सोये भारत की आत्मा को जगाया स्वामी विवेकानंद ने

 

भारत दुनिया का सबसे युवा देश है। विश्व शक्ति बनने की ओर सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था का तगमा हासिल किया है इसने। विज्ञान व तकनीक में कमाल करते वैज्ञानिक, खेल की दुनिया में बढ़ते कदम। यही है आज के भारत की पहचान और इस पहचान का पूरा पूरा श्रेय जाता है देश की युवा पीढ़ी को। आज 12 जनवरी है यानि विवेकानंद जयंती। आज जब सब जगह विवेकानंद जयंती व युवा दिवस मनाया जा रहा है, तब भारत के परिप्रेक्ष्य मेें देखना होगा कि आज के युवा की दशा व दिशा क्या होनी चाहिए? उसे देश के लिए क्या करना चाहिए?
स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में हुआ। उस समय 1857 के स्वतंत्रता संग्राम की असफलता के बाद पूरा देश निराशा में डूबा हुआ था। आधी दुनिया पर राज करने वाले अंग्रेजों का दमन भरा कठोर शासन और ईसाई मिशनरी के प्रबल प्रचार के कारण उस समय भारत हीन भावना में ग्रस्त होता जा रहा था। पूरे देश में ईसाई मिशनरी ने यह प्रचार किया था कि भारत एक पिछड़ा, अनपढ़ , बंजारों और गडरियों का देश है। ऐसा दुष्प्रचार करके वे सेवा के नाम पर विदेशों से धन इकट्ठा करते थे और भारत में ईसाई धर्म को फैलाते थे। ऐसे समय पर 1893 में शिकागो में विश्व धर्म सम्मेलन के मंच पर जब भारत के युवा संन्यासी स्वामी विवेकानंद ने वेदांत और भारतीय दर्शन की महानता बताई तो पूरा विश्व हैरान रह गया। उनके भाषण के दूसरे दिन प्रसिद्ध समाचार पत्र न्यूयॉर्क हेराल्ड ने लिखा था : विश्व धर्म सम्मेलन में स्वामी विवेकानंद सबसे महान धार्मिक नेता थे। उनका भाषण सुनकर यह लगा कि इतने महान देश में ईसाई मिशनरी भेजना कितनी मूर्खता की बात है।
 स्वामी विवेकानंद ने उसके बाद पूरे देश में घूम-घूम कर लोगों विशेषकर युवाओं में  देश भक्ति की भावना जगाई और हीन भावना को समाप्त किया। देश की युवा शक्ति को उन्होंने ललकारा। हीन भावना और निराशा की नींद से भारत जगा और उसके बाद स्वतंत्रता आंदोलन से भारत ने आजादी प्राप्त की। स्वामी विवेकानंद ही एक ऐसे युवा हैं जिन्होंने संत बन कर पूरी दुनिया को भारत की पहचान करवाई।
इसी कारण सुभाष चंद्र बोस ने कहा था, ‘स्वामी विवेकानंद जी ने धर्म को एक नया अर्थ दिया। उनके विचारों ने युवा वर्ग पर अमिट छाप छोड़ी है। वस्तुत: भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के संस्थापक स्वामी विवेकानंद जी थे।’
भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने कहा था कि विवेकानंद प्राचीन और आधुनिक भारत को जोड़ने वाला पुल थे। भारत के कम्युनिस्ट नेता हीरेन मुखर्जी ने कहा था, ‘स्वामी विवेकानंद एक ऐसे संन्यासी थे जिन्होंने अपने देशवासियों की दुर्दशा पर खून के आंसू बहाए थे। उन्होंने अपनी मुक्ति के लिए घर परिवार त्यागा पर उसी मुक्ति को देशवासियों के लिए त्याग दिया। यही कारण है कि मेरे जैसा नास्तिक व्यक्ति भी उस महापुरुष के आगे नतमस्तक होता है।’
स्वामी विवेकानंद ने संन्यास को एक नई परिभाषा दी। पहले संन्यास ले कर घर बार और संसार को छोड़ दिया जाता था। उन्होंने कहा कि संन्यास का अर्थ है, सभी के लिए कल्याण की भावना को जगाना। भारत का संन्यासी अपने लिए नहीं अपितु मातृभूमि के लिए और मानव मात्र के लिए जीता है। उन्होंने कहा था, मैं उसी को महात्मा कहता हूं जिसका हृदय गरीबों के लिए रोता है। देश की गरीबी, भुखमरी को देख कर स्वामी जी बड़ी वेदना को अनुभव करते थे। वह एक क्त्रांतिकारी संन्यासी थे। इसीलिए भारत की गरीबी और उसके प्रति सम्पन्न लोगों की बेरुखी को देखकर उन्होंने कहा था, जो लोग देश के साधनों से सम्पन्न होते हैं और अपने पांव पर खड़े हो जाते हैं, किन्तु वे न तो देश के गरीबों के बारे में कभी कुछ सोचते हैं और न ही उनके लिए कुछ करते हैं, वे सब देशद्रोही हैं।
एक दिन एक साधारण-सा युवक स्वामी विवेकानंद के पास आया। उसने कहा, मैं आपसे गीता पढ़ना चाहता हूं। स्वामी जी ने युवक को ध्यान से देखा और कहा, 6 माह प्रतिदिन फुटबॉल खेलो, फिर आओ। तब मैं गीता पढ़ाऊंगा। युवक आश्चर्य में पड़ गया। गीता जैसे पवित्र ग्रंथ के अध्ययन के बीच में यह फुटबॉल कहां से आ गया। उसकी चकित अवस्था को देख कर स्वामी जी ने समझाया: भागवत गीता वीरों का शास्त्र है। एक सेनानी द्वारा एक महारथी को दिया गया दिव्य उपदेश है। अत: पहले शरीर का बल बढ़ाओ। शरीर स्वस्थ होगा तो समझ भी परिष्कृत होगी। गीता जी जैसा कठिन विषय आसानी से समझ सकोगे। जो शरीर को स्वस्थ नहीं रखता, सशक्त-सजग नहीं रह सकता, वह गीता जी के विचारों, अध्यात्म को कैसे संभाल सकेगा। जीवन में कैसे उतार पाएगा। उसे पचाने के लिए स्वस्थ शरीर और स्वस्थ मन भी चाहिए।
 स्वतंत्रता के इतने वर्षों बाद आत्म-गौरव का भाव लेकर देश आगे बढ़ रहा है। आर्थिक विकास तो हो रहा है किन्तु सामाजिक न्याय नहीं हो रहा है। विश्व के सबसे अमीर देशों में भारत का नाम है परंतु भारत में आज भी लाखों लोग भूखे सोते हैं। देशभक्ति, अनुशासन और राष्ट्रीय चरित्र को बढ़ाने की आवश्यकता है। आज एक बार फिर से स्वामी जी के संदेश को व्यवहार में लाने की बड़ी आवश्यकता है। स्वामी विवेकानंद केवल 39 वर्ष 5 महीने और 24 दिन इस संसार में सशरीर रहे, परन्तु उनकी दिव्य ज्योति युगों-युगों तक भारत को आलोकित करती रहेगी। स्वामी जी के जन्मदिन पर आज हर भारतवासी उन्हें श्रद्धा से प्रणाम करता है।-मो . 7837811000