देश भर में मनाया जाने वाला पर्व मकर संक्रांति

 

मकर संक्रांति भारत के पवित्र पर्वों में से एक है। यह त्योहार कश्मीर से कन्याकुमारी तक पूरे देश में अलग-अलग रूपों में मनाया जाता है। कहने का मतलब है कि मकर संक्रांति का पर्व भारत में विभन्न नामों से जाना जाता है। अंग्रेज़ी महीने में हमेशा 14 जनवरी को आने वाले उल्लास और अध्यात्म के इस पर्व मकर संक्रांति का जितना संबंध धर्म और कर्मकांड से है, उतना ही गहरा संबंध विज्ञान और प्रकृति से भी है। सनातन धर्म परम्परा में सूर्य को प्रत्यक्ष देवता माना गया है। विज्ञान भी सूर्य के महत्व को मानता है। विज्ञान के मुताबिक धरती पर किसी भी चीज के अस्तित्व का कारण सूर्य की ऊर्जा ही है। सनातन धर्म में भी माना जाता है कि सूर्य की ऊर्जा से ही सभी प्राणियों में जीवतत्व है। इसलिए सभी धार्मिक परम्पराओं और ज्योतिष में सूर्य की सत्ता को सर्वोच्च माना गया है। अंग्रेज़ी माह शुरू होने के 14वें दिन मकर संक्रांति आती है। भारतीय ज्योतिष गणना में सूर्य को नवग्रहों का स्वामी माना जाता है और मान्यता है कि सूर्य अपनी नियमित गति से राशि बदलता है। इसी राशि परिवर्तन को संक्रांति कहते हैं। पूरे साल में 12 संक्रांतियां आती हैं, जिनमें मकर संक्रांति सबसे महत्वपूर्ण है। हमेशा की तरह इस साल भी मकर संक्रांति 14 जनवरी को ही मनायी जायेगी। मकर संक्रांति यूं तो पूरे देश में मनायी जाती है, लेकिन इसके साथ-साथ देश भर में कई और पर्व भी मनाये जाते हैं, जो मकर संक्रांति के ही अलग-अलग रूप हैं, जैसे पाेंगल और भोगाली बिहू। वैसे मकर संक्रांति को भी कई अलग-अलग नामों से संबोधित किया जाता है, जैसे उत्तर भारत में कहीं इसे खिचड़ी कहते हैं तो कहीं उत्तरायणी भी कहा जाता है, क्योंकि मकर संक्रांति से सूर्य उत्तरायण हो जाता है।
इन सभी पर्वों के नाम भले अलग-अलग हो लेकिन कहीं न कहीं इन सबकी प्रकृति एक ही है। संक्रांति के दिन सबरीमाला की अनुष्ठानिक यात्रा भी शुरु होती है और इसी समय देश के कोने-कोने से लाखों लोग स्नान के लिए प्रयागराज व गंगासागर जाते हैं। लोग पवित्र नदियों में स्नान करते हैं। कहने का मतलब यह है कि भारतीय समाज में आप चाहे जिस भी धर्म या समुदाय से नाता रखते हों, संक्रांति का कोई न कोई छोर आपको आस्था और आख्यानों से जोड़ता है। इस दिन तिल का खास महत्व होता है। तिल के लड्डू बनाए जाते हैं, तिल का दान किया जाता है। व्यंजनों में खास तौर पर तिल के तेल का ही उपयोग करने की परम्परा है। 
दक्षिण भारत में यह पर्व यूं तो मकर संक्रांति के रूप में भी जाना जाता है, लेकिन इस दिन यहां व्यापक स्तर पर लोकप्रिय पर्व पोंगल मनाया जाता है। पाेंगल भी मकर संक्रांति का ही एक रूप है लेकिन यह चार दिन तक मनाया जाता है। इसका संबंध फसल तैयार होने से है। असम और उत्तर पूर्व के कई इलाकों में इस दिन भोगाली बिहू पर्व मनाया जाता है, जो बिहू कुल का पूरे साल में आने वाला पहला पर्व है और साल में अलग-अलग समय पर तीन बार बिहू पर्व आता है। पाेंगल वैसे तो चार दिनों तक मनाया जाने वाला पर्व है, लेकिन इसमें भी पहले दिन 14 जनवरी यानी मकर संक्रांति का ही सबसे ज्यादा महत्व होता है। पाेंगल में लोग अपने परिजनों को दावत देते हैं, उपहार देते हैं, एक दूसरे से मिलते हैं तथा खुशियां साझा करते हैं। अगर भोगाली बिहू की बात करें तो यह पहला बिहू पर्व है। इसके बाद आमतौर पर अप्रैल माह में बोहाग बिहू या रोंगाली बिहू तथा अक्तूबर माह में कार्ति बिहू पर्व मनाया जाता है। यह असम सहित उत्तर पूर्व की सभी जनजातियों द्वारा मनाया जाने वाला मस्ती और उल्लास का पर्व है। बिहू पर्व का धर्म से नहीं बल्कि क्षेत्रीय संस्कृति से रिश्ता है, इसलिए असम और उत्तर पूर्व के कई क्षेत्रों में यह पर्व बिना किसी भेदभाव किये यहां के सभी लोगों द्वारा मनाया जाता है, लेकिन इसका संबंध भी पोंगल की तरह कृषि से ही है।  गंगा, यमुना आदि पवित्र नदियों में इस दिन स्नान किया जाता है और उगते सूर्य की पूजा की जाती है। उत्तर भारत में विशेषकर पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में मकर संक्रांति या खिचड़ी पर्व के एक दिन पहले लोहड़ी मनायी जाती है। उत्तर व पश्चिम भारत में खिचड़ी या मकर संक्रांति पर रंगबिरंगी पतंगें भी उड़ायी जाती हैं।
लोहड़ी पर लोग शाम के समय घर के बाहर या किसी खुले स्थान पर परिवार या आस-पड़ोस के लोग आग के चारों ओर घेरा बनाकर मूंगफली, रेवड़ियां, तिल आदि खाते हैं और नाचते गाते हैं। देश में कई क्षेत्रों में मकर संक्रांति से नया साल शुरू होता है।  इस दिन लोग सामूहिक रूप से एकत्र होकर खुशियां मनाते हैं। मकर संक्रांति या उत्तरायणी से मौसम में एक खास किस्म परिवर्तन आता है। रातें छोटी होना शुरू हो जाती हैं और शीत ऋतु का प्रभाव क्षीण होने लगता है। चूंकि मकर संक्रांति से सूर्य उत्तरायण हो जाता है, इसलिए इसे देवताओं का दिन भी कहा जाता है। इस दिन लोग देवताओं से आशीर्वाद और नयी ऊर्जा प्राप्त करते हैं। 
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर