जी-20 सम्मेलन का महत्त्व


लगभग 23 वर्ष पूर्व जी-20 (20 देशों का समूह) अस्तित्व में आया था जिसका प्राथमिक उद्देश्य विश्व की अर्थ-व्यवस्था पर प्रत्येक पक्ष से गहनता से दृष्टिपात करना था। इस समूह का किसी न किसी देश में सम्मेलन होता है। आज के समय में इसका महत्त्व और भी बढ़ता हुआ दिखाई देता है क्योंकि अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर विश्व को दरपेश बहुत-से महत्त्वपूर्ण मामले विचार करने वाले होते हैं। लगभग दो वर्ष तक कोरोना महामारी ने विश्व भर के सांस को थामे रखा। इस काल में अधिकतर देशों की आर्थिकता बड़ी सीमा तक डोल गई थी तथा कई देशों में अनाज की अतीव कमी के साथ-साथ दवाइयों की कमी भी खटकने लगी थी। यह मुसीबत अभी टली नहीं थी कि रूस-यूक्रेन युद्ध ने विश्व की आर्थिकता पर और अधिक नकारात्मक प्रभाव डालना शुरू कर दिया। इस सन्दर्भ में ही इण्डोनेशिया के द्वीप बाली में जी-20 के प्रमुखों का शिखर सम्मेलन हो रहा है। इस सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विशेष रूप से अपने सम्बोधन में कोरोना की महामारी का उल्लेख करते हुये बताया कि कैसे अपने देश के करोड़ों नागरिकों को अनाज के उपजे इस बड़े संकट में से बचाया गया। उन्होंने यह भी कहा कि भारत ने इस अवसर पर अनाज के मामले पर अन्य देशों की सहायता भी की।
जहां तक रूस-यूक्रेन युद्ध का संबंध है, अमरीका सहित अधिकतर यूरोपीय देश यूक्रेन के पक्ष में खड़े दिखाई दिये परन्तु भारत ने इस युद्ध के दौरान अपनी नीति में संतुलन बनाये रखा तथा दोनों देशों के नेताओं के साथ सम्पर्क में रह कर सदैव उन्हें बातचीत के माध्यम से समस्या का हल निकालने की अपील की है। भारत की स्थिति को भांपते हुये आज बहुत-से देश यह चाहते हैं कि इस युद्ध में भारत दोनों के बीच समझौता वार्ता शुरू करवाने की सम्भावनाओं की तलाश करे। विश्व के वातावरण में भी भारी परिवर्तन देखे गये हैं जिनका इस समूची धरती पर प्रभाव पड़ने की सम्भावना बन गई है। इस संबंध में भी अधिकतर देश चिन्तातुर हैं। इस सम्मेलन में इस संबंध में भी विचार किया जा रहा है कि वैश्विक धरातल पर आर्थिक स्थिरता को मज़बूत करने के संबंध में भी पेशबंदियां की जाएं। यह सरोकार सम्मेलन का मुख्य विषय बना हुआ है। वर्ष 1999 में यह संगठन अस्तित्व में आया था। इसमें मुख्य रूप से यूरोपीय यूनियन को एक इकाई मानते हुये 19 अन्य वे देश शामिल हुये थे जिनकी बड़ी आर्थिकता का प्रभाव विश्व भर पर पड़ता है। इस समय इसके सदस्यों का विश्व में समूचा उत्पाद 80 प्रतिशत (जी.डी.पी.) के लगभग है। विश्व की 60 प्रतिशत आबादी इस सम्मेलन के देशों में बसी हुई है। विश्व भर का 85 प्रतिशत कार्य व्यापार इन देशों में ही होता है। आज जबकि ताईवान एवं दक्षिणी चीनी समुद्र में अमरीका के साथ बहुत-से देश चीन की विस्तारवादी नीतियों के विरुद्ध खड़े हैं, तो अमरीका के राष्ट्रपति जो बाइडन एवं चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की इस सम्मेलन में मुलाकात का भी अपना महत्त्व है। चीन की विस्तारवादी नीतियों के दृष्टिगत भारत, जापान, अमरीका, आस्ट्रेलिया आदि देशों ने क्वाड नामक संगठन भी बनाया हुआ है। फ्रांस भी हिन्द प्रशांत क्षेत्र में भारत को अपना पूर्ण सहयोगी मानता है। इस समय इस सम्मेलन के महत्त्व को दृष्टि-ओझल नहीं किया जा सकता है।
 आगामी वर्ष इस सम्मेलन की ज़िम्मेदारी भारत के सिर पर पड़ेगी जिसका फैसला इसी सम्मेलन में किया जाएगा। उस समय भारत की दुनिया को दरपेश मामलों के संबंध में एजेंडा तैयार करने की ज़िम्मेदारी होगी। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में विश्व भर में व्याप्त ़गरीबी का भी ज़िक्र किया है। इस कारण भारत सरकार की पहली एवं बड़ी ज़िम्मेदारी अपने देश में से ़गरीबी की लानत को खत्म करने के लिए अधिकाधिक यत्न करने की होगी। आज विश्व के 20 बड़े आर्थिक देशों में शामिल होने से भारत की पहली ज़िम्मेदारी तो अपने नागरिकों के जीवन स्तर में सुधार करने की ही होनी चाहिए तथा साथ ही उसे इस संगठन की भावना के साथ मिल कर विश्व भर की आर्थिकता को भी प्रत्येक पक्ष से स्थिर करने में अपनी समुचित ज़िम्मेदारी निभानी चाहिए।


—बरजिन्दर सिंह हमदर्द