गलवान के बाद तवांग में झड़प के सबक


नौदिसम्बर की सुबह पीएलए (पीपल्स लिबरेशन आर्मी) के लगभग 400 सैनिकों (कुछ खबरों के अनुसार 600 सैनिकों) ने एलएसी (वास्तविक नियंत्रण रेखा) का उल्लंघन करते हुए भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ की जिसका वहां तैनात भारतीय जवानों ने ‘दृढ़ता व सख्ती से विरोध व मुकाबला’ किया। टकराव के समय भारतीय सेना के कम से कम तीन अलग-अलग यूनिट्स वहां मौजूद थे। अरुणाचल प्रदेश में संवेदनशील तवांग सेक्टर के यांगत्से में हुई इस झड़प में दोनों तरफ  के सैनिकों के हाथ-पैर टूटे व अन्य चोटें आयीं। छह भारतीय सैनिकों को उपचार हेतु गुवाहाटी के सैन्य अस्पताल में भर्ती कराया गया है। घायल हुए चीनी सैनिकों की संख्या इससे बहुत अधिक है। भारतीय सेना के वक्तव्य के अनुसार झड़प के बाद दोनों पार्टियों संबंधित क्षेत्र से तुरंत अलग हट गईं। इस घटना के फॉलो-अप के तौर पर संबंधित क्षेत्र के भारतीय कमांडर ने अपने पीएलए समकक्ष से फ्लैग मीटिंग की इस मुद्दे पर शांति व अमन स्थापित करने के लिए तयशुदा तरीके के अनुरूप चर्चा की।
भारतीय सेना का कहना है कि तवांग सेक्टर में एलएसी के पास कुछ क्षेत्र ऐसे हैं,जिन पर दावे विवादित हैं और दोनों साइड अपने-अपने अनुमानित दावों की लाइन तक पेट्रोल करती हैं। यह ट्रेंड 2006 से चला आ रहा है। पूर्वी लदाख की गलवान घाटी में 15 जून 2020 के टकराव के बाद यह भारत और चीन के बीच पहला मुख्य टकराव है, जिसे दोनों देशों की आपस में सैन्य व डिप्लोमेटिक स्तर की 16 वार्ताओं के बावजूद इस लिहाज़ से अंतिम नहीं कहा जा सकता; क्योंकि चीन अपरिभाषित 3,488 किमी लम्बी एलएसी के पास निरंतर स्थायी स्ट्रकचर खड़े कर रहा और आधुनिक सैन्य उपकरणों के साथ अपने सैनिकों की तैनाती संख्या में भी निरंतर वृद्धि कर रहा है। जवाब में भारत को भी अपना इन्फ्रास्ट्रक्चर बेहतर करते हुए एलएसी पर अपनी उपस्थिति मज़बूत करनी पड़ रही है ताकि चीन की किसी भी ओछी हरकत का मुंहतोड़ उत्तर दिया जा सके। इससे एलएसी पर हालात तनावपूर्ण व विस्फोटक बने हुए हैं जो मामूली चिंगारी से भी विकराल रूप ले सकते हैं। गौरतलब है कि गलवान घाटी की घटना में भारत के 20 सैनिक शहीद हुए थे और विश्वसनीय रिपोर्टों के अनुसार चीन के 44 सैनिक मारे गये थे, हालांकि अधिकारिक तौर पर चीन ने अपने कमांडिंग ऑफिसर सहित केवल चार सैनिकों का मारा जाना ही स्वीकार किया था। 45 वर्षों में यह पहला अवसर था जब दोनों देशों के बीच सीमा पर इतनी जबर्दस्त और खूनी झड़प हुई थी।
भारत और चीन के बीच एलएसी पर सैन्य तनाव को अब 30 माह से अधिक हो गये हैं। इस दौरान चीन ने न केवल पूर्वी लदाख में बल्कि पूरे फ्रंटियर पर अपनी सैन्य स्थिति को भी मज़बूत किया है। भारतीय सेना ने भी तवांग सेक्टर में एलएसी के पास अपनी फायरपॉवर व इन्फ्रास्ट्रक्चर को अपग्रेड किया है और यही प्रयास शेष अरुणाचल प्रदेश में भी जारी है। अपर दिबांग घाटी क्षेत्र में भारत ने विशेषरूप से रोड इन्फ्रास्ट्रक्चर, पुलों, टनलों, हैबिटैट व अन्य स्टोरेज सुविधाओं, एविएशन सुविधाओं के साथ ही कम्युनिकेशन व सर्विलांस को अपग्रेड किया है। बहरहाल,यह पहला अवसर नहीं है जब अरुणाचल प्रदेश के क्षेत्र में भारतीय व चीनी फौजों के बीच फेस-ऑफ या टकराव हुआ है। चूंकि सीमा अपरिभाषित है, इसलिए पेट्रोलिंग करते समय दोनों तरफ के सैनिकों का अक्सर आपस में आमना-सामना हो जाता है। अक्तूबर 2021 में भी एक ऐसी ही घटना हुई थी, जिसमें यांगत्से के निकट हल्की सी झड़प के बाद चीन की बड़ी पेट्रोल टीम के कुछ सैनिकों को भारतीय सेना ने कई घंटों के लिए हिरासत में ले लिया था। पीएलए एक 17,000-फीट की चोटी पर कब्जा करना चाहती थी, जिसे वहां तैनात सतर्क भारतीय सैनिकों ने नाकाम कर दिया था।
