निरन्तर भुखमरी की तरफ  बढ़ रही है दुनिया

विश्व में खाद्य सुरक्षा और पोषण की स्थिति पर संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी एक हालिया रिपोर्ट,
‘द स्टेट ऑफ  फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रीशन इन द वर्ल्ड’ के मुताबिक विश्व के करीब 310
करोड़ लोगों की पहुंच से बाहर है स्वस्थ आहार और करीब 83 करोड़ लोग तो भुखमरी का
शिकार हैं। यह आंकड़ा कोई छोटा मोटा आंकड़ा नहीं है। अगर भुखमरी से पीड़ित इन लोगों को
छोटे देशों की आबादी के आईने में देखें यह तादाद करीब 50 देशों की आबादी के बराबर बनती
है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि दुनिया भले वैज्ञानिक विकास के स्वर्णकाल में हो,
लेकिन बहुत बड़ी संख्या में ऐसे अभागे लोग हैं जो मध्यकाल से भी बुरी स्थिति में जी रहे हैं,
जब दाने दाने के लिए लोगों में खूनी लड़ाइयां हुआ करती थीं। 
संयुक्त राष्ट्र और इसके कई आनुषंगिक संगठन इस बात पर बहुत चिंतित हैं कि दुनिया की
बहुत बड़ी आबादी भूख से बिलबिला रही है और आधी से कुछ कम आबादी बस जैसे तैसे
अपना पेट भर रही है। वैश्विक महामारी कोरोना के चलते जिस तरह  दुनिया भर की
अर्थ-व्यवस्थाएं प्रभावित हुई हैं, दुनियाभर की सप्लायी चैन बाधित हुई है, उसके कारण यह
समस्या और भी विकराल हो गई है। इस कोढ़ में जहरीली खाज का काम बिगड़ता हुआ
पर्यावरण कर रहा है। जिस तरह से इस साल जुलाई, अगस्त के महीनों में यूरोप दहकता रहा
है, उससे आने वाले दिनों में कृषि की और भी भयावह स्थिति होने की आशंकाएं पैदा हो गई
हैं। 
वैज्ञानिक यह कह रहे हैं कि बिगड़ते और बदलते पर्यावरण के कारण जल्द ही दुनिया के
खानपान में बुनियादी फर्क दिखायी पड़ सकता है। हो सकता है आने वाले एक या दो दशकों
में चावल और गेहूं का उत्पादन नाममात्र का रह जाए, क्योंकि जिस तरह से दुनिया में ग्लोबल
वार्मिंग बढ़ रही है, वर्षा का पैटर्न परिवर्तित हो रहा है, उस सबके चलते अब तक हम जो कुछ
खाते आ रहे हैं, उसका लगातार मिलना असंभव लग रहा है। खतरनाक बात यह है कि दुनिया
में आने वाले एक से दो दशकों के बीच भयावह अनाज संकट पैदा होने जा रहा है। यह
इसलिए ठोस, डरावनी आशंका है, क्योंकि खाद्य वैज्ञानिकों ने पिछले दशक की शुरुआत यानी
2010-11 में ही कहना शुरू कर दिया था कि अगले पांच छह सालों में खाद्य समस्या दुनिया
की एक बड़ी समस्या के रूप में उभरेगी और वही हुआ। साल 2015 के बाद दुनिया में
भुखमरी के शिकार लोगों की संख्या में किसी तरह की कमी आने की बजाय उसमें लगातार
बढ़ोत्तरी हुई है। संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) के अनुसार जहां 2019 में
विश्व की करीब 8 फीसदी आबादी पूरी तरह से भुखमरी का शिकार थी। वहीं सिर्फ  एक साल
बाद यानी 2020 में भुखमरी के शिकार लोगों की वैश्विक जनसंख्या बढ़कर 9.3 फीसदी हो
गई। पिछले साल भी इसमें 0.5 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है।
