कांग्रेसी गलियारों में उत्साह भर रही है ‘भारत जोड़ो यात्रा’

आज यह कॉलम लिखते समय मुझे सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण विषय राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ ही प्रतीत होती है, क्योंकि इस समय यह पंजाब से गुज़र रही है। इसके संबंध में लिखते समय राहुल गांधी की शख्सियत के कई पक्षों तथा उनकी अब तक की कारगुज़ारी को देखते हुए शायर अनीस मुइन का एक शे’अर याद आया :
ज़रा सी उम्र अदावत की लम्बी ़फहरिस्तें,
अजीब कज़र् विरासत में मेरे नाम हुआ।
यह ठीक है कि राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी बुरी तरह नीचे की ओर गिरी है। परन्तु यह भी ठीक है कि राहुल गांधी ने इस पूरे घटनाक्रम से काफी कुछ सीखा भी है। उन्होंने गिरफ्तारी, पूछताछ या जेल का डर छोड़ कर अपना अंदाज़ एवं अपने तेवर भी बदले हैं। नि:सन्देह भाजपा की राजनीति ने भारतीय राजनीति का गणित ही बदल कर रख दिया है। आम तौर पर होता तो यही था कि लोकतंत्र में अल्पसंख्यक बहुसंख्यकों की ताकत से डरते थे तथा राजनीतिज्ञ उनके इस डर के कारण उन्हें बचाने का विश्वास देकर उन्हें एक वोट बैंक में तबदील कर लेते थे। कांग्रेस भी कई दशकों यह सब कुछ करती रही थी। परन्तु भाजपा ने यह खेल ही बदल दी तथा बहुसंख्यकों को अल्पसंख्यकों से डरा कर बहुसंख्यकों को ही वोट बैंक में तबदील कर दिया। हम समझते हैं कि पहले कांग्रेस की राजनीति भी साम्प्रदायिकता की राजनीति थी तथा अब भाजपा की राजनीति भी साम्प्रदायिकता की ही है। परन्तु भाजपा की राजनीति देश के लिए अधिक ़खतरनाक है क्योंकि बहुसंख्यक जब अल्पसंख्यों को ऩफरत तथा डर की नज़र से देखने लगे तो अल्पसंख्यकों में बेगाऩगी का अहसास पैदा होता है जो देश के भविष्य तथा एकता के लिए अधिक ़खतरनाक होता है।
़खैर राहुल गांधी ने इस स्थिति को समझा है तथा इसके उपचार हेतु महात्मा गांधी के पद-चिन्हों पर चलने का प्रयास भी शुरू किया है। जो स्वागतयोग्य तो हैं, परन्तु राहुल गांधी अपने दम पर बने नेता नहीं हैं। उन्हें जो कुछ भी मिला है, विरासत में ही मिला है। वह विरासत भी अच्छे-बुरे का मिश्रण ही है। उनके पूर्वजों के लम्बे समय के शासन में जो नीतियां अपनाई गईं, वे भारत को विकास के उस मुकाम तक नहीं ले जा सकीं, जहां हमारे बाद आज़ाद हुए या अन्य वैश्विक युद्ध में बर्बाद हुए देश अच्छे नेतृत्व के कारण पहुंच गए हैं। आज यदि देश को कार्पोरेट घराने बुरी तरह जकड़ रहे हैं और राहुल गांधी कह रहे हैं कि देश की राजनीति में चुनाव कार्पोरेट घराने ही कर रहे हैं तो वह यह भी तो देखें कि इसकी शुरुआत कांग्रेस के शासन में तथा कांग्रेस की नीतियों के कारण ही हुई थी। परन्तु ़खैर, कुछ भी हो, इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि राहुल गांधी की यह यात्रा कांग्रेसी गलियारों में एक नया उत्साह पैदा कर रही है। जिसका परिणाम आगामी समय में ज़रूर समक्ष आएगा।
पंजाब, ‘भारत जोड़ो यात्रा’ एवं राहुल
इसमें कोई सन्देह नहीं है कि जब 1984 का श्री दरबार साहिब का घटनाक्रम तथा बाद में उसके रोष स्वरूप प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या तथा उसके साथ ही दिल्ली तथा देश के अन्य शहरों में सिख कत्लेआम हुआ तो उस समय राहुल गांधी मात्र 14 वर्ष का बच्चा ही था। इसलिए इस पूरे घटनाक्रम में उसका कोई दोष मानना ठीक नहीं, फिर यदि सिख इतिहास की ओर दृष्टिपात करें तो पिता या दादी के काम की सज़ा बेटे को देने की कोई परम्परा भी नहीं रही। हालांकि राहुल गांधी ने चाहे अपनी यात्रा के दौरान रास्ते में पड़ते धार्मिक स्थानों पर माथा भी टेका तथा पूजा भी की, परन्तु जिस तरह वह यात्रा में अलग रूप में तथा घोषित कार्यक्रम को एक तरफ रख कर श्री दरबार साहिब में नतमस्तक हुए, वह सिखों के लिए एक विशेष सम्मान दिखाने का ही प्रयास है। वैसे भी इससे पहले ऐसी दो उदाहरणें ही दिखाई देती हैं कि जब 1997 में इंग्लैंड की महारानी एलिज़ाबेथ-2 श्री दरबार साहिब में आई थीं तो वह सुरक्षा चेतावनियों को दर-किनार करके श्री दरबार साहिब पहुंची थीं तथा दूसरी घटना फरवरी 2018 में कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के श्री दरबार साहिब आने की है। 
