देश में रोज़गार के अवसर पैदा कर रोका जाए प्रतिभा-पलायन 

विगत दो दशकों में प्रतिभा पलायन भारत के लिए एक बड़ी चुनौती बन कर उभरा है। शिक्षा के क्षेत्र में बड़े शिक्षा संस्थानों में भारी-भरकम खर्च के बाद शिक्षित युवक विदेशों में अपनी सेवाएं प्रदान करने को सदैव तत्पर रहते हैं। इसका बड़ा कारण विदेशी मुद्रा की कमाई और विदेशी चकाचौंध के तरफ  आकर्षण होना है। इससे भारत के आर्थिक तंत्र पर बड़ा बोझ प्रत्यारोपित होता है। इतना खर्च करके पढ़ाई करने के बाद भारतीय युवा मस्तिष्क अपने देश के विकास में योगदान न दें तो देश के लिए विडम्बना की भांति है। भारत के इतिहास पर नजर डालें तो नालंदा, तक्षशिला, शांति निकेतन और पाटलिपुत्र जैसे बड़े शिक्षा के केंद्र रहे हैं। सदैव अलग-अलग देशों से छात्र शिक्षा प्राप्त करने भारत आते रहे हैं। अब ऐसा क्या हो गया है कि भारत से तकनीकी, चिकित्सकीय और संचार माध्यमों, मैनेजमेंट की पढ़ाई के लिए भारत से लगभग दो से अढ़ाई लाख छात्र विदेश में पढ़ने के लिए जाने लगे हैं। जबकि भारत सरकार का सदैव प्रयास रहा है कि विदेशी छात्र हिंदुस्तान में पढ़ाई के लिए देश में आएं और और हिंदुस्तानी डिग्री लेकर अपने देश में लौटें। इस तरह भारत सरकार देश को एक बडे शिक्षा केंद्र के रूप में स्थापित करना चाहती है और किसके लिए एक अभियान फैलोशिप कार्यक्रम चलाया गया है। इसके अलावा सरकार द्वारा एक प्रोजेक्ट डेस्टिनेशन इंडिया भी शुरू किया गया है जिसके अंतर्गत विदेशी छात्रों के प्रवेश की प्रक्रिया को अत्यंत सरल व सुगम बनाना है जिससे ज्यादा से ज्यादा छात्र भारत में पढ़ कर डिग्री हासिल कर सकें। अभी वर्तमान में भारत में आसियान देशों के छात्रों की संख्या लगभग सवा दो लाख के करीब है। मानव संसाधन विभाग इसे आगामी वर्षों में चार गुना करना चाहता है। आसियान देशों के छात्र भारत में पढ़ने से थोड़ा हिचकिचाते भी हैं, जिसके अनेक कारणों में अपराधिक गतिविधियां, प्रदूषण, गर्मी, प्रवेश की लम्बी प्रक्रिया और भारतीय डिग्री की मान्यता नहीं होना भी शामिल है। भारत में बारह से चौदह ऐसे शिक्षा संस्थान हैं, जो विश्व के 200 मान्यता प्राप्त संस्थानों में शामिल हैं। भारत में कम खर्च कर शिक्षा प्राप्त करना संभव है, पर भारत के छात्र अमरीका, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा व सिंगापुर में पढ़ना चाहते हैं, वहां पढ़ने का खर्च यहां से चार गुना है। जबकि भारत में आए छात्रों का पढ़ाई तथा खाने-पीने व रहने का खर्च लगभग एक चौथाई होता है। फिर भी भारत के अभिभावक अपने बच्चों को विदेश भेजने को वरीयता देते हैं।  असल चिंता की बात यह है कि विदेश में जाने वाले छात्र वहां पढ़कर वहीं अपनी नौकरी खोज कर वहां पर ही रहने लगते हैं। दूसरा यह है कि यहां के तकनीकी शीर्ष संस्थानों के मेधावी युवक विदेशों में मोटी तनख्वाह पर नौकरी देख कर विदेश चले जाते हैं, इस तरह भारत सरकार का उन पर किए जाने वाले खर्च का फायदा भारतीय संस्थानों को न होकर विदेशी संस्थाएं उठा लेती हैं। इस तरह प्रतिभा पलायन भारत के लिए और भारतीय शिक्षा पद्धति तथा भारतीय विश्वविद्यालयों के लिए नुकसानदेह भी है। भारत ने आसियान देशों के एक हज़ार छात्रों के लिए फैलोशिप कि 2018 में योजना बनाकर राशि आवंटित की थी।
 हर साल 200 से 300 छात्रों को बड़े तकनीकी संस्थानों में डॉक्टरेट की उपाधि देने की योजना बनाई थी, पर बीते वर्ष केवल आसियान देशों के 45 छात्रों ने पंजीकरण करवाया था। इस तरह विकासशील देशों के छात्र भी भारत में पढ़ाई के लिए आकर्षित नहीं हो रहे। मानव संसाधन विभाग को उच्च शिक्षा उपयोगी और व्यवसायिक शिक्षा के रूप में दी जानी चाहिए, जिस की उपयोगिता रोज़मर्रा के कामों में हो सके और शिक्षा के माध्यम से युवकों को शत-शत रोज़गार प्राप्त हो सके। तभी प्रतिभा पलायन पर अंकुश लगेगा और हमारी शिक्षा पद्धति की उपयोगिता बढ़ेगी।
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