पलायन का दर्द


पंजाब में युवाओं का लगातार विदेशों में किसी न किसी ढंग से पलायन करना हमारे सामने कई गम्भीर प्रश्न खड़े करता है। किसी के लिए भी अपनी धरती को छोड़ना आसान नहीं होता परन्तु यदि अनेक विवशताएं सामने आ खड़ी हों तो यह मजबूरी भी बन जाता है। पिछले समय में यह रूझान बहुत अधिक बढ़ गया है जो बहुत चिन्ताजनक है। आज बेरोज़गारी शिखर पर है। रोज़गार की तलाश में ज्यादातर युवा दर-दर भटकते दिखाई देते हैं। उन्हें अपना भविष्य घने अंधरे में दिखाई देता है। आज जिस तरह की स्थिति इस छोटे-से प्रदेश की धरती की बनती जा रही है, वह बेहद निराशाजनक है। आर्थिक मंदी ने समूचे समाज को गिरफ्त में ले लिया है। अमन-कानून की स्थिति इस कद्र बिगड़ गई है, जिसने हर तरफ एक सहम पैदा कर दिया है। लुटेरों तथा गैंगस्टरों का चलन लगातार बढ़ रहा है। छोटे से छोटा व्यापारी भी स्वयं को असुरक्षित समझ रहा है। व्यापार के साथ-साथ उद्योग के लगातार गिरावट की तरफ जाने के भी अनेक कारण गिनाये जा सकते हैं। ज्यादातर युवा विवशतापूर्ण पलायन कर रहे हैं परन्तु अब तो अधिक समर्थ लोग भी यहां से विदेश जाकर रहने को प्राथमिकता देने लगे हैं। समाज में कानून व्यवस्था खत्म होती जा रही है। इसकी कमी आम व्यक्ति को महसूस होने लगी है। यदि आज ज्यादातर युवा विदेशों में जाकर परेशान होने को प्राथमिकता दे रहे हैं तो वह अपनी इस धरती से कितना ऊब चुके होंगे तथा हताश हो गये होंगे, इसका अनुमान लगा पाना कठिन नहीं है। स्कूल के बाद कुछ कक्षाएं पास करके युवा छात्र वीज़े के आधार पर किसी न किसी तरह यहां से निकलना चाहते हैं। छोटे-से इस प्रदेश में आज 77 लाख से भी अधिक लोगों के पास पासपोर्ट हैं। पासपोर्ट कार्यालयों के सामने दिन-प्रतिदिन लम्बी कतारें लगी दिखाई देती हैं। यदि एक व्यक्ति कोई आधार बना कर यहां से निकलकर किसी अन्य देश में जाता है तथा वह किसी न किसी तरह वहां अपने पांव जमाने में सफल हो जाता है तो फिर उसकी इच्छा यह होती है कि वह अपने पारिवारिक सदस्यों को भी यहां से निकाल कर विदेश ले जाए। 
पहले पहल प्रदेश के किसी एक क्षेत्र में ही ऐसा पलायन होता था परन्तु अब इस बात से कोई भी क्षेत्र अछूता नहीं रहा। क्षेत्रीय पासपोर्ट कार्यालय तो अब पासपोर्ट मेले लगाने को प्राथमिकता देने लगे हैं। अकेले अमरीका में ही भारत  के अलावा अन्य देशों से आये व्यक्तियों में 10 लाख लोगों को वर्ष 2022 में वहां की नागरिकता दी गई है। चाहे पलायन किये जाने वाले देशों की अपनी समस्याएं तथा उलझने बढ़ती जा रही हैं परन्तु जब तक यह सिलसिला जारी है, तब तक इच्छुक व्यक्तियों की वीज़ा कार्यालय के सामने लम्बी कतारें बरकरार रहने वाली हैं। एक समाचार के अनुसार कनाडा में वर्ष 2021 के समय में एक लाख भारतीय स्थायी निवासी बन गए थे तथा यहां दाखिल होने वालों की संख्या 4 गुणा अधिक है। चाहे इस समय कनाडा की नीति प्रवासियों को स्थायी करने की रही है परन्तु यह तब तक ही सम्भव हो सकेगा जब तक वहां की सरकार की ऐसी नीति कायम रहती है। प्रदेश की एक त्रासदी यह भी बन रही है कि पलायन करने वाली पहली पीढ़ी का तो किसी न किसी तरह इस धरती से संबंध बना रहता था परन्तु उससे आगामी पीढ़ी को यह पराई लगने लगती है। विदेशों में जाकर अपनी भाषा तथा संस्कृति की कितनी रक्षा की जा सकती है, इसके संबंध में कहना कठिन है। 
पहली पीढ़ी ने यहां जो सम्पत्ति तथा अपने घर बनाए हैं, वह लावारिस होते जा रहे हैं। बड़ी कोठियां खाली पड़ी हैं। नई पीढ़ी का यहां से मोह भंग होने के कारण यहां की ज़मीनें तथा सम्पत्तियां बिकने पर लगी हुई हैं। ऐसे पलायन के कारण चाहे कुछ भी हों यह दिलों में एक हूक ज़रूर पैदा करते हैं। यह भी कि आज हम हर पक्ष से इसलिए पतन की ओर जा रहे हैं कि यहां से प्रत्येक व्यक्ति जाना या भागना चाहता है। इस समय पंजाबियों को अपने भीतर गम्भीरता से दृष्टिपात ज़रूर करना पड़ेगा।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द