इस तरह देखें तो विकास के तमाम दावों के बावजूद दुनिया लगातार भुखमरी की तरफ  कदम
दर कदम बढ़ी जा रही है। सौभाग्य से भारत दुनिया के उन गिने चुने देशों में शामिल है, जो
कम से कम अपनी खाद्य जरूरतों को पूरा करने में सक्षम हैं लेकिन भारत एक दूसरी तरह के
संकट से गुजर रहा है। भारत में अन्न का उत्पादन तो इतना होता है कि मौजूदा आबादी का
भरपूर ढंग से भरण पोषण हो सके। लेकिन अब समस्या यह है कि भारत में हर व्यक्ति
इतना सक्षम नहीं है कि वह बाजार में उपलब्ध खाद्य सामग्री को खरीद सके। हालांकि देश में
खाद्य पदार्थों में पिछले कुछ सालों के दौरान काफी तेजी आयी है। पहले जहां दालों के दाम
बढ़ते थे तो लोग आसमान सिर पर उठा लेते थे। वहीं अब पिछले करीब तीन सालों से
ज्यादातर दालें सौ-डेढ़ सौ रुपये प्रतिकिलो के ऊपर ही बिक रही हैं, लेकिन इसके लिए कहीं पर
कोई आंदोलन जैसी स्थितियां नहीं बनतीं। 
भारत जैसे देश जो बाहरी तौरपर देखने में खाद्य पदार्थों के मामले में सम्पन्न हैं, यहां भी बड़े
पैमाने पर लोगाें को स्वस्थ भोजन से वंचित होना पड़ रहा है। पहले जहां औसतन हर
हिंदुस्तानी 175 ग्राम तक दाल और 200 ग्राम सब्जी औसतन पा जाता था, वहीं अब
भारतीयों के हिस्से में औसतन 100 ग्राम से कम दालें आ रही हैं। मतलब साफ  है कि अगर
गरीब लोगों की क्रय शक्ति का कोई उपाय नहीं किया गया तो आंकड़ों में भले हम भुखमरी से
शिकार देश न हों, प्रशासनिक तथ्यों में भले कहीं कोई भूख से न मर रहा हो, लेकिन हमारे
यहां भी हालत भुखमरी के शिकार लोगों की एक बड़ी तादाद होगी। वैसे भी वैश्विक भुखमरी
सूचकांक यानी ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत 116 देशों में से 101वें नंबर पर है। कहने का
मतलब हमसे भुखमरी के मामले में कम से कम 100 देश बेहतर हैं और महज 15 देश हमसे
बदतर हैं। 
हाल के सालों में भुखमरी सूचकांक में हम लगातार नीचे फिसले हैं। 20 साल पहले 1992 में
हम 76वें नंबर पर थे, हालांकि तब यह रिपोर्ट 96 देशों पर आधारित होती थी। साल 2000 में
यह रिपोर्ट 115 देशों के आंकड़ों पर बनने लगी, तब हम फिसलकर 83वें नंबर पर आ गये।
साल 2008 में 102वें नंबर और साल 2021 में 101वें नंबर पर पहुंच गये हैं। भूख के कई
और सहयोगी कारकों में भी हम काफी निचले पायदान पर हैं। बाल पोषण की स्थिति भी हमारे
यहां अभी तक गंभीर बनी हुई है। 20 साल पहले की चिंताजनक स्थिति से अब हम गंभीर
स्थिति में आ गये हैं। लेकिन दुनिया भर में जिस तरह से विभिन्न देशों के बीच मनमुटाव,
खेमेबंदी और युद्ध की स्थितियां मौजूद हैं, उनके चलते इन्सान द्वारा की गई तमाम प्रगति
समूची मानवता के साझे हित में इस्तेमाल नहीं हो रही बल्कि कुछ ताकतवर लोगों और देशों
की मुट्ठी में कैद है। हम जितना जल्दी समझ सके, इस कैद से निकालना होगा वरना 21वीं
सदी में भी मध्य युग की तरह लोग भूख से बिलबिला कर मरेंगे और बहुत सारे लोग इस
त्रासदी का तमाशा देखेंगे।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर