अर्थ-व्यवस्था के लिए बोझ है पैंशन की पुरानी योजना

 

वैसे तो पैंशन और चुनाव में कोई संबंध नहीं है लेकिन विगत कुछ समय से पैंशन योजना भी चुनावी मुद्दा बन गई है। हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की जीत के बाद यह मुद्दा गर्माया हुआ है। कांग्रेस यहां पुरानी पैंशन योजना(ओपीएस) बहाली के वादे के साथ ही सत्ता में आई है। पार्टी ने कैबिनेट की पहली ही बैठक में इस पर अमल का एलान भी कर दिया। राजस्थान में भी कांग्रेस सरकार पुरानी पैंशन योजना बहाल कर चुकी है और छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार भी ऐसा ही करने वाली है। पंजाब में सत्ताधारी आम आदमी पार्टी भी इस योजना की बहाली पर काम कर रही है। 
2004 में इस योजना को बंद करते हुए नई पैंशन योजना लागू की थी, तब यही कहा गया था कि पैंशन की पुरानी योजना का बोझ अर्थव्यवस्था के लिए घातक है। केंद्र के स्तर पर नई राष्ट्रीय पैंशन योजना(एनपीएस) प्रभावी होने के बाद धीरे-धीरे सभी राज्यों ने इसे अपना लिया था। अब जिस तरह से चुनावी लाभ के लिए राजनीतिक दल पैंशन योजना को हथियार बनाने में लगे हैं, उसने आर्थिक विशेषज्ञों की नींद उड़ा दी है। अभी जिन राज्यों में पुरानी योजना को बहाल किया जा रहा है, वहां अगली सरकारों को अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ेगा। इससे करदाताओं पर भी अतिरिक्त दबाव पड़ने की बात कही जा रही है।  आरबीआई ने जून 2022 में जारी अपनी रिपोर्ट में पुरानी पैंशन योजना लागू करने वाले राज्यों को चेतावनी देते हुए कहा था कि इससे वित्तीय स्थिति प्रभावित होने के साथ भावी पीढ़ी पर कर का अधिक बोझ पड़ेगा। केंद्रीय बैंक ने कहा कि वर्ष 2017-22 तक देश के 10 सबसे अधिक कर्जदार राज्य अपने जीएसडीपी का 12.5 प्रतिशत पैंशन भुगतान पर खर्च कर रहे हैं। इन राज्यों में पंजाब, हरियाणा, केरल, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और झारखंड मुख्य रूप से शामिल हैं। 
गुण-दोषों से इतर एक बुनियादी सवाल यह है कि सरकार करदाताओं की कीमत पर कुछ लोगों को आर्थिक सुरक्षा क्यों दे जैसा कि पुरानी पैंशन व्यवस्था में था? बेशक एनपीएस उन उद्देश्यों में नाकाम रही है जिसका दावा इसे बनाते समय किया गया था। कैग की 2018 की रिपोर्ट और राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने भी इस पर आपत्ति जताई है। इसके बावजूद जिस तरह से इस मुद्दे पर राजनीति हो रही है, वह सही नहीं है।
असल में यह किसी योजना के लागू कर देने भर का सवाल नहीं है। यह संबंधित राज्य सरकार की आर्थिक स्थिति का मसला है। लगभग सभी राज्यों पर उनके सकल घरेलू उत्पाद की तुलना में अस्वीकार्य स्तर तक कर्ज है। ब्याज का बोझ राजस्व की तुलना में तेजी से बढ़ रहा है। बंगाल, केरल, मध्य प्रदेश और आंध्र प्रदेश में जीएसडीपी के तिहाई तक कर्ज पहुंच चुका है। राजस्थान और बिहार में कर्ज करीब 40 प्रतिशत और पंजाब में 50 प्रतिशत तक कर्ज है। 
