टेयर रकबे पर की जा रही है। आमों की काश्त के लिए पंजाब का जलवायु और भूमि अनुकूल हैं परन्तु उत्पादकों ने परम्परागत किस्में जैसे लंगड़ा, दशहरी, सफैदा, तोता परी, चौसा आदि लगाई हुई हैं, जो एक वर्ष छोड़ कर फल देती हैं। इसलिए वे व्यापारिक स्तर पर लाभदायक नहीं मानी गईं। आई.सी.ए.आर.-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्था द्वारा पुरानी प्रत्येक वर्ष फल देने वाली अम्रपाली और मलिका किस्मों के अतिरिक्त गुणवत्ता वाली हाईब्रिड किस्में जैसे पूसा श्रेष्ठ, पूसा प्रतिभा, पूसा ललीमा, पूसा पितम्बर, पूसा अरुनिमा, पूसा सूर्या आदि विकसित की गई हैं जिनके एक एकड़ में कई गुणा पौधे लग सकते हैं। इन किस्मों के लगाने का समय आजकल है। 
पी.ए.यू. के प्रसार शिक्षा निदेशक डा. जसकरण सिंह माहिल कहते हैं कि फसली विभिन्नता के लिए और कोविड-19 जैसी बीमारियों को दूर रखने के लिए किसानों को फलों की बाग लगाने चाहिएं, जिसके लिए तकनीकी जानकारी और पौधे (पी.ए.यू. नर्सिरियों द्वारा) पी.ए.यू. के विशेषज्ञों द्वारा उपलब्ध किये जा रहे हैं।