पराली को आग लगाने से रोकने के लिए प्रभावशाली ‘पूसा डीकम्पोज़र’ पूसा डीकम्पोज़र इस्तेमाल करने वाले मुक्तसर जिले के गुरमीत सिंह का सम्मान

इस वर्ष के ‘आईएआरआई फैलो’ अवार्ड के लिए आईसीएआर-भारतयीय कृषि खोज संस्थान ने पराली को आग लगाने से रोकने के लिए डीकम्पोज़र द्वारा पराली का निपटान करने वाले प्रगतिशील किसान मुक्तसर साहिब जिले के मलोट निकट कट्टीयांवाला गांव के गुरमीत सिंह का चयन कर गत सप्ताह पूसा कृषि विज्ञान मेले में यह पुरस्कार देकर सम्मानित किया है। धान के खेतों में किसानों द्वारा लगाई जा रही आग को रोकने के लिए आईसीएआर-भारतीय कृषि खोज संस्थान ने ‘पूसा डीकम्पोज़र’ तैयार किया है। यह डीकम्पोज़र एक बायोएंज़ाइम है जो पराली के खेत में स्प्रे किया जाता है। इससे 20-25 दिन में पराली खेत में ही सड़ जाती है जिससे खेत की उपजाऊ शक्ति भी बढ़ती है तथा पराली को आग लगाने की प्रथा भी खत्म होती है। 
गुरमीत सिंह ने अपनी 10 एकड़ ज़मीन में यूपीएल द्वारा दी जा रही छिड़काव की मुफ्त सेवा प्राप्त करके पूरी पराली साड़ ली। उनसे बताया कि संस्थान के डायरैक्टर तथा उप-कुलपति डा. अशोक कुमार सिंह ने यूपीएल स्प्रे करने वाली ंमशीन भेजी थी तथा यूपीएल के सहयोग से गांव में एक कैंप लगाया था जिसके माध्यम से पूसा डीकम्पोज़र की जानकारी वैज्ञानिकों तथा यूपीएल के फील्ड अधिकारियों ने किसानों को उपलब्ध करवाई। गुरमीत सिंह के 10 एकड़ खेत में गेहूं की फसल बड़ी आशाजनक खड़ी है तथा उसने पूसा डीकम्पोज़र  के इस्तेमाल के परिणामस्वरूप आधा थैला डीएपी खाद का एवं एक थैला यूरिया का फसल में कम डाला है। डीएपी डेढ़ थैसे की बजाय एक थैला तथा यूरिया के अढ़ाई थैलों की बजाय 1.5 थैले इस्तेमाल किये हैं। उसके गांव में 2500 एकड़ रकबा है जिसमें से 1000 एकड़ पर पूसा डीकम्पोज़र का छिड़काव हुआ है तथा पराली को आग लगाने की समस्या समाप्त करते हुए पराली का सफल निपटान हुआ है और ज़मीन की उपजाऊ शक्ति बढ़ी है। गुरमीत सिंह कहता है कि यह पूरी सेवा यूपीएल ने किसानों को मुफ्त उपलब्ध की है। मशीनी छिड़काव ही नहीं अपितु डीकम्पोज़र की कीमत भी यूपीएल ने स्वयं अदा की है। 
भारतीय कृषि खोज संस्थान (आईएआरआई) के डायरैक्टर अशोक कुमार सिंह ने बताया कि पूसा ने इस छिड़काव के लिए यूपीएल के साथ टाइअप किया था। यूपीएल की सहायक कम्पनी नरचर फार्म के फील्ड अधिकारी लगातार धान उत्पादकों के सम्पर्क में रहे।  करनाल में उन चुनिंदा किसानों (जिन्होंने पूसा डीकम्पोज़र का छिड़काव अपने खेतों में करवाया है) के एक संगठन को सम्बोधित करते हुए यूपीएल के चेयरमैन राजू शरोफ ने बताया कि पंजाब तथा हरियाणा में 4.20 लाख एकड़ पर पूसा डीकम्पोज़र के छिड़काव की मुफ्त सेवा उपलब्ध की गई है। लक्ष्य 3 लाख हैक्टेयर हरियाणा में तथा 2 लाख हैक्टेयर पंजाब में किया जाने का रखा गया था। नई तकनीक होने के कारण किसानों की सहायता के लिए सहायक कम्पनी नरचर फार्म ने अपने ‘कृषि मित्र’ तैनात किये थे, जिन्होंने किसानों के साथ लगातार सम्पर्क बनाए रखा। एक एकड़ ज़मीन में पराली गलाने के लिए सिर्फ 250 ग्राम पूसा डीकम्पोज़र के छिड़काव की आवश्यकता है। चेयरमैन राजू शराफ ने बताया कि आगामी तीन वर्षों में पंजाब तथा हरियाणा में पराली को आग लगाने की प्रथा को पूसा डीकम्पोज़र के स्प्रे से समाप्त किये जाने की योजना बनाई जा रही है। 
पंजाब तथा हरियाणा की सरकारों ने पराली का प्रबंध करने के लिए हैपी सीडर आदि मशीनें किसानों को देकर तथा कस्टम हायर केन्द्र स्थापित करके प्रयास किये हैं कि किसान पराली को आग न लगाएं परन्तु इससे अधिक सफलता नहीं मिली अपितु आग लगाने का रूझान प्रत्येक वर्ष बढ़ता रहा। हैपी सीडर पर लागत बहुत आती है। इसके लिए बड़ी हार्स पावर का ट्रैक्टर चाहिए। बहुत कम किसानों को ऐसे ट्रैक्टर उपलब्ध हैं। 
छोटे किसानों को तो यह सुविधा उपलब्ध ही नहीं हुई जिसके बाद किसान पराली को आग लगाने के लिए मजबूर हुए ताकि वे गेहूं की फसल की समय पर बिजाई कर सकें। बेलरों के माध्यम से जो गांठें बांध कर प्लांटों को दी जाती हैं, वह भी काफी महंगा पड़ता है तथा नाममात्र किसानों को ही यह सुविधा उपलब्ध है। डायरैक्टर अशोक कुमार सिंह ने बताया कि पूसा डीकम्पोज़र की सुविधा अधिक से अधिक किसानों तक पहुंचाने के लिए योजना बनाई जा रही है तथा उचित प्रबंध किये जा रहे हैं ताकि निजी क्षेत्र के माध्यम से किसानों को डीकम्पोज़र छिड़काव की सुविधा ज़्यादा उपलब्ध हो।