वैसे राहुल गांधी इससे पहले भी कई बार श्री दरबार साहिब अमृतसर नतमस्तक हुए हैं। परन्तु हम समझते हैं कि जब राहुल गांधी अपनी विरासत के सिर पर इतने बड़े स्थान पर हैं तो इसी विरासत में उनके पूर्वजों पर लगे द़ाग धोने की नैतिक ज़िम्मेदारी भी उनकी ही बनती है। नि:सन्देह उनका इस तरह बार-बार श्री दरबार साहिब आना एवं नतमस्तक होना स्वयं में माफी मांग लेने से कम नहीं। परन्तु कुछ चीज़ें यदि पर्दे के समक्ष हों तो उनके अर्थ विशाल हो जाते हैं। यदि राहुल गांधी अपने पूर्वजों पर लगते आरोपों हेतु प्रत्यक्ष शब्दों में माफी मांग लें तो इससे उनकी छवि में भी सुधार होगा तथा यह सिखों के एक भाग के मनों में कांग्रेस संबंधी उत्पन्न हुई घृणा की भावना को भी खत्म करेगी। इस माफी से पंजाब की राजनीतिक स्थिति में बड़ा गुणात्मक बदलाव भी देखने को मिलेगा, क्योंकि इस समय तो स्वयं को पंथक पार्टियां कहलाने वाली एक दूसरे की विरोधी सभी पार्टियां ही भाजपा के साथ समझौता करने हेतु प्रयास ही नहीं कर रहीं, अपितु किसी सीमा तक उसके दबाव में भी दिखाई देती हैं, क्योंकि 1984 के बाद की घटनाओं के कारण उनके लिए कांग्रेस अछूत है। 
हालांकि प्रधानमंत्री होते हुए डा. मनमोहन सिंह इसके लिए संसद में माफी मांग चुके हैं, परन्तु यदि राहुल गांधी अपने परिवार की ओर से माफी मांग लेते हैं तो यह स्थिति पूरी तरह बदल सकती है। इस तरह उत्पन्न होने वाली नई स्थिति पंथक पार्टियों का जोड़-तोड़ करने की ताकतें तो बढ़ाएंगी ही परन्तु यह कांग्रेस को खत्म करने में लगी भाजपा के लिए भी एक बड़ा झटका साबित हो सकती है। फिर सिख संगठन भाजपा तथा कांग्रेस को समानता के तराज़ू में रख कर तोल सकेंगी तथा कौम एवं पंजाब के हितों को मनवाने के लिए उनके पास किसी भी पार्टी के साथ समझौता करने की समर्था होगी। हम समझते हैं कि इसका प्रभाव सिर्फ पंजाब पर ही नहीं, अपितु पूरे देश की राजनीति पर भी पड़ेगा। जैसे कभी आपात्काल के विरुद्ध पंजाब तथा अकालियों के विरोध का प्रभाव देश भर में देखने को मिला था। यहां यह भी वर्णनीय है कि किसान आन्दोलन चाहे बाद में अपनी सार्थकता खो बैठा है परन्तु एक बार तो पंजाब में उठा यह विरोध देश भर में प्रभावशाली हुआ दिखाई देता ही था। 
हऱफ-ए-मुआफी से बड़ी कोई सज़ा भी तो नहीं।
हऱफ-ए-मुआफी से बड़ी कोई दानाई भी नहीं। 
(लाल फिरोज़पुरी)
प्रमुख बुद्धिजीवियों से मुलाकात
हालांकि राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के बाहरी प्रभावों की चर्चा तो मीडिया में काफी है और इससे कांग्रेसी गलियारों में उत्साह भी बहुत बढ़ा है परन्तु पंजाब में कल राहुल गांधी की सिख बुद्धिजीवियों, विद्वानों, कृषि विशेषज्ञों, पूर्व सैन्य अधिकारियों तथा कानूनदानों के समूहों से चार अलग-अलग बैठकें होनी थीं परन्तु बाद में मिले सुरक्षा निर्देशों के दृष्टिगत सिर्फ एक संयुक्त बैठक की गई। इसे प्रमुख व सूझवान माने जाते कांग्रेसी नेता जयराम रमेश ने चलाया था। इसमें पंजाब तथा देश के मामलों के संबंध में बड़ा गम्भीर विचार-विमर्श हुआ, जिसका प्रभाव आने वाले दिनों में स्पष्ट रूप में देखने को मिलेगा। इस बैठक में उठे प्रश्नों पर कांग्रेस के दृष्टिकोण तथा उसकी रणनीति के विवरण बारे फिर कभी लिखेंगे। हालांकि ये विवरण सिर्फ महत्वपूर्ण ही नहीं बल्कि काफी दिलचस्प भी हैं परन्तु यह उल्लेखनीय अवश्य है कि इस बैठक में शामिल होने वाले सिख बुद्धिजीवियों के नाम पढ़ कर पाठकों को इस बैठक के महत्व का एहसास ज़रूर होगा। हम फिलहाल सभी नाम तो देने में समर्थ नहीं, परन्तु राहुल की बैठक में शामिल होने वाले सिख बुद्धिजीवियों में गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी के पूर्व उपकुलपति एस.पी. सिंह, एस.एस. जौहल, प्रिथीपाल सिंह कपूर, प्रो. बलकार सिंह, रकबजीत सिंह गिल तथा प्रो. रविन्द्र सिंह संधू आदि भी शामिल थे।
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