पतनोन्मुख होता युवा वर्ग


देश की राजधानी दिल्ली में नव-वर्ष की पूर्व रात्रि को एक ऐसी घटना/दुर्घटना घटित हुई जिसने न केवल देश के अनेकानेक जन-साधारण को मर्माहत किया है, अपितु यह सोचने पर भी विवश किया है, कि देश की युवा पीढ़ी जाने-अनजाने आखिर कैसे नैतिक और मानसिक पतन की ओर अग्रसर होती जा रही है। इस घटना के अन्तर्गत नव-वर्ष की नई सवेर से पहले ही एक कार में सवार कुछ युवकों ने न केवल एक युवती की स्कूटी को टक्कर मार दी, अपितु उसको लगभग 12 किलोमीटर तक घसीटते हुए ले गये जिससे युवती का शरीर बुरी तरह से कुचला गया और इसी दौरान उसकी मृत्यु भी हो गई। कार के भीतर गानों का इतना शोर था कि पहले तो युवकों को युवती के घिसटते आने का पता ही नहीं चला, और जब पता चला भी, तो उन्होंने थोड़ी-बहुत मानवीयता, संवेदना और कानून के पालन की भावना का प्रदर्शन करने की बजाय कानूनोल्लंघन का दामन थामा और युवती के क्षत-विक्षत शव को कार के पहिये से उतार कर, उसे उसी सड़क पर फैंक कर अपने-अपने घरों को चले गये। ये युवक धनी-मानी तो नहीं थे, परन्तु उच्छृंखलता, निष्ठुरता और कानून भंग की इनकी मानसिकता किसी भी अन्य आपराधिक वर्ग से कम नहीं थी। इस त्रासदी का एक दूसरा पक्ष यह भी है कि इस युवती के साथ होटल से ही, उसकी एक मित्र भी स्कूटी पर मौजूद थी हालांकि भयावह घटना के बाद वह भी अपनी मित्र को संकट में छोड़ कर अपने घर लौट गई। इससे भी पता चलता है कि मौजूदा भौतिकतावादी युग में संबंधों की गरिमा का पतन किस सीमा तक हुआ है। इस घटना के त्रासद और गम्भीर पक्ष का आलम यह भी है कि दिल्ली के उप-राज्यपाल वी.के. सक्सेना ने इस घटना को भयावह और असंवेदनशील करार देते हुए, दिल्ली के पुलिस कमिश्नर को तलब किया। केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने भी पुलिस कमिश्नर से विस्तृत रिपोर्ट की मांग करते हुए घटना की कड़ी जांच का निर्देश दिया है।
देश में आज उन्नति, प्रगति और समृद्धि की आहट ने एक ओर जहां युवा वर्ग और खास तौर पर नव-धनाढ्य वर्ग के युवाओं में उच्छृंखलता, कानून-हीनता और धन-बल के प्रदर्शन की प्रवृत्ति को जन्म दिया है, वहीं इनकी देखा-देखी साधारण युवाओं में भी उत्पन्न होती आपारधिक मानसिकता के चलन में भारी वृद्धि हुई है। इस स्थिति ने देश में प्रशासनिक असमानता और असंतुलित व्यवहार में भी इज़ाफा किया है। देश में एक ओर जहां पूंजी का कुछ सीमित हाथों में केन्द्रीयकरण हुआ है, वहीं रातो-रात अमीर बनने अथवा दिखने के चक्कर में, युवा वर्ग में अपराध और नशे का सेवन भी बढ़ा है। विगत कुछ दशकों में नशीले पदार्थों, मदिरालयों, रात्रि क्लबों आदि केन्द्रों की बहुतायत नें युवाओं में नशे की लत को बढ़ावा दिया है। इस कारण होने वाली आपराधिक घटनाओं में एकाएक हुई भारी वृद्धि इसका बड़ा प्रमाण है। देश में