मिशन-2024 विपक्ष की मंज़िल एक, यात्राएं जुदा-जुदा

सत्तारूढ़ भाजपा की तरह ही बिखरा हुआ विपक्ष भी अभी से मिशन-2024 मोड में आ चुका है। हालांकि विपक्ष के सभी प्रमुख नेताओं का लक्ष्य विपक्ष को एकजुट करके नई दिल्ली में विकल्प देना है, लेकिन फिलहाल ईसा अपनी राह है और मूसा अपनी राह है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने 7 सितम्बर, 2022 को कन्याकुमारी से अपनी ‘भारत जोड़ो यात्रा’ आरंभ की जो अगले वर्ष 30 जनवरी को श्रीनगर (जम्मू-कश्मीर) में सम्पन्न होगी। तो ठीक इसी समय भारत को ‘नंबर 1’ बनाने के लिए आम आदमी पार्टी (आप) के प्रमुख व दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी 7 सितम्बर को हिसार (हरियाणा) से अपनी देशव्यापी यात्रा शुरू की। बिहार में पाला बदलने के बाद जनता दल (यू) के प्रमुख व मुख्यमंत्री नितीश कुमार भी विपक्षी दलों को एकजुट करने के लिए इन पार्टियों के नेताओं से मुलाकात करने की यात्रा पर निकले हुए हैं और कह रहे हैं कि वह प्रधानमंत्री पद के दावेदार नहीं हैं। उनसे पहले तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव भी इसी मिशन यात्रा पर निकले हुए हैं। विपक्ष की एक अन्य प्रमुख नेता व पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं, लेकिन आरएसएस के कुछ सदस्यों को अच्छा बताकर उन्होंने विपक्षी खेमे में हलचल अवश्य मचा दी है।
2024 के लोकसभा चुनाव से पहले अपनी संकटग्रस्त कांग्रेस पार्टी में नई जान फूंकने के उद्देश्य से राहुल गांधी ने कन्याकुमारी से ‘भारत जोड़ो यात्रा’ को हरी झंडी दिखाते हुए वायदा किया कि वह देश को नफरत से पराजित नहीं होने देंगे। इस दौरान उन्होंने भाजपा-आरएसएस पर देश को धार्मिक आधार पर बांटने का आरोप लगाया। 
पंजाब विधानसभा में जीत के बाद ‘आप’ इस कोशिश में है कि कांग्रेस की जगह मुख्य विपक्षी दल का स्थान हासिल करे। इसलिए ‘आप’ ने संसद के अंदर व बाहर विपक्षी खेमे से दूरी बनाकर रखी है। हाल के राष्ट्रपति व उप राष्ट्रपति चुनावों में ‘आप’ ने विपक्षी दलों के साथ मतदान अवश्य किया था, लेकिन विपक्ष की विभिन्न बैठकों में उसने अपना कोई प्रतिनिधि नहीं भेजा था, जोकि स्पष्ट संकेत था कि वह किसी भी ऐसे गुट का हिस्सा नहीं बनना चाहती है जिसे कांग्रेस कोआर्डिनेट कर रही हो। साथ ही आप भाजपा के परम्परागत हिन्दू वोट बैंक में सेंध लगाने की हर संभव कोशिश कर रही है। केजरीवाल की यात्रा को इसी पृष्ठभूमि में देखना चाहिए। उनके अनुसार, जिन राजनीतिक दलों व राजनीतिज्ञों के कारण भारत पिछड़ा रहा, अगर आगे भी उन्हें ही ज़िम्मेदारी दी गई तो भारत अगले 75 वर्ष भी पिछड़ा ही रहेगा। केजरीवाल कहते हैं कि भारत को नंबर 1 बनाने का सपना 130 करोड़ भारतीयों का है, इसलिए कुछ दिन पहले (17 अगस्त 2022 को ) उनकी पार्टी ने ‘मेक इंडिया नंबर 1’ कार्यक्रम शुरू किया है। अपनी यात्रा के दौरान केजरीवाल हर राज्य में जायेंगे और लोगों को एक परिवार की तरह अपने साथ जोड़ने का प्रयास करेंगे। फिलहाल ‘आप’ का फोकस गुजरात व हिमाचल प्रदेश के आम चुनावों पर है, जो इस वर्ष के अंत तक होंगे।
