उपग्रह प्रक्षेपण बाज़ार में बड़ी ताकत बना भारत

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने क् फरवरी, ख्ख्फ् को सुबह - बजकर क्त्त् मिनट पर अपनी एक और कामयाबी का इतिहास तब रच दिया, जब इसके लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान (एसएसएलवी डी-ख्) ने सफलतापूर्वक तीन उपग्रहों को पृथ्वी से ब्भ् किलोमीटर दूर उसकी गोलाकार निचली कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित कर दिया। इन उपग्रहों में एक अमरीकी कपनी अंतारिस का उपग्रह जानूस-क् है, दूसरा चेन्नई के स्पेस स्टार्टअप स्पेसकिड्ज का उपग्रह आज़ादी सैट-ख् है और तीसरा खुद इसरो का अपना उपग्रह ईओएस-स्त्र शामिल है। इसरो के इस कामयाब प्रक्षेपण के साथ ही उसके लिए दुनियाभर के क् किलोग्राम से लेकर भ् किलोग्राम तक के उपग्रहों के प्रक्षेपण का एक बड़ा बाज़ार खुल गया है। नासा के एक अनुमान के मुताबिक साल ख्ख्म् तक लघु उपग्रहों का प्रक्षेपण बाजार स्त्र.ब् बिलियन डॉलर का हो जाएगा और यह क्-.ब् फीसदी की रतार से निरन्तर वृद्धि करेगा। सूचना संचार क्रांति के बाद दुनिया का हर देश इसका अधिक से अधिक फायदा उठाने के लिए अंतरिक्ष में अपना सैटेलाइट चाहता है। सभी छोटे-बड़े देश ही नहीं अब तो तमाम बहुराष्ट्रीय कंपनियां भी अंतरिक्ष में अपना निजी उपग्रह अपने कारोबारी हितों के लिए भेजना चाहती हैं। साल ख्फ् तक एक अनुमान के मुताबिक भ् से ज्यादा छोटे उपग्रहों का बाज़ार होगा। गौरतलब है कि इसरो ने एसएसएलवी डी-क् को पिछले साल स्त्र अगस्त, ख्ख्ख् को ही लांच किया था, लेकिन तब यह प्रक्षेपण असफल हो गया था। योंकि तब इसरो द्वारा लांच किये गये दोनों सैटेलाइट गलत ऑर्बिट में चले गये थे। स्त्र अगस्त, ख्ख्ख् को एसएसएलवी डी-क् सुबह - बजकर क्त्त् मिनट पर ही श्री हरिकोटा में सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से ही लांच किया गया था, जहां से एसएसएलवी डी-ख् लांच किया गया। इसरो प्रमुख एस. सोमनाथ के मुताबिक तब रॉकेट ने दोनों सैटेलाइट अंतरिक्ष में तो पहुंचा दिये थे, लेकिन उनसे डेटा मिलना बंद हो गया था। हालांकि इसरो मिशन कंट्रोल सेंटर लगातार डेटा लिंक हासिल करने की कोशिश करता रहा, लेकिन डेटा हासिल नहीं हुआ। तब जो ईओएस ज़ीरो-ख् सैटेलाइट लांच किया गया था, उसे क् महीने तक अंतरिक्ष में काम करना था, जो कि एक अर्थ ऑजर्वेशन सैटेलाइट था, लेकिन क्ब्ख् किलोग्राम के इस उपग्रह से इसरो को डेटा हासिल नहीं हुआ। जबकि इसमें मिड और लांग वेवलैंथ इंफ्रारेड कैमरा लगा था और इसका रेज्यूलोशन स्त्र मीटर था, यह निगरानी कर सकता था, लेकिन यह बेकार हो गया। तब इसरो ने एक कमेटी बनायी थी, जिसने यह जांच करनी थी कि आखिर एसएसएलवी डी-क् के साथ हुआ या? इस कमेटी ने जांच की और उस कमी का पता लगा लिया, जिसके कारण एसएसएलवी डी-क् की लांचिंग असफल हो गई थी। यही वजह थी कि इसरो अपने इस दूसरे एसएसएलवी संस्करण को लांच करते हुए अधिक से सचेत था, यही वजह है कि जब क् फरवरी को आंध्र प्रदेश में श्रीहरिकोटा रॉकेट पोर्ट के पहले लांच पैड से ठीक - बजकर क्त्त् मिनट पर एसएसएलवी