चिंताजनक है स्कूली बच्चें को कड़ा शारीरिक दंड 

 

अच्छे अध्यापकों को उसके विद्यार्थी हमेशा याद रखते हैं, क्योंकि अध्यापक ही बच्चों को जीवन के हर मोड़ पर आगे बढ़ते रहने का हुनर सिखाते हैं। लेकिन, दुख की बात है कि पिछले कुछ सालों में स्कूलों में बच्चों को मारने-पीटने की घटनाएं काफी बढ़ी हैं। इससे शिक्षकों की छवि को भी नुकसान पहुंचता है। इसे विडम्बना ही कहिए कि कुछ शिक्षक इसके बावजूद समझ नहीं पा रहे। सख्त कानून बन जाने के बाद भी देश के किसी न किसी हिस्से में हर दिन ऐसी घटनाओं का घटित होना चिंता की बात है।
कुछ समह पहले दिल्ली के एक स्कूल में एक अध्यापिका ने गुस्से में आकर एक छात्रा को कैंची से घायल करके पहली मंज़िल से नीचे गिरा दिया था। छात्रा को अस्पताल में भर्ती किया गया था। देश में कुछ ही दिनों में ऐसे कई मामले सामने आए जिनमें बच्चों की निर्मम पिटाई की गई। इनमें राजस्थान के टोंक जिले में बच्चा लंच टाइम में बात कर रहा था। नाराज़ होकर अध्यपक ने बच्चे की निर्ममता से पिटाई की जिस कारण उसकी रीढ़ की हड्डी में फ्रेक्चर हो गया। हिमाचल प्रदेश के एक सरकारी स्कूल में बाथरूम के नल टूटने पर सिर्फ  शक के आधार पर दो छात्रों की निर्ममता से पिटाई की गई। नौबत यहां तक आ गई थी कि उन्हे अस्पताल में भर्ती करना पड़ा। तेलंगाना में एक छात्रा ने कक्षा को बोरिंग रूम कह दिया। टीचर ने पूरी क्लास के सामने लड़की को डंडे से पीटा। इसी तरह कहीं ड्रेस न पहनने पर पिटाई की गई। चेन्नई के एक स्कूल में तो एक बच्चे ने जान ही दे दी, क्योंकि एक दिन पहले ही फिज़िकल एजुकेशन के टीचर ने उसे स्कूल में सबके सामने पीटा था।
गौरतलब है कि विद्यालयों में बच्चों को दंडित करने के लिए कई प्रकार के तरीके अपनाए जाते हैं जिनमें होमवर्क न करने पर सज़ा देना, स्केल से पीटना, छात्रा की चोटी या बाल खींचकर मारना, स्कूल में सफाई न करने पर मारना, पढ़ाई के दौरान वाशरूम जाने के लिए छुट्टी मांगने पर दो अंगुली के बीच पैंसिल फंसाकर दबाना, मॉनीटर की शिकायत पर पीटना आदि। एक सर्वेक्षण में यह बात सामने आई कि तकरीबन 76 फीसदी अभिभावक अपने बच्चों को अनुशासन का पाठ पढ़ाने के लिए शारीरिक रूप से दंडित करते हैं। इसी तरह कई अभिभावक अपनी बात मनवाने के लिए बच्चों को घूस के रूप में उपहार देते हैं, ताकि बच्चे उनके मन मुताबिक चलें। कई अभिभावकों ने माना कि वे बच्चों को अपने वश में करने के लिए उन्हें भावनात्मक रूप से धमकाते हैं। कभी दोस्त के सामने अनादर करना तो कभी बोर्डिंग में डालने की धमकी देते हैं।
बच्चों को अनुशासन में रखने के लिए अपनाए जाने वाले इन तरीकों का बच्चों की मनोदशा पर क्या असर पड़ता है यह बात जानना बहुत ज़रूरी है। शोधकर्ताओं के मुताबिक जो बच्चे स्कूलों में पिटाई के शिकार होते हैं, उसका दीर्घकालिक प्रभाव होता है। पिटाई के कारण बच्चे बड़े होने पर शारीरिक तथा मानसिक बीमारी के शिकार हो जाते हैं। भय के मारे बच्चे अपनी बात साझा करने से घबराने लगते हैं। इस वजह से ऐसे बच्चों के स्वभाव के विद्रोही होने की पूरी गुंजाइश रहती है। कुछ बच्चे इतने आहत हो जाते हैं कि वे बोलना भी बंद कर देते हैं। इसके विपरीत कुछ बच्चे यह भी सीख जाते हैं कि हिंसा किसी भी गलती की एक स्वीकार्य प्रतिक्रिया है और वे खुद भी इस बात पर अमल करना शुरू कर देते हैं। वे स्कूल में इसे आज़माते हैं। वे दूसरे बच्चों को परेशान करते हैं। कहीं न कहीं ऐसे बच्चे शक्तिशाली दिखना चाहते हैं या फिर वे डरे-सहमे दब्बू बन जाते हैं। वे सिर्फ  इतना ही काम करते हैं जिससे कि नाकामी से बचे रहें। ऐसे बच्चे आत्म-प्रेरणा से वंचित हो जाते हैं। वे अपनी वास्तविक सामर्थ्य का इस्तेमाल नहीं करते। नतीजतन ऐसे बच्चे अपने साथियों को अधिक अहमियत देने लगते हैं । 
इस बारे में हुए एक सर्वे में शिक्षकों की राय जानी गई तो कई शिक्षकों ने पिटाई एवं सज़ा देने को ज़रूरी बताया। उनका तर्क था कि वे बच्चों के दुश्मन नहीं हैं। उनका भविष्य बनेगा तो लाभ बच्चों को और उनके परिजनों को ही होगा। जबकि मनोवैज्ञानिकों तथा काउंसलरों का कहना है कि बच्चों के होमवर्क न करने पर उनकी समस्या को समझना चाहिए। यदि बच्चे का झूठ पकड़ाना है तो सही स्थिति की जानकारी लेनी चाहिए। उसके माता-पिता तथा घर की परिस्थितियों को समझना तथा उसे मानसिक सहयोग प्रदान करने से स्थिति काफी हद तक ठीक हो सकती है। सज़ा की बजाय काउंसलिंग करना ही बेहतर तरीका होता है। समस्याग्रस्त बच्चे के विषय में अभिभावकों को प्रिंसीपल तथा उसके अध्यापकों से बातचीत करके ही निर्णय लेना उचित रहता है।
अमरीकी पत्रिका ‘चाइल्ड डिवेल्पमेंट’ में प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया है कि माता-पिता बच्चों की परवरिश के दो तरीके अपनाते हैं। वे या तो बहुत उदार नज़र आते हैं या वे अपने बच्चों के साथ बहुत सख्त हो जाते हैं । वे पिटाई करने से भी नहीं हिचकिचाते, लेकिन ये दोनों तरीके सही नहीं हैं। माता-पिता को अपने बच्चों को प्रोत्साहित करने वाला माहौल देना चाहिए, जहां सही-गलत की सीमाएं तय हों मगर शारीरिक दण्ड के लिए कोई जगह न हो।
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