आमों की काश्त बढ़ाकर फलों की काश्त में विभिन्नता लाने की ज़रूरत

आम को फलों का राजा माना गया है। पंजाब में इसकी काशत फलों के अधीन क्षेत्र में से 9-10 प्रतिशत क्षेत्र पर ही है, जबकि किन्नू की काशत अधीन आधे के करीब क्षेत्र है। किन्नू को पंजाब के मुख्य फल के तौर पर जाना जाता है। पंजाब में आमों की काशत के नीचे का क्षेत्र इस कारण नहीं बढ़ा, क्योंकि इस फल से किन्नू और अमरूद के मुकाबले लाभ कम होता है। किन्नू के वृक्ष को फल बहुत लगता है और अमरूद साल में दो बार फल देता है। पंजाब का वातावरण आमों की काशत के लिए अनुकूल है। आमों की काशत के नीचे जो क्षेत्र है, उसमें से ज्यादातर क्षेत्र पर रिवायती किस्में जैसे दुशहिरा, लंगड़ा, चौसा आदि लगी हुई हैं, जो एक साल छोड़कर फल देतीं है। चाहे भारतीय कृषि खोज़ संस्थान (आई.सी.ए.आर.) द्वारा मध्यम हाइब्रिड किस्में पिछली शताब्दी के 70वें के बाद विकसित की गईं ‘अम्रपाली’ और ‘मलिका’ किस्मों के अलावा विभिन्न विशेषताएं रखने वाली कम ऊंचाई वाली पूसा श्रेष्ठ, पूसा प्रतिभा, पूसा लालिमा, पूसा पितांबर, पूसा अरुनिमा और पूसा सूर्य आदि भी इस शताब्दी में विकसित की गई हैं। प्रत्येक वर्ष फल देने वाली और उत्पादकों द्वारा पसंद की गई अम्रपाली किस्म पिछली शताब्दी के 7वें दशक के आरम्भ में विकसित की गई थी। भले ही यह ज्यादा फल देती है और इसकी घनी काशत की जाती है, परन्तु इसके फल का आकार छोटा होने के कारण यह व्यापारिक नहीं बन सकी। अम्रपाली किस्म के ब़ाग व्यापारिक स्तर पर हाल में ही पिछले कुछ वर्षों से लगने शुरू हुए हैं। इस किस्म के 250-300 तक पौधे एक एकड़ में लगाये जा सकते है। इस किस्म के 2.5 मीटर के फासले पर पौधे लगाकर अच्छी फसल ली जा सकती है। ब़ाग लगाने के लिए इस किस्म को उत्पादक इस लिए भी प्राथमिकता देते हैं कि यह देर से पकती है, जब मंडी में रेट ज्यादा मिलता है। आज उपभोक्ता सबसे ज्यादा बरामद की जाने वाली एैलफैंजो किस्म से अगले दर्जे पर अम्रपाली किस्म के फल को प्राथमिकता देते हैं। कुछ किसान जिन्होंने इसी पूसा संस्थान (आई.ए.आर.आई.) द्वारा विकसित की बड़े आकार वाली ‘मलिका’ किस्म के साथ मिलाकर अम्रपाली के बाग लगाये हैं, उनको दूसरी रिवायती किस्मों के मुकाबले इन किस्मों के बागों का ठेका और लाभ पिछले कुछ वर्षों से ज्यादा प्राप्त हो रहे हैं। अम्रपाली किस्म दशहरी और नीलम का करास है। इसका पौधा छोटा है। यह किस्म जुलाई के अंत में पक कर तैयार हो जाती है। पिछले कुछ वर्षों से मंडी में अम्रपाली और मलिका किस्मों की मांग बहुत बढ़ गई है।
मलिका किस्म के फल का आकार बड़ा है। यह किस्म व्यापारिक तौर पर लाभदायक भी है और अम्रपाली किस्म की तरह प्रत्येक वर्ष फल देती है। इसके फल का भार औसतन 307 ग्राम तक हो जाता है। ज़ायका और फलेवर लासानी है। अम्रपाली की तरह यह भी पिछेती पककर जुलाई में तैयार होती है। मलिका किस्म के ब़ाग ज्यादा कर्नाटक आंध्रप्रदेश और पश्चिम बंगाल राज्यों में लगे हुए हैं, जहां से यह मलिका किस्म का आम दूसरे देशों को निर्यात किया जा रहा है। इन राज्यों के