विद्युत वाहनों की क्रांति के लिए प्रस्थान बिंदू होगा 2023

 

शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य की ओर अग्रसर दुनिया भर के देश ईवी30/30 अभियान पर ज़ोर दे रहे हैं, जिसका मतलब है कि 2030 तक देश में चलने वाले कम से कम 30 प्रतिशत वाहन विद्युत हों। भारत सरकार का इरादा भी यही है कि वह यह सुनिश्चित करे कि 2030 तक देश की सड़कों पर 80 फीसदी दुपहिया, तिपहिया और 70 प्रतिशत सार्वजनिक और भारी वाहन बिजली से चलें। फिलहाल देश में बिजली से चलने वाले वाहनों की हिस्सेदारी एक प्रतिशत से भी कम है। ऐसे में यह लक्ष्य आकाश कुसुम लगता है, लेकिन पिछले पांच वर्षों में विद्युत वाहनों (ईवी) की बिक्री सात गुना बढ़ी है। सरकारी प्रयासों और जन जागरूकता तथा अन्य कारणों से विद्युत वाहनों की बिक्री में जबरदस्त बढ़ोत्तरी हुई और बाज़ार विश्लेषकों के अनुसार 2027 तक इसके 70 प्रतिशत से अधिक बने रहने तथा तब तक एक करोड़ से ज्यादा विद्युत वाहन भारत की सड़कों पर आने की बात से उम्मीद जगती है कि देर सवेर यह लक्ष्य हासिल किया जा सकता है। 
साल 2025 तक भारत में इस्तेमाल होने वाले 70 फीसदी विद्युत वाहनों के स्वदेशी होने और केंद्र तथा राज्य सरकारें मुफ्त रजिस्ट्रेशन, भारी सब्सिडी समेत अनेक सुविधाओं के साथ-साथ आक्रामक अभियान चलाएं, कम्पनियां वाहनों के दाम कुछ कम करें तो संभव है, इसमें और तेज़ी आएगी। देश में चलने वाले करीब 32 करोड़ वाहनों में से जो 19 लाख विद्युत वाहन हैं, उनमें से तकरीबन 15 लाख दुपहिया और तिपहिया हैं। इस तरह की कारों की संख्या अभी सिर्फ  54 हज़ार के लगभग हैं। इसी साल के मध्य तक देश के थ्री व्हीलर निर्माता केवल इलेक्ट्रिक मॉडल ही बनाने लगेंगे और 150 सीसी क्षमता वाली ई-बाइक के आने की संभावना है। ऐसे में छोटे वाहनों के 80 फीसदी का लक्ष्य असंभव नहीं लेकिन बड़े और सार्वजनिक तथा लम्बी दूरी तय करने वाले निजी वाहनों की संख्या तभी तेजी से बढ़ेगी जब इसके चार्जिंग स्टेशनों की संख्या और व्यापकता शहरों से लेकर सुदूर गांवों तक होगी।
वाहनों के ईंधन के लिए देश में कच्चे तेल का आयात जिस तरह बढ़ रहा है, उस दर से 2030 तक यह दोगुना से अधिक 90 बिलियन डॉलर हो जाएगा जबकि बैटरी की लागत पिछले दस सालों में 800 डॉलर प्रति किलोवाट घंटे से घटकर 135 डॉलर प्रति किलोवाट घंटे हो गई है। तो न सिर्फ  पर्यावरण और प्रकृति के लिये बल्कि चार्जिंग स्टेशनों की बढ़ोतरी आर्थिक मजबूरी भी है। एक रिपोर्ट के अनुसार 2026 तक सड़कों पर आने वाले 2 मिलियन विद्युत वाहनों की चार्जिंग के लिए भारत को लगभग चार लाख चार्जिंग स्टेशनों की आवश्यकता है। देश में फिलवक्त 1742 चार्जिंग स्टेशन हैं, उम्मीद है कि 2027 तक यह संख्या एक लाख और बढ़ जाएगी पर 2027 तक अगर 1 करोड़ विद्युत वाहन देश की सड़कों पर होंगे, तब यह संख्या अपर्याप्त होगी। अगले पांच सालों के भीतर लगभग 20 लाख चार्जिंग स्टेशन चाहिए। सरकार चार्जिंग सक्षम हाईवे बनाने पर ज़ोर दे रही है। इसके तहत प्रमुख राजमार्गों, मुख्य सम्पर्क मार्गों पर प्रत्येक 25 किमी और शहरी क्षेत्र में हर 3 किमी के दायरे में एक चार्जिंग स्टेशन के मानक के आधार कर काम किए जाने की बात तो की जा रही है, परन्तु ज़मीन पर ऐसा दिख नहीं रहा। 