‘आप’ को उम्मीद है कि इन दोनों राज्यों में उसके प्रदर्शन का सीधा प्रभाव राजस्थान पर पड़ेगा, जहां अगले वर्ष चुनाव होने हैं। ‘मेक इंडिया नंबर 1’ के पांच प्रमुख लक्ष्य हैं—सभी के लिए मुफ्त व गुणात्मक शिक्षा, सभी के लिए मुफ्त व गुणात्मक हैल्थकेयर, महिलाओं के लिए समता व सुरक्षा, सभी युवाओं के लिए जॉब्स और किसानों को उनके उत्पाद के लिए उचित मूल्य। विपक्षी नेताओं से अपनी ‘मुलाकात यात्रा’ के दौरान नितीश कुमार विपक्षी एकता के ध्वजवाहक बनने के प्रयास में हैं। उनकी कोशिश है कि जो विपक्षी दल—‘आप’, टीआरएस व टीएमसी अभी दूर से तमाशा देख रहे हैं, उन्हें भी उस विपक्षी खेमे में शामिल कर लिया जाए जिसका कांग्रेस भी हिस्सा है। कुमार अभी तक कांग्रेस नेता राहुल गांधी, अरविंद केजरीवाल, के. चंद्रशेखर राव, इनेलो के ओम प्रकाश चौटाला, समाजवादी पार्टी के मुलायम सिंह यादव, वामपंथी सीताराम येचुरी व डी. राजा आदि से मिल चुके हैं। वह जय प्रकाश नारायण की तरह 2024 में 1977 को दोहराना चाहते हैं। आपातकाल के बाद 1977 में जय प्रकाश नारायण ने विपक्ष को उसके अंतर्विरोधों के बावजूद कांग्रेस के विरुद्ध एकजुट कर दिया था और आज़ादी के बाद कांग्रेस ने केंद्र में सत्ता खोई। इस समय कांग्रेस के स्थान पर भाजपा है, विपक्ष के अपने अंतर्विरोध हैं। नितीश कुमार को लगता है कि सत्तारूढ़ भाजपा की ‘जनता विरोधी दमनकारी नीतियां’ ही विपक्ष को अपने अंतर्विरोध भुलाकर एक मंच पर आने के लिए मजबूर कर देंगी। इस सिलसिले में केवल थोड़े से प्रयास की आवश्यकता है, जो वह स्वयं कर रहे हैं।
बहरहाल, काफी लम्बे समय के बाद ‘भारत जोड़ो यात्रा’ से कांग्रेस बड़े पैमाने पर जन सम्पर्क का प्रयास कर रही है। यह इस लिहाज़ से बेहतर है कि कुछ न करने से अच्छा है कि कुछ करते हुए दिखाई दिया जाये। यह यात्रा ऐसे समय शुरू हुई है जब कांग्रेस के अपने पार्टी चुनाव एक बार फिर विवादों में फंस गये हैं, जिससे यात्रा का संदेश कुछ फीका पड़ गया है। लेकिन यात्रा से कांग्रेस को नुकसान नहीं होने वाला बशर्ते कि कांग्रेस नेता, विशेषकर राहुल गांधी यह सोचने की गलती न कर बैठें कि लोगों से सीधा सम्पर्क करना ही चुनाव जीतने के लिए पर्याप्त होगा। चुनावी हकीकत ऐसी रोमांटिक धारणा की अनुमति नहीं देती है। ऐसा नहीं है कि यात्राओं से राजनीतिक लाभ नहीं होता, लेकिन उस समय होता है जब यात्री शोर से अलग एक स्पष्ट संदेश पहले दे चुके हों। एल.के. अडवानी की रथ यात्रा, व्हाईएसआर रेड्डी की आंध्र यात्रा, उनके बेटे जगन की आंध्र यात्रा, ममता बनर्जी की अनेक बंगाल यात्राएं... सभी में सुनाने व बेचने के लिए अच्छी कहानियां थीं। क्या राहुल गांधी के पास भी कुछ सुनाने व बेचने के लिए है, जिससे उनकी पार्टी में मची भगदड़ पर विराम लग सके और नये समर्थक आकर्षित हो सकें?
कांग्रेस के समक्ष चुनौती बहुत बड़ी है। 2018 के बाद उसने अपने दम पर कहीं चुनाव नहीं जीता है। दूसरी ओर भाजपा बहुत स्मार्ट हो गई है कि कहां और कैसे हिंदुत्व को लागू करना है, सोशल इंजीनियरिंग में वह माहिर हो गई है। ऐसे में कांग्रेस के लिए यही बेहतर है कि वह चार या पांच प्रमुख राज्यों पर और अपने संगठनात्मक ढांचे पर फोकस करे नहीं तो भारत उसकी यात्रा का नोटिस नहीं लेगा।   -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर