केन्द्र की नमोशी


केन्द्र में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार वर्ष 2014 से शासन चला रही है। वर्ष 2024 में इसकी दूसरी पारी समाप्त होने वाली है तथा इसके द्वारा बार-बार यह दावा भी किया जा रहा है कि आगामी लोकसभा चुनाव भी भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन द्वारा ही जीते जाएंगे। पिछली अवधि में केन्द्र सरकार ने समय-समय पर अपनी बड़ी उपलब्धियां गिनाईं हैं। देश के विकास में डाले जा रहे अपने योगदान का अक्सर ज़िक्र भी किया है। यहां तक कि कोविड जैसी विश्व-व्यापी महामारी के दौरान भी इसका पूरी सतर्कता के साथ मुकाबला किया गया। देश की 130 करोड़ के लगभग जनसंख्या को सरकारी स्तर पर बड़ी संख्या में दो-दो बार टीके लगाने के बाद तीसरी बार ‘बूस्टर’ टीका भी लगाया गया। जहां ये ज्यादातर टीके सरकारी स्तर पर मुफ्त लगाए गए, वहीं यह भी दावा किया गया कि अन्य कई विकसित देशों के मुकाबले में भारत ने अपने टीके इजाद करके उसमें सफलता हासिल की है। भारतीय वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष में भी बड़ी उपलब्धियां प्राप्त की हैं, जिससे देश का मानचित्र बदल गया प्रतीत होता है, परन्तु इसके साथ-साथ इसे पड़ोसी देशों पाकिस्तान तथा चीन द्वारा भी बड़ी चुनौतियां मिलती रही हैं। 
कुछ युद्ध हारने के बाद पाकिस्तान ने आतंकवादी संगठनों के कंधों पर अपनी बंदूकें भारत की ओर केन्द्रित की रखी हैं। यह हिंसक तथा खूनी कृत्य अब भी जारी है। दूसरी तरफ विश्व की एक बड़ी शक्ति बन चुका चीन भी विवादों को लेकर लगातार भारत के साथ दुश्मनी करता रहा है। भारत की अधिकतर आर्थिक, सैनिक शक्ति तथा अन्य स्रोत चीन से मुकाबले में ही खर्च हो रहे हैं। मई, 2020 में गलवान घाटी में जिस तरह की खूनी झड़पें हुईं, उन्होंने भारत के पहले मिले ज़ख्मों को और भी कुरेद दिया है। यहीं पर बस नहीं, चीन पाकिस्तान को लगातार भारत के विरुद्ध संरक्षण देता रहा तथा अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर अक्सर भारत के विरोध में भी खड़ा होता रहा है। पिछले समय में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एक बड़ी अन्तर्राष्ट्रीय शख्सियत के रूप में उभरे हैं। अन्य बातों के साथ-साथ उन्होंने लगातार देश को आत्म-निर्भर बनाने की बातें की हैं और बार-बार इस बात पर भी ज़ोर दिया है कि विश्व भर में ‘मेक इन इंडिया’ की वस्तुओं की बिक्री होनी चाहिए। भारत जैसे बड़ी जनसंख्या वाले देश को अपने देश में हर तरह के अधिक से अधिक उत्पादन को उत्साहित करके रोज़गार के बड़े साधन पैदा करने चाहिएं क्योंकि जनसंख्या को अनुशासन में रखने के लिए यह पूरी तरह पिछड़ गया है। लगातार बढ़ती जनसंख्या इसका दुखांत भी बन रही है क्योंकि करोड़ों लोग आज बेहद बेचारगी वाला जीवन व्यतीत कर रहे हैं। परन्तु इसके साथ ही आज देश पड़ोसी देश चीन के मुकाबले बहुत पीछे रह गया प्रतीत होता है। इसलिए चीन अक्सर अपने छोटे पड़ोसी देशों के साथ-साथ भारत जैसे बड़े देश को भी आंखें दिखा रहा है।  हमें आश्चर्य इस बात का है कि 1962 के युद्ध में नमोशीजनक हार के बाद भी भारत उसके सामने अब तक लगातार घुटने टेकता आया है। कम से कम कुछ क्षेत्र इतने ज़रूर होने चाहिए थे, जिनमें यह चीन का डट कर मुकाबला कर सके। इनमें उत्पादन तथा व्यापार के अहम क्षेत्र थे। ताज़ा आंकड़ों के अनुसार यह इन क्षेत्रों में भी चीन से शिकस्त खा गया है।
 मिले आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2022 में दोनों देशों का व्यापार पिछले पूरे समय से अधिक बड़ा भाव 11110 अरब रुपये रहा तथा इस व्यापार में भारत का घाटा 8170 अरब रुपये तक पहुंच गया। वर्ष 2021 में दोनों देशों में 10208 अरब रुपये का व्यापार हुआ था। वर्ष 2022 में इसमें 8.4 प्रतिशत वृद्धि हुई है। यह बात हमारी समझ से बाहर है कि एक तरफ दोनों देश आपसी दुश्मनी पाल रहे हैं तथा दूसरी तरफ उनका आपसी व्यापार लगातार बढ़ता जा रहा हो तथा इससे ऊपर यह भारत के लिए खरबों रुपये घाटे वाला सौदा होगा। क्या हम पिछले 8 वर्षों से प्रधानमंत्री नरेन्द्र के ब्यानों को इस पृष्ठभूमि में सिर्फ जुमलेबाज़ी ही समझेें कि इतने समय में भारत द्वारा सुनियोजित योजना के अधीन दोनों देशों के आपसी व्यापार के अंतर को कम नहीं किया जा सका। हम इस दिशा में तथा इस समय में भारत सरकार को हुई बड़ी नमोशी भी समझते हैं तथा यह भी कि हमारी सरकार में दुश्मन के समक्ष डट कर खड़े होने के साथ-साथ कोई और मोड़ काटने की ज़रूरत नहीं है। नि:सन्देह बातें एवं क्रियान्वयन के मामले में इस पक्ष से मोदी सरकार बुरी तरह शिकस्त खा गई है।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द