भयावह होता युद्ध

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने शुक्रवार को अपने सैनिकों को आगामी 36 घंटों की युद्धबंदी करने का निर्देश दिया था, क्योंकि इन दिनों में रूसी चर्च द्वारा क्रिसमस की छुट्टी मनाई जाती है परन्तु यूक्रेन ने उसके इस निर्देश को ठुकरा दिया था। यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की के  सलाहकार मिखाइलो पोडैलियाक ने रूस की इस बात को ठुकरा दिया था तथा कहा था कि पहले रूस यूक्रेन के कब्ज़े वाले क्षेत्रों को छोड़े। उसके बाद ही किसी अस्थायी समझौते की बात हो सकती है।
इससे पूर्व यूक्रेन ने यह दावा भी किया था कि उसने एक दिन में रूस के 800 सैनिकों, एक विमान, एक हैलीकाप्टर तथा तीन टैंकों को तबाह कर दिया है। इससे पूर्व रूस द्वारा हवाई हमलों, मिसाइलें तथा लगातार रॉकेट द़ागने से यूक्रेन के पूर्वी क्षेत्र में भारी विनाश किया था। उसने यूक्रेन के प्रदेश दुनेत्स्क के साथ लगते क्षेत्र के दो अन्य बड़े शहरों में विनाश ढाया। विगत 11 मास से हमलावर रूस द्वारा न सिर्फ यूक्रेन के 18 प्रतिशत सीमांत क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर लिया गया है, अपितु इस युद्ध में अब तक हज़ारों ही लोग मारे भी जा चुके हैं। लाखों ही शरणार्थी हो गए तथा यूक्रेन की अर्थ-व्यवस्था बड़ी सीमा तक   तबाह हो गई। यूक्रेन सोवियत यूनियन से 1991 में अलग हुआ था। उसके बाद इस देश ने न सिर्फ अपने पांवों पर खड़े होने का यत्न किया, अपितु यह विश्व को गेहूं तथा अन्य खाद्यान्न उत्पादन उपलब्ध करने वाला बड़ा देश बन कर भी उभरा था। इसकी गेहूं तथा अन्य कृषि उपज विश्व भर के देशों को निर्यात की जाती थी। रूसी हमले के कारण बड़ी सीमा तक यह निर्यात भी बंद हो चुका है। चाहे रूस एक बड़ा देश है तथा उसके पास विशाल तथा शक्तिशाली सेना तथा आधुनिक हथियार हैं। उसने पूरी शक्ति के साथ पड़ोसी यूक्रेन के बड़े क्षेत्र पर न सिर्फ कब्ज़ा ही किया है, अपितु देश के ज्यादातर भाग का पूरी तरह विनाश भी कर दिया है। परन्तु इसके बावजूद जितनी दलेरी के साथ ज़ेलेंस्की के नेतृत्व में यूक्रेन के सैनिकों तथा निवासियों ने इस हमले का मुकाबला किया है, वह बेहद आश्चर्यचकित करने वाला है। अमरीका, आस्ट्रेलिया तथा यूरोप के बड़े देशों ने भी उसकी हर पक्ष से सहायता की है।
यदि वह अब तक भारी विनाश होने के बावजूद एक महाशक्ति का मुकाबला कर सका है तो यह उसके द्वारा दिखाये बड़े हौसले के साथ-साथ विदेशी सहायता के कारण ही सम्भव हो सका है, जिसने अब तक उसके पांव जमाये रखे हैं। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रोन ने यहां आधुनिक हथियार भेजे हैं। जर्मनी तथा अमरीका ने भी अब एक बार पुन: आधुनिक टैंक भेज कर इसकी लड़ने तथा सहनशक्ति को बढ़ा दिया है। शायद रूस तथा विश्व को यूक्रेन से ऐसी आशा नहीं थी। आज भी इस देश के पूर्वी भाग में भीषण युद्ध चल रहा है, जिससे यह प्रतीत होने लगा है कि आगामी समय में न सिर्फ इस युद्ध के और भी भयावह हो जाने की सम्भावना है, वहीं इसके विश्व भर में फैल जाने का भी ़खतरा बना दिखाई देता है। वैसे भी इस युद्ध ने विश्व भर के देशों की अर्थ-व्यवस्था पर किसी न किसी तरह से अपना बड़ा प्रभाव डाला है। 
अब तक बन चुकी इस पूरी स्थिति में भारत से भी यह आशा रखी जाने लगी है कि वह इस युद्ध को समाप्त करवाने हेतु अपनी भूमिका निभाए, क्योंकि इसके दोनों ही देशों के साथ संबंध बने हुए हैं। इसलिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से यह उम्मीद की जाने लगी है कि वह इस युद्ध को रुकवाने में प्रभावशाली भूमिका निभा सकते हैं। नि:सन्देह इसे रोकने हेतु आज व्यापक स्तर पर अन्तर्राष्ट्रीय यत्नों की आवश्यकता होगी।


—बरजिन्दर सिंह हमदर्द