सर्वोच्च न्यायालय में विपक्ष की याचिका भाजपा के खिलाफ  अभियान का सार

गैर-भाजपा दलों के नेताओं के खिलाफ  नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा केंद्रीय जांच एजेंसियों के ‘दुरुपयोग’ के मामले में हस्तक्षेप की मांग करते हुए 14 प्रमुख विपक्षी दलों द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में संयुक्त रूप से दायर की गयी याचिका का वर्तमान अशांत दौर में बड़ा राजनीतिक महत्व है। जल्दबाजी में तैयार की गयी इस याचिका के लिए तात्कालिक उकसावे का कारण कांग्रेस सांसद राहुल गांधी को सूरत की अदालत द्वारा चार साल पुराने मानहानि के मामले में दोषी ठहराना था, लेकिन यह पिछले चार वर्षों में सभी गैर-भाजपा दलों द्वारा मोदी शासन के विरूद्ध महसूस किये गये भारी असंतोष की परिणिति थी। बाद में लोकसभा सचिवालय द्वारा लोकसभा सदस्य के रूप में राहुल गांधी की अयोग्यता के बारे में घोषणा ने याचिका को एक नया आयाम दिया है।
विपक्ष की याचिका में उल्लेख किया गया है कि केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) जैसी केंद्रीय एजेंसियों ने अलग-अलग मामलों में विपक्षी नेताओं को चुना है, यहां तक कि भाजपा के दागी नेता भी छूट गए हैं। याचिका में यह भी कहा गया है कि जांच के दायरे में आये कुछ नेता एक बार भाजपा में शामिल हो गये तो उनके खिलाफ  मामलों को केंद्रीय एजेंसियों द्वारा हटा दिया गया या दबा दिया गया। वर्तमान भाजपा सरकार ने जिस तरह से केंद्रीय एजेंसियों जैसे सीबीआईए ईडी और आयकर विभाग का इस्तेमाल सत्तारूढ़ पार्टी के राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए किया है, उसने संवैधानिक मर्यादाओं के सभी मानदंडों का उल्लंघन किया है और यह उचित ही है कि अंतत: अधिकांश प्रमुख गैर-भजपा पार्टियां जल्द से जल्द हस्तक्षेप के लिए सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर करने पर सहमत हुईं। सर्वोच्च न्यायालय ने याचिका पर 5 अप्रैल को सुनवाई करने पर सहमति जतायी है।
राजनीति में, कभी-कभी, सबसे अच्छा समय सबसे बुरे समय में बदल जाता है जबकि सबसे खराब समय को सबसे अच्छे समय में बदला जा सकता है। पिछले कुछ हफ्तों से कांग्रेस और कुछ अन्य विपक्षी दलों के बीच दरार बढ़ रही है और तीन उत्तर पूर्वी राज्यों में भाजपा की आरामदायक जीत के बाद, यह भावना बढ़ रही थी कि विभाजित विपक्ष के पास 2024 में नरेन्द्र मोदी को तीसरे कार्यकाल के लिए सत्ता में आने से रोकने की बहुत कम संभावनाएं हैं। राहुल गांधी की सूरत के न्यायालय द्वारा दी गयी सजा और भाजपा सांसदों की संसद के कामकाज को पंगु बनाने के लगातार प्रयासों ने एक संयुक्त विपक्ष के पक्ष में राजनीतिक स्थिति को अचानक बदल दिया है। याचिकाकर्ता विपक्षी दलों में न केवल कांग्रेस और उसके संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) के सहयोगी शामिल हैं, बल्कि तृणमूल कांग्रेस, आप, बीआरएसए समाजवादी पार्टी और तेलुगु देशम जैसी अन्य पार्टियां भी शामिल हैं, जो काफी समय से कांग्रेस पार्टी से दूरी बनाये हुए हैं।
इस याचिका में वाईएसआर कांग्रेस की भागीदारी राजनीतिक रूप से अधिक महत्वपूर्ण है। वाईएसआर कांग्रेस 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद से हमेशा भाजपा और विशेष रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मित्रवत रही है। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी के नेतृत्व में वाईएसआर कांग्रेस के शामिल होने से विपक्षी गठबंधन को नयी गति मिली है। केवल ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के नेतृत्व वाली बीजद ही याचिका में शामिल नहीं है, लेकिन 23 मार्च को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ अपनी बातचीत में संघवाद के संरक्षण पर नवीन का जोर इस बात का पर्याप्त संकेत देता है कि आने वाले दिनों में बीजद शामिल हो सकता है। संकेत हैं कि भाजपा के खिलाफ  मोर्चा लेने के लिए क्षेत्रीय पार्टियों को राजी किया जा सकता है क्योंकि भाजपा हर क्षेत्रीय पार्टी के लिए खतरा है।