पाश्चात्य  ढंग से नये वर्ष के निरन्तर बढ़ते जश्नों ने भी इस प्रकार की आपराधिक घटनाओं और ऐसी मानसिकता में वृद्धि की है, और इसी मानसिकता का प्रमाण है, दिल्ली में घटित हुई मौजूदा घटना/दुर्घटना। कार-सवार युवकों ने कार भी किसी से मांग कर ली थी, और नया वर्ष मनाने की चाहत, और इसके अन्तर्गत तेज़ रफ्तार ने एक ऐसे अपराध को जन्म दिया जिसने न केवल एक महत्त्वाकांक्षी युवती की जीवन लीला को लील कर उसके परिवार की आशाओं एवं आकांक्षाओं पर कुठाराघात किया, अपितु चार-पांच अन्य परिवारों पर भी आफतों का पहाड़ टूट पड़ने की सम्भावनाएं पैदा कर दी हैं।
हम समझते हैं कि इस प्रकार की घटनाओं के लिए जहां देश की अपनी सांस्कृतिक विरासत और परम्पराओं को भूल कर पाश्चात्य सभ्यता को अपनाये जाने की उत्कट वृत्ति उतरदायी है, वहीं अभिभावकों द्वारा अपने बच्चों के आचार-व्यवहार पर अंकुश न रहना भी उतना ही ज़िम्मेदार है। दूसरों की देखा-देखी तत्काल अमीर बनने, और फिर इस अमीरी के प्रदर्शन की भावना भी इस प्रकार की घटनाओं में वृद्धि करती है। घटना के सम्पूर्ण परिप्रेक्ष्य का विश्लेषण करें तो एक बात प्राय: स्पष्ट हो जाती है कि प्रशासनिक तंत्र की ओर से कहीं न कहीं कोताही तो हुई है। घटना के बाद  पुलिस प्रशासन ने भी यह  स्वीकार किया है कि इस क्षेत्र में तैनात पुलिस कर्मचारियों की ओर से कर्त्तव्य के निर्वहन में त्रुटि हुई है। प्रत्यक्षदर्शी दूध-विक्रेता ने भी बताया कि उसने पुलिस नियंत्रण कक्ष और पी.सी.आर. टीमों को लगभग डेढ़ दर्जन बार काल्स कीं, किन्तु किसी भी समय किसी ने न तो समुचित कार्रवाई की, न किसी ने कोई सार्थक प्रत्युत्तर दिया। राजधानी दिल्ली की इस घटना ने नि:सन्देह देश भर के जन-साधारण को आहत किया है। दिल्ली में रोष प्रदर्शन भी हुए, और मृतका के परिजनों ने धरने भी लगाये हैं, किन्तु हम समझते हैं कि ऐसी मानसिकता और स्थिति से बचने हेतु जहां प्राचीन भारतीय आस्थाओं और परम्पराओं को निभाये जाने की बड़ी आवश्यकता है, वहीं प्रशासन और विशेषकर पुलिस तंत्र द्वारा अपनी इच्छा शक्ति, मानवीयता की भावना और निष्ठा को जागृत करना भी बहुत ज़रूरी है। इस सम्पूर्ण घटनाक्रम के दृष्टिगत मृतका के मां-बाप को विश्वास में लिया जाना, और उनके संदेहों का तर्क-युक्त तरीके से निराकरण किया जाना भी बहुत ज़रूरी है। उनकी युवा बेटी की जान गई है। उनकी पीड़ा को महसूस किया जाना बनता है। हम यह भी समझते हैं कि इस नाज़ुक मामले में राजनीति तो कदापि नहीं की जानी चाहिए। कुछ इसी प्रकार के सामाजिक, पारिवारिक और प्रशासनिक धरातल पर किये जाते यत्नों और युवा मानसिकता में परिवर्तन लाये जाने से ही देश की युवा पीढ़ी को तेज़ी से पतनोन्मुख होने से बचाया जा सकता है, और कि इससे इस प्रकार की घटनाओं पर अंकुश लगाने की सम्भावना भी बन सकती है।