़फसली विभिन्नता के लिए पंजाब में फलों की काश्त बढ़ाने की आवश्यकता

फलों व सब्ज़ियों का उत्पादन तथा इनसे प्राप्त होने वाले लाभ को बढ़ाने के लिए किसानों और लोगों तक सही जानकारी पहुंचाने की आवश्यकता है। बहुत-से किसानों ने अपने खेतों में रास्तों पर तथा ट्यूबवैलों पर, बाटों पर फलदार पौधे लगाए हुए हैं। इसी प्रकार अधिकतक उपभोक्तओं ने अपनी बगीचियों व किचन गार्डनों में भी फलदार व सजावटी पौधे लगाए हुए हैं। उनकी अक्सर शिकायत रहती है कि पौधों को फल नहीं लगता या झड़ जाता है। उन्हें फलदार पौधों को बीमारियां आदि लगने संबंधी कोई जानकारी नहीं और न ही यह पता है कि किस महीने और किस मौसम में किस पौधे का क्या काम करना है। कब खाद डालनी है, कौन-सी खाद डालनी है। फिर यदि रूढ़ी की खाद डालना दरकार है तो उसकी उपलब्धता नहीं। 
चाहे केचुंए आदि से प्रोसैस की हुई खाद कुछ चुनिंदा डीलरों से मिल जाती है परन्तु वह बड़ी महंगे भाव पर उपलब्ध है। रूढ़ी खाद किसी तरह स्तरीय पैक करके आम स्थानों पर नहीं बेची जाती। फिर निजी क्षेत्र में जो माली हैं, वे बगीचियों में पार्ट टाईम आधार पर काम करते हैं। उन्हें कोई तकनीकी जानकारी नहीं। बागबानी विभाग द्वारा इन मालियों में आवश्यक जानकारी पैदा करने के लिए उचित प्रशिक्षण कार्यक्रम बनाया जाना चाहिए। इनके माध्यम से यह जानकारी उपभोक्तओं तक भी पहुंचेगी और इन मालियों की जो मुश्किल से अपना गुज़ार कर रहे हैं, मंडी में इनका महत्व भी बढ़ेगा। उपभोक्तओं को भी लाभ मिलेगा। फलों के पौधों को अब संभावित कोरे के नुकसान से बचाना ज़रूरी है। फल उत्पादकता को अब जनवरी में सचेत रहना चाहिए। बागवानों के लिए आवश्यक है कि कोहरे की मार से पहले ही वे उचित प्रबंध कर लें ताकि पौधों को होने वाले नुकसान से बचा जा सके। नये लगाए पौधों को पहले तीन-चार वर्ष तक ठंड की मार से बचाना ज़रूरी है। पौधों को तंदुरुस्त रखना बहुत ज़रूरी है। तंदुरुस्त पौधा कमज़ोर पौधे का अपेक्षा ठंड को आसानी से सहन कर लेता है। 
कई बार ऐसा भी होता है कि ठंडे तापमान के कारण पौधों की कोशिकाओं में बर्फ जम जाती है, फिर ऐसी हालत में पौधे के सैल ज़ख्मी हो जाते हैं। सख्त जान पौधे तो सर्दी की मार सहन कर लेते हैं परन्तु  केला, आंवला, पपीता आदि कोहरे को बहुत कम सहन करते हैं। आमों की कई किस्में जैसे लंगड़ा, मालदा, सफैदा आदि कोहरे का मुकाबला करने की अधिक समर्था रखते हैं परन्तु दूसरी किस्मों को कोहरे की मार से बचाने की आवश्यकता है। नींबू प्रजाति के पौधों जैसे संतरा, माल्टा, ग्रेफ्रूट, बारामासी नींबू और कागज़ी नींबू भी कोहरे को काफी सीमा तक सहन कर लेते हैं। 