डी-ख् लांच किया गया, तो कई दर्जन वरिष्ठ इसरो वैज्ञानिकों की धड़कनें तेज़ हो गई थीं। इस बार भी इसरो पहले की तरह ही आज़ादी सैट-ख् और अपने ईओएस-स्त्र अर्थ ऑजर्वेशन सैटेलाइट को लांच किया और यह लांचिंग शानदार ढंग से कामयाब रही। इसके साथ ही इसरो ने अपने एसएसएलवी प्रक्षेपण यान को भ्भ् किलोमीटर पृथ्वी की निचली कक्षा तक ले जाने की क्षमता सफलतापूर्वक विकसित कर ली है। वास्तव में इसरो की यह कामयाबी दुनियाभर के छोटे और कारोबारी उपग्रहों को पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित करने में काम आयेगी। एसएसएलवी पूरी तरह से बाज़ार के असाइनमेंट पूरे करेगा। लांच किया गया एसएसएलवी डी-ख् कुल क्स्त्रभ्.ख् किलोग्राम का था, जिसमें क्भ्म्.फ् किलोग्राम का अर्थ ऑजर्वेशन सैटेलाइट था। क्.ख् किलोग्राम का जानूस-क् सैटेलाइट था और त्त्.स्त्र किलोग्राम का आजादी सैट-ख् था। इसरो के इस लांचिंग पैड के कारोबारी नज़रिये से भरपूर सफल रहने की उमीद है, योंकि बाज़ार में इससे सस्ता सैटेलाइट व्हीकल किसी और देश के पास नहीं है। इसरो के मुताबिक एसएसएलवी रॉकेट की लागत करीब भ्म् करोड़ रुपये आयी है और यह फ्ब् मीटर लबा है। इसका कुल भार क्ख् टन है और यह करीब क्फ् से क्भ् मिनट की उड़ान में ब्भ् से भ्भ् किलोमीटर तक की ऊंचाई में सैटेलाइट स्थापित कर देगा। दूसरी बार में अपनी इस सफल लांचिंग के बाद इसरो नासा के बाद दुनिया का दूसरा सबसे ताकतवर और मजबूत अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन बनकर उभरा है। भविष्य में जिसके पास अपना बड़ा बाज़ार और कारोबार होगा। यह मिशन इसलिए खास था, योंकि इसके पहले ठीक यही मिशन असफल हो गया था जिससे यह कहा जाने लगा था कि लघु उपग्रहों को प्रक्षेपित करने में इसरो की दक्षता संदेह के घेरे में है। लेकिन दूसरी बार में ही बेदाग सफल लांचिंग के साथ ही इसरो ने साबित कर दिया है कि सस्ती लांचिंग सुविधा उपलध कराने के उद्देश्य का यह मतलब नहीं है कि इसरो की तकनीक में किसी तरह की कमी है। दरअसल अब इस बात का भी पता चल चुका है कि आखिर एसएसएलवी की पहली लांचिंग असफल यों रही थी? इसरो की जिस कमेटी ने पिछली असफल लांचिंग की जांच की है, उसके मुताबिक पिछले प्रक्षेपण में दूसरे चरण के पृथकरण के दौरान कपन के कारण लांचिंग प्रभावित हो गई थी। अब भारत के पास पोलर सैटेलाइट लांच व्हीकल यानी पीएसएलवी के साथ-साथ स्मॉल सैटेलाइट लांच व्हीकल यानी एसएसएलवी जैसे दो रॉकेट मौजूद हैं। एसएसएलवी के कारण अब पीएसएलवी का इस्तेमाल सिर्फ  बड़े मिशन के लिए होगा। जबकि क् किलोग्राम से लेकर भ् किलोग्राम तक के उपग्रहों को धरती से भ्भ् किलोमीटर दूर प्लैनर ऑर्बिट में ले जाने का काम एसएसएलवी किया करेगा। इस सफल उड़ान के साथ जो आज़ादी सैट-ख् उपग्रह छोड़ा गया है, उसे स्त्रभ् स्कूली बच्चों ने मिलकर बनाया है। इस तरह भारत ने एक बड़ी कामयाबी हासिल कर ली है। हमारा यह छोटा प्रक्षेपण यान सस्ता, कम से कम समय में तैयार हो जाने वाला और महज ब् स्टेज पर ही सैटेलाइट लांच कर देगा, जो इसरो और भारत की कामयाबी का एक बड़ा प्रतीक है। -इमेज रिलेशन सेंटर