लोकसभा चुनाव अप्रैल-मई 2024 में होने हैं और इस तरह, पहले चरण के मतदान की शुरुआत के लिए 13 महीने से भी कम समय बचा है। देश 2023 के शेष महीनों में छह और राज्यों में विधानसभा चुनाव देखने जा रहा है। मई में कर्नाटक और साल के अंत तक राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, तेलंगाना और मिजोरम। फिर 2024 की शुरुआत में आंध्र प्रदेश, ओडिशा, अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम में विधानसभा चुनाव होने हैं। ये पिछले चार विधानसभा चुनाव लोकसभा चुनाव के साथ हो सकते हैं।
सर्वोच्च न्यायालय इस याचिका पर जो भी निर्णय देता है और अंत में राहुल गांधी द्वारा अपनी दोषसिद्धि के खिलाफ  दायर समीक्षा याचिका पर चाहे जो भी निर्णय आयेगा, याचिका में उल्लिखित मुद्दे देश में लोकतंत्र के कामकाज एवं संघीय ढांचे की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं। इससे पहले कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य और एक प्रमुख वकील अभिषेक मनु संघवी ने मोदी सरकार की चुनौती का सामना करने के लिए विपक्षी दलों के कानूनी गठबंधन की आवश्यकता का उल्लेख किया। इसके लिए समय उपयुक्त है। यह वर्तमान गठबंधन और इसकी मांगें महंगाई और बेरोजगारी के मुद्दों के साथ-साथ केंद्र में सत्ताधारी पार्टी के खिलाफ  आने वाले दिनों में अभियान का मूल हिस्सा हैं।
याचिका के अनुसार, जांच एजेंसियों विशेष रूप से केंद्रीय जांच ब्यूरो और प्रवर्तन निदेशालय के उपयोग करने का एक स्पष्ट पैटर्न सामने आया है, ताकि पूरे राजनीतिक विपक्ष और अन्य मुखर नागरिकों को निशाना बनाया जा सके, उन्हें कमजोर कर वास्तव में कुचला जा सके, और कठोर विशेष कानूनों जैसे मनी लाऊंडरिंग रोकथाम अधिनियम 2002 के तरह उन्हें लंबे समय तक जेल में रखा भी जा सके, जो जमानत को लगभग असंभव बना देते हैं, भले ही उनके पास सजा की दर बहुत कम हो।’
विपक्षी दलों ने कहा कि 2014 के बाद से ईडी द्वारा दर्ज मामलों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है, जिनमें से अधिकांश मोदी शासन के आलोचकों और विरोधियों की ओर लक्षित प्रतीत होते हैं। इसके बावजूद, दोष सिद्धि की दर बहुत कम है, याचिका में तर्क दिया गया ह, यह कहते हुए कि ‘पीएमएल, के तहत केवल 23 अभियुक्तों को सज़ा हुई है’ और अधिकांश मामले ‘पूर्व-परीक्षण या परीक्षण चरण में लंबित हैं’। याचिका में यह भी कहा गया है कि यहां तक कि सीबीआई . जिसने 2004-14 के बीच 72 राजनीतिक नेताओं की जांच की, जिनमें से 43 विपक्ष से थे। 2014 के बाद कुल 124 नेताओं के विरूद्ध जांच कर रही है जिनमें 118 विपक्षी नेता हैं। इसका मतलब है कि 95 प्रतिशत मामले विपक्षी नेताओं के खिलाफ  हैं और उत्पीड़न के उपकरण के रूप में छापों का इस्तेमाल किया जा रहा है। अब याचिका पर हस्ताक्षर करने वाले सभी विपक्षी दलों को विधानसभा और लोकसभा दोनों चुनावों के लिए चुनाव प्रचार में जनता के पास याचिका में उल्लिखित एवं अन्य ज्वलंत मुद्दों को लेकर जाना है। भाजपा और संघ परिवार एक हिंदू राष्ट्र और एक विपक्ष मुक्त भारत की स्थापना के अपने लक्ष्य को आगे बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं। लोकसभा सदस्यता से राहुल गांधी की अयोग्यता राष्ट्रीय संकट का चरम बिंदु है जो सत्तारूढ़ दल द्वारा बनाया गया है। (संवाद)