देखा गया है कि सर्दियों में लगरें व शाखाएं सूख जाती हैं और फिर पूरा पौधा सूख जाता है। शाखाएं ऊपर से सूखना शुरू हो जाती हैं और फिर पौधा सूख जाता है। बहुत -से सदाबहार पौधे जिनमें पपीता, आम, चीली आदि शामिल हैं, वे कड़ाके की सर्दी को सहन नहीं कर सकते और इनका ठंड से काफी नुक्सान हो जाता है। छोटे पौधों को धान की पराली से ढक देना चाहिए। घरों की बगीचियों में लगाए गए और खेतों के रास्तों पर लगाये गए पौधों को भी शाम के समय पारदर्शी पालिथीन से ढक देना चाहिए। कोहरे से बचाव हेतु छोटे फलदार पौधों को पानी देना आवश्यक है। पौधे समय पर लगाने चाहिएं। सदाबहार फलदार पौधे जैसे नींबू प्रजाति के, अमरूद, आम, लीची, लुकाठ, केला आदि को फरवरी-मार्च में लगाना चाहिए। दूसरा समय इन पौधों को लगाने का अगस्त-सितम्बर के महीने हैं। नाशपाती, आड़ू, बेर, अंगूर, अनार, आंवला, अंजीर और फाल्सा को भी फरवरी में ही लगाया जाता है। पौधों के सही ढंग अपना कर लगाना चाहिए। एक मीटर गहरा और एक मीटर घेरे वाला गड्ढा आम फलों के पौधों के लगाने हेतु खोदना चाहिए। पपीता, फालसा व केला आदि कम जगह वाले स्थानों वाले पौधों के लिए कम गहरा गड्ढा भी चल जाता है। इनमें आधी मिट्टी और आधी रूढ़ी खाद की समान मात्रा मिला कर डालनी आवश्यक है। इसे भूमि के स्तर से थोड़ा ऊंचा रखना बेहतर होता है। पौधे को दीमक से बचाने के लिए मिट्टी में क्लोरोपारइरोफास मिला कर देनी चाहिए।
 पौधा लगाने के बाद उसे सीधा बढ़ाना भी आवश्यक है जिसके लिए डंडे का सहारा देने का ज़रूरत है। पौधा लगाने के बाद नीचे की शाखाओं व जड़ों से निकलने वाली शाखाओं को लगातार काट देना चाहिए। इससे पौधे का सही विकास होगा। आम फलों व पौधों जैसे आड़ू, नाख, लीची आदि को रूढ़ी खाद, पोटाश व सुपरफासफेट के साथ मिला कर डाल देनी चाहिए। अब जनवरी में बेर व अमरूद के अतिरिक्त शेष पतझड़ी पौधों की कांट-छांट कर देनी चाहिए। सिंचाई सही ढंग से की जाए। कम-ज़्यादा सिंचाई नुक्सानदायक होगी।  
किन्नू के बाद पंजाब में अमरूद की काश्त के अधीन रकबा बढ़ाने की संभावना है। अमरूद के बाग लैंडसीलिंग के घेरे से बाहर हो जाने के कारण अमरूदों के बाग लग रहे हैं। बागवानी विभाग द्वारा पटियाला जिले में वज़ीदपुर में अमरूद की एस्टेट बनाई जा रही है। 
इस एस्टेट के बनने से अमरूदों की खेती का विकास  होगा और फसली-विभिन्नता में  उपलब्धि हासिल होगी। इससे किसानों को बढ़िया क्वालिटी के पौधे उपलब्ध करवाए जाएंगे। सस्ती दरों पर कीटनाशक दवाइयां उपलब्ध की जाएंगी। इसके अतिरिक्त इस जिले के बहादरगढ़ केन्द्र और पीएयू द्वारा स्थापित अनुसंधान केन्द्र में अमरूद की प्रोसैसिंग वाली किस्में विकसित की जा रही हैं। राष्ट्रीय बागवानी मिशन के अधीन बागवानी विभाग की ओर से 40 से 50 फीसदी सबसिडी नये बाग लगाने हेतु दी जा रही है।