क्या चीन का यह तानाशाह दुनिया को बर्बादी के रास्ते पर लेकर जाएगा ?

विगत में सीसीपी की बैठक में शी जिनपिंग को लगातार तीसरी बार पार्टी का महासचिव नियुक्त कर दिया गया। शी जिनपिंग एक बार फिर चीन की सत्ता पर काबिज हो गए। इसी के साथ उनकी शक्तियां और ज्यादा बढ़ गई हैं। शी जिनपिंग अपने तीसरे कार्यकाल में इंडिया पॉलिसी को बदलेंगे या वैसे ही रखेंगे, यह सवाल एशियाई देशों के लिए बहुत मायने रखता है। चीन की गद्दी पर कोई भी बैठे, चीन पर हुकूमत कोई करे, यह उसके घर का मामला है, लेकिन पड़ोसी के घर में लगी आग किसी के लिए भी अच्छी नहीं होती। शी ने फिर से सत्ता पाने के लिए देश में विरोध की आवाज़ को कुचल कर रख दिया है। ऐसे में सत्ता के शीर्ष पर पहुंचे जिनपिंग के तीसरे कार्यकाल का असर सिर्फ  चीन तक नहीं रहने वाला। यह भारत पर भी असर डाल सकता है। 
भारत के लिये उसकी तानाशाही न सिर्फ  चिंता बड़ाने वाली है, बल्कि कुछ हद तक खतरनाक भी है। यह वही जिनपिंग हैं, जिन्हें हमारे पीएम नरेंद्र मोदी ने अहमदाबाद की साबरमती नदी के किनारे झूला झुलाते हुए दोस्ती की पींगें बढ़ाई थीं लेकिन उनकी नीयत तब भी कुछ और थी किन्तु अब तो भारत के खिलाफ और भी ज्यादा ज़हर उनके दिलो-दिमाग में छा गया है। यही वजह है कि विदेशी कूटनीति के विश्लेषक मानते हैं कि जिनपिंग की यह तीसरी ताजपोशी जितनी अमरीका के लिये खतरनाक है, उससे भी ज्यादा असर पहले भारत को झेलना पड़ सकता है। माओत्से तुंग के बाद शी जिनपिंग चीन के दूसरे सर्वाधिक ताकतवर नेता बन गए हैं। 
भारत-चीन की कूटनीति पर निगाह रखने वाले विश्लेषक मानते हैं कि जिनपिंग अब पहले से कई गुना ज्यादा ताकतवर हो गए हैं और वह एलएसी पर गलवान जैसी घटना दोहराने से पीछे नहीं हटने वाले हैं। दूसरी परेशान करने वाली बात यह भी है कि चीन से भारी भरकम कज़र् लेने के बाद पाकिस्तान भी उस की गोद में बैठा हुआ है। चीन उसका आका है, जिसके हुक्म को ठुकराना, उसके बस की बात नहीं है। इसलिये जानकर यह आशंका जता रहे हैं कि आने वाले दिनों में कश्मीर घाटी में आतंकी वारदात में अचानक से इज़ाफा होने लगे, तो किसी को हैरानी नहीं होनी चाहिए। गौर करने वाली बात यह भी है कि अगले कुछ महीने में जम्मू-कश्मीर विधानसभा के चुनाव होने हैं और लोकतंत्र की इस फिज़ा को खराब करने के लिए पाकिस्तान हर मुमकिन कोशिश करेगा, जिसके लिए चीन उसे पर्दे के पीछे से हर तरह की मदद देने से नहीं कतरायेगा।
इसी के साथ अब भारत पर दबाव बनाने के लिए शी जिनपिंग एलएसी पर तनाव बढ़ा सकते हैं जिसके लिए भारत को पहले से कहीं अधिक सतर्क रहना होगा। शी जिनपिंग ने परमाणु कार्यक्रम का विस्तार करने की भी ठानी है। इस से दुनिया भर में परमाणु हथियारों की दौड़ बढ़ेगी। अमरीका और रूस के पास पहले ही काफी अधिक परमाणु अस्त्र-शस्त्र हैं। इससे अमरीका और चीन में टकराव का एक बड़ा कारण ताइवान है। चीन ताइवान पर अपना हक जताता आया है। दूसरी तरफ  अमरीका और ताइवान के रिश्ते काफी गहरे हैं। अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडेन कई बार कह चुके हैं कि चीन के हमले की स्थिति में अमरीका ताइवान की रक्षा करेगा। सीपीसी की बैठक में शी जिनपिंग ने दो टूक ऐलान कर दिया है कि चीन ताइवान में