फेम इंडिया स्कीम जो इलेक्ट्रिक मोबिलिटी पर एक राष्ट्रीय मिशन है, जिसमें चार क्षेत्रों प्रौद्योगिकी विकास, पायलट प्रोजेक्ट, चार्जिंग स्टेशन और इलेक्ट्रिक वाहनों की मांग पर सबसे अधिक ध्यान दिया जा रहा है और बेशक इलेक्ट्रिक वाहनों की मांग में वृद्धि के लिए विभिन्न राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों में यह बेहतर काम भी कर रहा है, ने अपने दूसरे फेज में इसने महाराष्ट्र, गोवा, गुजरात, चण्डीगढ़  तथा कई केंद्र शासित राज्यों को बिजली चालित बसें दी हैं, परन्तु जब बात चार्जिंग स्टेशनों के निर्माण की आती है, वहां इसका प्रदर्शन कुछ उल्लेखनीय नहीं है। ऐसे में ईवी चार्जिंग स्टेशनों के लक्ष्य का क्या होगा? देश के 65,000 पेट्रोल पम्पों और 1640 ईवी चार्जिंग स्टेशनों के बीच का अंतर बहुत अधिक है। शहरों में चार्जिंग स्टेशन लग भी जाएं तो गांवों का क्या होगा? ग्रामीण क्षेत्रों में भारवाहक वाहनों, ट्रैक्टर वगैरह के लिये ईवी चार्जिंग स्टेशनों के विकास और रख-रखाव की लागत शहरी क्षेत्रों की तुलना में अधिक महंगी हो सकती है। 
मगर देश में अगले पांच सालों के दौरान ईवी चार्जिंग स्टेशनों की संख्या का जो लक्ष्य है, उसकी पूर्ति या उसके नजदीक पहुंचने की संभावना निजी कम्पनियों के ही बूते दिखती है। कई निजी कम्पनियां और स्टार्टअप अब इस कारोबार में कूद पड़े हैं, जो सरकार का बोझ हल्का कर सकते हैं। कई निजी कम्पनियां भी भारत में ईवी चार्जिंग प्वाइंट स्थापित करने की योजना बना चुकी हैं। उधर एक चार्जर स्टार्टअप अगले दो साल में 1500 अपार्टमेंट और कॉम्पलेक्स में चार्जिंग स्टेशन बनाएगा। 
इस मामले में तेल विपणन कम्पनियों का दावा है कि वे देश के प्रमुख शहरों और राष्ट्रीय राजमार्गों पर 22,000 ईवी चार्जिंग स्टेशन स्थापित करेंगी। इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड 10,000 तो भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड 7,000 और 5,000 चार्जिंग स्टेशनों की स्थापना एचपीसीएल के हिस्से है। दावा तो यहां तक है कि विभिन्न चार्ज पॉइंट ऑपरेटरों के साथ-साथ तेल विपणन कम्पनियों राज्यों के साथ मिलकर देशभर में 5 लाख चार्जिंग स्टेशनों को बनाने की योजना बना चुकी हैं। सौर उत्पाद बनाने वाली सर्वोटेक पावर सिस्टम सौर ऊर्जा से चलने वाला ईवी चार्जिंग स्टेशन स्थापित करेगी। इसके लिए उसने ऊर्जा मंत्रालय तथा नेशनल सोलर एनर्जी फैडरेशन ऑफ  इंडिया के साथ समझौता किया है। देश में अगले तीन-चार सालों में लगभग 140 बिलियन रुपये के निवेश से लगभग 50 हजार से ज्यादा नए चार्जिंग स्टेशन स्थापित हो कर काम करने लगेंगे। सार्वजनिक और निजी खिलाड़ियों द्वारा की गई पहल से इस गति को देखते हुए ऐसा लगता है कि सब कुछ सही रास्ते पर है और वर्ष 2023 भारत में ईवी क्रांति के लिए प्रस्थान बिंदु होगा। 
यह सब अभी आंकड़े और संभावनाएं हैं। ज़मीनी हकीकत क्या होगी, यह कुछ समय बीतने पर ही पता चलेगा। ईवी को चार्ज करने के कई तरीके हैं—निजी, सार्वजनिक, कैप्टिव और बैटरी स्वैपिंग। भारत के लिए बैटरी स्वैपिंग या बैटरी लीजिंग की पॉलिसी बेहद कारगर हो सकती है। इसमें ईवी उपभोक्ता चार्जिंग स्टेशन पर जाकर डिस्चार्ज बैटरी के बदले चार्ज्ड बैटरी ले सकता है। ऐसा कई देशों में चल रहा है। सरकार इस पर ध्यान केंद्रित करे तो न सिर्फ  विद्युत वाहनों की बिक्री कई गुना बढ़ेगी बल्कि चार्जिंग स्टेशन भी बढ़ेंगे।  
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर