प. बंगाल के विभाजन के मुद्दे पर प्रदेश में उठ सकता है बवंडर


पंचायत चुनाव जैसे-जैसे नज़दीक आ रहे हैं, उत्तर बंगाल गलत कारणों से चर्चा में है। उसे पश्चिम बंगाल से अलग एक राज्य या केंद्र शासित प्रदेश की मांग फिर से उठ गयी है। हालांकि, वर्तमान परिदृश्य पिछले साल से अलग है जब भाजपा सांसद जॉन बारला और विधायक आनंदमय बर्मन और शिखा चटर्जी ने उत्तर बंगाल को केंद्र शासित प्रदेश घोषित करने की मांग की थी। इस बार ग्रेटर कूचबिहार पीपुल्स एसोसिएशन (जीसीपीए) के नेता अनंत राय ने भाजपा की खुली मंजूरी के बिना ही ऐसी मांग की है।
भले ही राज्य में भगवा खेमा ऐसी मांग से खुद को दूर करना चाहता है, क्योंकि राज्य की आबादी के एक बड़े हिस्से के कड़े विरोध का सामना करना पड़ सकता है। भाजपा इस मामले में अपनी मिलीभुगत को छिपाने में विफल रही है। राय के केंद्र शासित प्रदेश की मांग उठाने से ठीक पहले केंद्रीय राज्य मंत्री और कूचबिहार के सांसद निसिथ प्रमाणिक के बीच हुई एक बैठक इस बात का स्पष्ट संकेत है कि यह कुहनी और पलक झपकाने वाली कहानी ही है। यह जलपाईगुड़ी, कूचबिहार, दार्जिलिंग और मालदा के व्यापक क्षेत्रों में फैले तृणमूल कांग्रेस के वोट बैंक को काटने के लिए एक सोची समझी चाल भी हो सकती है। ये राजवंशी हैं, अगर कोई मतदाताओं के एक विशेष समुदाय को चिन्हित करना चाहे तो। कोच-राजवंशी वामपंथियों के दृढ़ वोट बैंक थे, लेकिन 2011 में इन्होंने तृणमूल के प्रति निष्ठा स्थानांतरित कर दी। तथापि 2019 में, जब भाजपा ने राजवंशी वोटों के बल पर उत्तर बंगाल में अपनी उपस्थिति दर्ज करायी, तो उनका समर्थन एक निर्णायक कारक के रूप में उभरा। यदि साफ.-साफ  बात करें तो अगले साल होने वाले महत्वपूर्ण ग्रामीण चुनावों से पहले राज्य के राजनीतिक माहौल का ध्रुवीकरण करने के लिए यह एक भगवा खेमे की योजना है। जीसीपीए नेता के इस दावे ने कि कूचबिहार को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा केवल कुछ समय की बात है, आशा और आशंका दोनों को जन्म दिया है।
जहां एक ओर तृणमूल नेताओं ने राय के तर्क को खारिज कर दिया है, वहीं राज्य सरकार ने राय को, जिन्हें अनंत महाराज के रूप में जाना जाता है,  कूचबिहार में 210 वें रास मेले के उद्घाटन समारोह में आमंत्रित किया जो उनकी स्थिति और केंद्र शासित प्रदेश के लिए आंदोलन के महत्व को रेखांकित करता है। सत्तारूढ़ सरकार में कुछ लोग इस बात से इन्कार कर सकते हैं कि यह आमंत्रण एक राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी के लिए पहुंच कायम करने का एक इशारा था जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। राज्य के पार्टी अध्यक्ष सुकांत मजूमदार और विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी सहित प्रमुख राज्य भाजपा नेताओं ने अभी तक केंद्र शासित प्रदेश कूचबिहार की मांग का खुलेआम समर्थन नहीं किया है क्योंकि वे केवल इतना जानते हैं कि ऐसा करने से वे भगवा खेमे के वोट बैंक को डायनामाइट की तरह उड़ा देंगे जिसमें अन्य समुदाय भी शामिल होंगे जो दूसरे विभाजन के समर्थक हैं।
यहां तक कि हुगली से सांसद और गुजरे जमाने की नायिका लॉकेट चटर्जी ने भी अलग राज्य अथवा केंद्र शासित प्रदेश की मांग को खारिज कर दिया है। यदि उनके शब्द बारला, बर्मन और चटर्जी के शब्दों के साथ मेल नहीं खाते हैं तो यह महज दोहरी राजनीतिक बात करने का ही एक उदाहरण है। 
उल्लेखनीय है कि जंगल महल को अलग क्षेत्र बनाने की भाजपा सांसद सौमित्र खान की मांग को शुभेंदु अधिकारी का समर्थन नहीं मिला। इस तरह शत्रु के कार्यों में संयोग का योग बन रहा है। कुछ राजनीतिक पर्यवेक्षकों को लगता है कि भाजपा उस फॉर्मूले को लागू करने की योजना बना रही है जिसके द्वारा उसने लद्दाख को जम्मू-कश्मीर से अलग किया। ऐसे में ही राज्य सरकार अछूती रहेगी।
हालांकि तृणमूल सरकार इस तथ्य को खारिज नहीं कर सकती कि राय कोच-राजवंशी समुदाय के एक वर्ग पर अधिकार रखते हैं और उनके 18 लाख अनुयायी होने का दावा करते हैं। अगर तृणमूल और भाजपा ने एक बार उनकी मांग पर ध्यान नहीं दिया, तो वह अब ऐसा नहीं कर सकती। कुल मिलाकर 2021 के राज्य विधानसभा चुनावों में अपनी बड़ी हार के बाद भाजपा अपनी बढ़त के लिए तृणमूल की राजनीति खेल रही है। चुनी हुई राज्य सरकारों को नहीं गिराने की उसकी घोषणा को देखते हुए टीएमसी सरकार को कमजोर करने का अगला सबसे अच्छा विकल्प ‘राज्य को छोटा करने’ के लिए एक गेम प्लान तैयार करना है। 
स्थिति का एक और उभार इस मुद्दे पर तृणमूल कांग्रेस के समर्थन में है। पश्चिम बंगाल से अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाने का कड़ा विरोध करते हुए, राज्य कांग्रेस प्रमुख अधीर रंजन चौधरी ने कहा, ‘अगर उत्तर बंगाल के लोगों को समस्या है तो इसे संबोधित करना राज्य सरकार का काम है।’ जैसे-जैसे स्थिति तेज होती है, भगवा नेतृत्व ने इस तथ्य को नजरअंदाज कर दिया है कि राज्य को केंद्र शासित प्रदेश से अलग करने की मांग उन पर उल्टी पड़ सकती है। 1947 के बंटवारे के घाव भर गये, लेकिन निशान अभी बाकी हैं। पंचायत चुनाव खत्म होने के बाद, ग्रेटर कूचबिहार, गोरखालैंड और जंगल महल के मुद्दे अगले चुनाव तक ठंडे बस्ते में चले जायेंगे। (संवाद)