मेरी शिक्षा का मक्का माहिलपुर 

मेरी शिक्षा का मक्का माहिलपुर है। श्री गुरु गोबिन्द सिंह खालसा कालेज माहिलपुर। गत कुछ समय से यहां प्रत्येक तरह की उथल-पुथल जारी है। किसी विध इस कालेज को चलाने वाली सिख एजूकेशन कौंसिल में दो-चार ऐसे सदस्य कर्ता-धर्ता बन बैठे हैं जो न ही माहिलपुर के निवासी हैं, न ही शैक्षिक महारथी, न ऐसे एन.आर.आई. जो माइक सहायता द्वारा अपने क्षेत्र की इस संस्था का विकास करने के इच्छिक हों। क्षेत्र के उम्मीदवारों को दृष्टिविगत करके निकटवर्ती लोगों को प्रोफैसर तथा प्रिंसीपल नियुक्त करने की बात यदि भूल भी जाएं को ही एजूकेशन कौंसिल के संवैधानिक कर नियमों को नज़रअंदाज़ जनरल कौंसिल की 25 फरवरी, 2023 की बैठक मेें मैनेजिंग बाडी ने इसके चुनाव 6 महीने पहले करवाने का स्वय:स्फूर्त फैसला लेकर इस उत्तम संस्था के शुभ चिंतकों को चिंतित कर दिया है, जबकि जनरल कौंसिल की अवधि पांच वर्ष होती है। किसी भी पंजीकृत संस्था के कार्यकाल में वृद्धि करने के किस्से तो सुनते आए हैं जो ऐसी स्थितियों में से लिए जाते हैं जो नियंत्रण से बाहर हों। कोई प्राकृतिक आपदा या महामारी आदि। परन्तु जनरल कौंसिल के चुनावों को समय से 6 महीने पहले करवाने का निर्णय संस्था के संविधान एवं नियमों को ताक पर रखने वाला है। उम्मीद है कि इस संस्था के शुभचिंतक इस फैसले को चुनौती देकर मैनेजिंग कमेटी को पटरी पर लाने का पूरा यत्न करेंगे। इस क्षेत्र के निवासी शुरू से ही अपने अधिकारों के लिए कुर्बानी देने के लिए जाने जाते हैं। प्रबंधीक ढांचे के स्वयं:स्फूर्त फैसले को स्वीकार करना अपने पूर्वजों की धारणा का निरादर करना होगा जिसके संस्थापक पिं्रसीपल हरभजन सिंह थे। याद रहे कि मैं वहां का पढ़ा हुआ हूं, जनरल कौंसिल का सदस्य नहीं। प्रबंधकीय ढांचे के ताज़ा क्रियान्वयन के पीछे कोई विनाशकारी चाल है। 
गुरशरण सिंह तथा साहित्य चिन्तन
इस माह गुरशरण सिंह नाकटकार के शुरू किये साहित्य चिन्तन ने 26 वर्ष पूरे कर लिये हैं। इसमें चिन्तन के कनवीनर सरदारा सिंह का भी योगदान है। इस बार की बैठक में गुरशरन सिंह के जीवन तथा उपलब्धियों बारे लिखी जसपाल कौर दयोल की पुस्तक की कुलदीप सिंह दीप ने संक्षिप्त एवं सार्थक चर्चा की। गुरशरण सिंह की डाक्टर बेटी ने खुशी व्यक्त की कि उसके स्वर्गीय पिता को एक साधारण एवं सदाचारी इन्सान के रूप में देखा जा रहा है। गुरशरण सिंह के निधन के 11 वर्ष बाद तक। बैठक की अध्यक्षता रघबीर सिंह सिरजना ने की। 
उत्तर-पूर्व के चुनाव परिणामों का सच्च
उत्तर-पूर्व में त्रिपुरा, नागालैंड तथा मेघालय के चुनाव परिणामों की आड़ में गोदी मीडिया यह दर्शाने के प्रयास कर रहा है कि वहां भाजपा ने बहुत बड़ी जीत प्राप्त की है। वास्तविकता तो यह है कि भाजपा को 180 सीटों में से सिर्फ 46 पर जीत प्राप्त हुई है। त्रिपुरा में विजयी सीटों की संख्या 32 है जो पिछली बार की 46 सीटों से 14 कम है। नागालैंड में भी भाजपा 12 सीटों से अधिक नहीं जीत सकी और मेघालय में भाजपा को सिर्फ 2 सीटें मिली हैं, जो चिन्ह मात्र हैं। यह बात अलग है कि केन्द्र में भाजपा सीटों की बहुसंख्या के कारण साठगांठ वाली सरकारों का अस्तित्व में आना स्वाभाविक ही है।
उत्तर-पूर्व में भाजपा की जीत राष्ट्रीय प्रसंग में कितनी सार्थक है, इसका अनुमान लोकसभा चुनावों के परिणाम से लगाया जा सकता है, जहां 6 सीटों में से कांग्रेस ने तीन सीटों पर जीत प्राप्त की है और भाजपा के खाते में सिर्फ दो सीटों ही आई हैं। गोदी मीडिया यह भी भूल जाता है कि उत्तर-पूर्व को भ्रमित करने के लिए भाजपा ने झारखंड तथा उड़ीसा की लोकप्रिय राजनीतिक नेता द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बनाने को प्राथमिकता दी थी। आज का मतदाता इतना मासूम नहीं कि भाजपा, मीडिया की बातों में आकर 2024 के चुनावों में अंधाधुंध मतदान करे। विपक्षी नेता भी एक-दूसरे का हाथ पकड़ कर आगे बढ़ रहे हैं। कल क्या होता है, समय बताएगा। 
इन पंक्तियों द्वारा सिर्फ उत्तर-पूर्व के परिणामों का सच्च सामने लाया गया है। 
अंतिका
(शब्द, स्वर व मंज़िल)
मंज़िल ‘ते जो न पहुंचे परते न जो घरां नूं
राहां ने खा लिया है उन्हां मुसाफरां नूं
-जगतार
नहीं जे अर्थ ही समझे सफे पलटन दा की फायदा
कुली वांगर किताबां रात दिन चुक्कण दा की फायदा
-हरदयाल सागर 
हबदां, सुरां की चुप्प नूं फड़ के झंजोड़ दइये
बदनीत मौसमां दी हैंकड़ नूं तोड़ दइये
-जसविंदर योद्धा
सिखर दुपहरे कल एक राही 
डिग्ग पिया अपनी छां विच्च अड़ के
-एस.एस. मीशा