यहां यह बताना आवश्यक है कि पीएलए के पेट्रोल पैटर्न में अब काफी परिवर्तन आ गया है कि कुछ क्षेत्रों पर अपना नामनिहाद दावा थोपने के लिए उसकी बड़ी-बड़ी टीमें पेट्रोल करती हैं। पूर्वी लदाख में 2020 के टकराव से पहले चीन के ठिकाने एलएसी से काफी दूर थे, लेकिन अब वह काफी निकट आ गये हैं और कुछ खबरों के अनुसार तो चीन ने अपने स्थायी ठिकाने ऐसे क्षेत्रों में बनाये हैं, जिन पर भारत अपना दावा करता है। पूर्वी लदाख में जहां 2020 में हिंसक टकराव हुआ था वहां खबरों के अनुसार चीन के स्थायी स्ट्रक्चर हैं। ध्यान रहे कि एलएसी पश्चिम (लदाख), मध्य (हिमाचल प्रदेश व उत्तराखंड), सिक्किम व पूर्वी (अरुणाचल प्रदेश) सेक्टरों में विभाजित है। पिछले तीन वर्षों के दौरान अधिकतर उल्लंघन पश्चिमी सेक्टर में हुआ है जबकि पूर्वी व मध्य सेक्टर्स में अब यह निरंतर बढ़ता जा रहा है। दो वर्ष से अधिक हो गये हैं कि पूर्वी लदाख में अपरिभाषित एलएसी के अनेक स्थानों पर भारत व चीन के सैनिक एक दूसरे के काफी निकट तैनात हैं। हालांकि कुछ बिन्दुओं पर टकराव कम करने व उन्हें पेट्रोल रहित क्षेत्र बनाने के लिए डिप्लोमेटिक व सैन्य स्तर की अनेक वार्ताएं हुई हैं, जिनमें कुछ सफलता भी मिली है, लेकिन अन्य क्षेत्रों में दोनों तरफ  से तैनाती बढ़ती जा रही है और फलस्वरूप तनाव भी, जो किसी भी समय बड़े खूनी टकराव में परिवर्तित हो सकता है।
हालांकि तवांग भारत में है लेकिन उसे चीन दक्षिण तिब्बत का हिस्सा कहता है। भारत ने वहां बड़ी संख्या में अपने सैनिक तैनात किये हुए हैं ताकि पीएलए की किसी भी हरकत को नाकाम किया जा सके। अतीत में कई बार पीएलए ने एलएसी पार करके खाली पड़े भारतीय बंकरों व अन्य इन्फ्रास्ट्रक्चर को नुकसान पहुंचाया है। यांगत्से में नवीनतम टकराव ऐसे समय हुआ है जब भारत व चीन को कोर-कमांडर स्तर की वार्ता के 17वें चक्र की तिथि तय करनी शेष है। 16वें चक्र की वार्ता इस साल जुलाई में हुई थी। ध्यान रहे कि पिछले माह सेना प्रमुख जनरल मनोज पांडे ने एलएसी पर स्थिति को ‘स्थिर लेकिन अप्रत्याशित’ बताते हुए कहा था कि पीएलए ने एलएसी पर न तो अपने सैनिकों की संख्या में कमी की है और न ही सेना की मोबिलिटी व कनेक्टिविटी को तेज़ करने के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास को धीमा किया है। जनरल पांडे ने चीन की नमकहरामी के बारे में सावधान करते हुए कहा था, ‘हम सब जानते हैं कि चीन कहता कुछ है और करता कुछ और है। यह उसके धोखा देने का अंदाज़ है या उसका स्वभाव है या उसका चरित्र है।’ भारत की कोशिश है कि देपसंग व डेमचोक में जो टकराव के दो मुख्य बिंदु हैं उनपर वार्ता के ज़रिये सैन्य डिसइंगेजमेंट हो जाये, लेकिन चीन ने अभी तक इस सिलसिले में कोई दिलचस्पी नहीं दिखायी है। गौरतलब है कि पूर्वी लदाख में पिछले 30 माह से दोनों तरफ  के 50-50 हज़ार सैनिक तैनात हैं, जिनके पास आधुनिक व घातक हथियार हैं।
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