जीएसडीपी के 20 प्रतिशत से ज्यादा कर्ज होना अस्वीकार्य स्तर माना जाता है। पंजाब और केरल में पिछले 5 साल में कर राजस्व गिरा है। इन राज्यों में विकास कार्यों पर पूंजीगत खर्च 10 प्रतिशत से भी कम है। पैंशन राज्यों का विषय है और इसे केंद्र थोप नहीं सकता। सभी राज्यों ने इसे स्वेच्छा से लागू किया है। वामदलों ने 2००4 में इसका विरोध किया लेकिन केरल, त्रिपुरा में वाम शासित सरकारों ने भी इसे लागू किया है। नई पैंशन योजना को लेकर रोचक यह है कि इसकी मूल वास्तुकार कांग्रेस ही थी जिसने मनमोहन सिंह के नेतृत्व में इसे आकार दिया है। अब चुनावी फायदे के लिए कांग्रेस शासित राज्य इस पर रोलबैक कर रहे हैं। 
नई पैंशन योजना को लाई तो अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी लेकिन वर्ष 2008 में संप्रग के केंद्रीय वित्त मंत्री पी.चिदंबरम ने नई पैंशन योजना को आवश्यक कदम बताया था औैर सभी राज्यों से नई पैंशन स्कीम में शामिल होने की गुजारिश की थी। वर्ष 2004 में नई पैंशन योजना को लागू करने के दौरान वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा थे और हाल ही में उन्होंने कहा था कि हमने भारत की पैंशन योजना की विस्तृत पड़ताल की और पाया कि सरकार वेतन से अधिक भुगतान पैंशन के मद में कर रही है।  
राज्य टैक्स से मिलने वाले राजस्व का चौथाई हिस्सा पैंशन पर खर्च करते हैं। हिमाचल प्रदेश में कर राजस्व का 80 प्रतिशत से ज्यादा पैंशन पर खर्च हो जाता है। बिहार में 60 प्रतिशत, पंजाब में 35 प्रतिशत, राजस्थान में 31 प्रतिशत और छत्तीसगढ़ में 25 प्रतिशत कर राजस्व पैंशन पर खर्च होता है। वेतन व ब्याज आदि को भी जोड़ लें तो ज्यादातर राज्यों में करीब 90 प्रतिशत तक कर राजस्व खर्च हो जाता है। 
अभी केंद्र सरकार पुरानी पैंशन योजना के तहत 68.62 लाख पूर्व कर्मचारियों को पैंशन देती है जबकि केंद्रीय कर्मचारियों की संख्या 47.68 लाख ही है। औसत आयु बढ़ने से आबादी में 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों की संख्या बढ़ती जाएगी। सरकारी अनुमान के मुताबिक वर्ष 2041 तक भारत की 16 प्रतिशत आबादी  60 साल से अधिक उम्र की होगी जबकि वर्ष 2011 में 8.6 प्रतिशत आबादी 60 साल से ऊपर की थी।  नई पैंशन योजना को बंद कर पुरानी पैंशन योजना फिर से शुरू की जाती है तो कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। इतने वर्षों के बाद यदि एनपीएस को बंद किया गया तो जिन तीन प्रमुख संस्थानों में इससे मिली राशि निवेश की गई है, उन्हें अचानक कैसे संभाला जाएगा। एनपीएस बंद हुई तो इस मद में जमा रकम का प्रयोग सरकारें किस प्रकार करेंगी। पैंशन फंड रेगुलेटरी अथॉरिटी से राज्य सरकारों ने 30 साल का अनुबंध किया है, उसका क्या होगा। महाराष्ट्र, तमिलनाडु और बिहार समेत कुछ राज्यों में एनपीएस अंशदान प्रावधानों के अनुरूप जमा नहीं हुआ है। वहां व्यवस्था बदलने पर और भी दिक्कतें आएंगी। 
सामान्यत: कल्याणकारी योजनाओं का लक्ष्य होता है समाज के कमजोर वर्ग को मजबूत बनाना। अगर टैक्स से मिले राजस्व के बजाय कर्ज लेकर लोकलुभावन वादे पूरे किए जाएं तो अगली पीढ़ी को इसकी कीमत चुकानी पड़ती है। इससे वित्तीय हालत और कमजोर हो जाती है। राज्य सरकारों का काम है प्रशासन सुधारना, नगर निकायों एवं पंचायतों को मजबूत करना। राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है कि अपने लोगों की आर्थिक स्थिति मजबूत करें। उन्हें परिसंपत्तियों का निर्माण करना चाहिए और ऐसे क्षेत्रों में निवेश करना चाहिए जिनसे व्यापक लाभ सुनिश्चित हो। (अदिति)