उत्पादक इस किस्म से अच्छी कमाई कर रहे हैं। दूसरी हाइब्रिड किस्में जो पूसा संस्थान द्वारा विकसित की गई हैं और सर्व-भारतीय फसलों की किस्मों की प्रवानगी देने वाली सब-कमेटी द्वारा मान्यता प्राप्त कर चुकी हैं, पूसा सूर्य जिसका रंग दिलकश और कमरे में सैल्फ लाईफ दो सप्ताह और पूसा अरुणिमा घरेलू और व्यापार मंडी में मनपसंद और दो सप्ताह तक भंडार करने योग्य, पैदा करने के लिए पंजाब के वातावरण के अनुकूल है, जो पूसा में हुए ऑल इंडिया मैंगो शो में पंजाब यंग फार्मज़र् एसोसिएशन द्वारा पहला ईनाम प्राप्त कर चुकी है। यह किस्में हरमन प्यारी बन गई हैं। और प्रत्येक वर्ष फल देने वाली पूसा पितांबर, जिसका दिलकश रूप और चमकदार जर्द रंग है और जिस पर गुछे-मुछे का रोग कम आता है, फल का वज़न 213 ग्राम तक, फलेवर घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय मंडी में उपभोक्ताओं द्वारा पसंद किया जा रहा और पूसा लालिमा जिसका रूप बड़ा हरमन प्यारा, सूर्ख और संतरी गुद्दा है, अंतर्राष्ट्रीय मंडी में उपभोक्ताओं की पसंदीदा किस्में बन रही हैं। इसी संस्थान द्वारा विकसित की गई एक और पूसा प्रतिभा किस्म जिसके फल की बैकग्राऊंड सुनहरा ज़र्द, विटामिन ‘सी’ और बी-कैरोटीन भरपूर, दिलकश फलेवर वाली है, वह भी इसी पूसा संस्थान द्वारा विकसित की गई है। और हाईब्रिड छोटी किस्में जो इस संस्थान द्वारा विकसित की गई है और उत्पादकों व उपभोक्ताओं की पसंद बन गई है, अच्छे फलेवर वाली पूसा श्रेष्ठ जो पश्चिम और दक्षिण के मैदानी क्षेत्रों में काशत करने के लिए सिफारिश की गई है और पूसा प्रतिभा किस्म भूरा जर्द और संतरी गुद्दा, खुशगवार फलेवर और कमरे में एक सप्ताह से ज्यादा समय के लिए रखी जा सकती है, इनको नए बाग लगाने और बगीचियां, ट्यूब्वैलों पर लगाने के लिए उपभोक्ता चुन सकते हैं और सफलता प्राप्त कर सकते है।
बागबानी विभाग के पूर्व डिप्टी डायरैक्टर डा. स्वर्ण सिंह मान कहते है कि आमों को ‘गुदेहड़ी’ से बचाने के लिए आज कल मीथाईल पाराथीयान 50 ग्राम प्रति पौधे के हिसाब से आस-पास छिड़क देनी चाहिए, ताकि इस बीमारी के कारण जो धीरे-धीरे फूलों वाली टहनियों और डंडियों पर जो कीड़े लगते हैं और फूलों को सुखा देते हैं, उनसे बचाव हो सके। गुदेहड़ी के बच्चों को आमों के वृक्षों पर चढ़ने से रोकने के लिए वृक्षों के आस-पास प्लास्टिक की पट्टी लगा देनी चाहिए। 
इसके साथ बच्चे जो ऊपर चढ़ने की कोशिश करेंगे, नीचे गिर जाएंगे। फिर वृक्षों को ‘मैंगो होपर’ भी आता है, जो फल का 40 से 60 प्रतिशत तक नुकसान कर देता है। इसकी रोकथाम के लिए फरवरी और मार्च के अंत में 100 मिलिलीटर कोनफीडोर या 50 ग्राम एक्टारा 25 डब्ल्यू.जी. का स्प्रे करना चाहिए। मध्यम किस्मों के पौधों को एलमोनीयम सलफेट, सिंगल सुपर फास्फेट और पोटाशियम सलफेट मिकसचर रूड़ीखाद के साथ मिलाकर आमों के पौधों को विशेषज्ञों की सलाह के साथ खाद के तौर पर डाल देने चाहिए। जो ठंड पड़ रही है वह किन्नू फल के वृक्ष के लिए तो बहुत लाभदायक है परन्तु आम के छोटे पौधों को इस से बचाने का प्रयत्न करना जरूरी है।