विदेशी दखल बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करेगा। ताइवान को लेकर टकराव बढ़ सकता है और हो सकता है कि चीन ताइवान में सैन्य कार्रवाई करे। अमरीका भी सीधे युद्ध में उलझना नहीं चाहेगा क्योंकि वह पहले भी कई बार अपने हाथ जला चुका है। इस समय चीन और रूस साथ-साथ हैं और दोनों देशों से निपटना बाइडेन के बस की बात नहीं होगी। तनाव की वजह दक्षिण चीन का इलाका भी है। दक्षिण चीन सागर 35 लाख वर्ग किलोमीटर तक फैला हुआ है। समुद्र के इस टुकड़े पर करीब 250 छोटे-बड़े इलाके हिन्द और प्रशांत महासागर के बीच हैं, जो चीन, ताइवान, वियतनाम, मलेशिया, इंडोनेशिया, ब्रूनेई आदि से घिरा है।
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 1939 से लेकर 1945 तक दक्षिण चीन सागर के ये सारे इलाके जापान के पास थे। जापान जंग हारा तो चीन ने समुद्र के इस टुकड़े पर कब्जा जमा लिया। चीन के लिए समुद्र का ये टुकड़ा यूं ही अहम नहीं इसके पीछे ठोस आर्थिक वजहें हैं। एक वजह है दक्षिण चीन सागर के वो खनिज जिन पर चीन गिद्द की नज़र दशकों से लगाये बैठा है। दशकों से चीन की दादागिरी दक्षिण चीन सागर की लहरों पर दुनिया देखती और झेलती आई है, खासकर जिनपिंग के सत्ता में आने के बाद यहां बारूद अधिक धधकता रहा है। जिनपिंग की ताजपोशी से यह आक्रामकता और बढ़ सकती है, ऐसा इसलिए क्योंकि दुनिया में होने वाले व्यापार का 80 फीसदी इसी समुद्री मार्ग से होता है। आने वाले दिनों में चीन एक बार फिर भारत के पड़ोसी देशों पाकिस्तन, श्रीलंका, भूटान और बांग्लादेश में अपने पांव पसार सकता है। हिन्द महासागर में उसका हस्तक्षेप बढ़ सकता है। देखना होगा कि भविष्य में वैश्विक समीकरण क्या रूप लेते हैं। दरअसल, दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में बैठे कई ऐसे विशेषज्ञ हैं, जो पिछले कई दशकों से चीन की राजनीति और वहां की जनता के मिज़ाज को बेहद गहराई से समझने की कोशिश में लगे हैं। 
कोलंबिया यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर एंड्रयू नेथन कहते हैं कि शी जिनपिंग का मानना है, ‘उनकी विचारधारा सही है और सबको इसे स्वीकार करना चाहिए।’ अतीत में देखें, तो जब भी माओत्से तुंग ने कोई भी नीति तय की, हर किसी ने उसका पालन किया। यही शी जिनपिंग के बारे में भी सच है।’ इतिहास बताता है कि एक तानाशाह की सोच पर चलने वाला नया शासक पुराने तानाशाह की नीतियों को न सिर्फ  दोहराता है, बल्कि उसे अपने देश की जनता को मानने पर भी मजबूर करता है। वही हाल आज चीन का भी है। 
एक सच यह भी है कि शी जिनपिंग के आक्रामक रुख को देखते हुए ही पिछले एक दशक में समूचे एशिया में हथियारों का ज़खीरा इकट्ठा करने की होड़ मची है। जिनपिंग ने इस एक दशक के शासन के दौरान चीन को दुनिया की सबसे बड़ी नौसेना बनाने के साथ ही थल सेना को भी नया और आधुनिक रूप दिया है। चीन ने अपने किसी भी दुश्मन को परेशान करने के लिए परमाणु और बैलिस्टिक शस्त्रागार में भी बड़ा इज़ाफा किया है। यही कारण है कि चीन के पड़ोसी देश भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान, ताइवान और वियतनाम अब अपनी सैन्य शक्ति को चीन के बराबर लाने के लिए जी-तोड़ कोशिश कर रहे हैं। 
-मो.  92212-32130