किसानों की मदद के लिए आगे आएं सरकारें 


चाहे मध्य प्रदेश तथा पंजाब में नये गेहूं की सरकारी खरीद शुरू हो चुकी है, परन्तु उत्तर भारत में हो रही बेमौसमी बारिश के कारण गेहूं, चने, सरसों तथा कई अन्य फसलों के उत्पादन पर काफी विपरीत प्रभाव पड़ने की आशंका बन गई है। एक अनुमान के अनुसार उत्तर प्रदेश तथा राजस्थान सहित तीन राज्यों में 5.23 लाख हैक्टेयर क्षेत्र में गेहूं की फसल खराब हो गई है। पंजाब तथा हरियाणा के पूरे आंकड़े आने अभी शेष हैं। इसके अतिरिक्त उत्तर प्रदेश में आम तथा सब्ज़ियों की फसल पर भी काफी बुरा प्रभाव पड़ा है। पंजाब में प्रमुख किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल के अनुमान के मुताबिक प्रदेश में गेहूं की 70 प्रतिशत फसल प्रभावित हुई है। गेहूं के अतिरिक्त प्रदेश में सब्ज़ी, हरे चारे तथा खरबूजे एवं तरबूज की फसल का भी नुकसान हुआ है। 
कुछ दिन पहले प्रदेश के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने अधिकारियों को प्रदेश भर में किसानों की फसल के हुए नुकसान का जायज़ा लेने के लिए विशेष गिरदावरी करने का आदेश दिया था और अपने विधायकों तथा मंत्रियों को भी इस क्रियान्वयन पर नज़र रखने हेतु कहा था। उन्होंने यह भी घोषणा की थी कि किसानों को प्रति एकड़ 15 हज़ार रुपये तक मुआवज़ा दिया जाएगा, परन्तु पुन: बेमौसमी बारिश के साथ-साथ तेज़ हवाएं चलने से फसलों का नुकसान और भी बढ़ता जा रहा है। दूसरी ओर किसान नेताओं तथा किसानों का कहना है कि विशेष गिरदावरी की प्रक्रिया कोई अधिक तेज़ी से आगे नहीं बढ़ रही, क्योंकि प्रदेश में व्यापक स्तर पर पटवारियों की कमी है। किसानों ने यह आरोप भी लगाया है कि कुछेक पटवारी घर बैठे ही गिरदावरी कर रहे हैं, जिससे पीड़ितों को पूरा-पूरा मुआवज़ा प्राप्त करने में मुश्किल आ सकती है। किसानों का यह भी कहना है कि प्रति एकड़ सरकार की ओर से जो 15 हज़ार रुपये मुआवज़ा देने की घोषणा की गई है, वह काफी कम है। इससे किसानों के हुए नुकसान की पूर्ति नहीं हो सकती। इसमें और वृद्धि की जानी चाहिए।  
इस संदर्भ में हमारा मत है कि मुख्यमंत्री को पंजाब कृषि विभाग तथा लुधियाना यूनिवर्सिटी के कृषि विशेषज्ञों को लेकर तुरंत एक समिति का गठन करना चाहिए जो उनके द्वारा विशेष गिरदावरी के दिये गए आदेश पर हो रहे समूचे क्रियान्वयन पर नज़र रखे और किसानों को समय पर उचित मुआवज़ा दिलाने के लिए ज़रूरी सिफारिशें भी करे। इस कमेटी की सिफारिशों के आधार पर किसानों को प्रदेश सरकार द्वारा जल्द मुआवज़ा दिया जाना चाहिए। 
जिस प्रकार की रिपोर्टें आ रही हैं कि यह बेमौसमी वर्षा सिर्फ पंजाब तक ही सीमित नहीं रही, इसने पंजाब के अतिरिक्त हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश तथा यहां तक कि बिहार को भी अपनी चपेट में ले लिया है। इससे समूचे तौर पर अन्य फसलों के साथ-साथ गेहूं के उत्पादन में भारी कमी हो सकती है और इस प्रकार देश की खाद्य सुरक्षा भी खतरे में पड़ सकती है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि इस समय केन्द्र सरकार 81 प्रतिशत से अधिक गरीब आबादी को मुफ्त अनाज उपलब्ध करा रही है। देश का आरक्षित अनाज भंडार भी इस बार काफी नीचे आ गया है। एक फरवरी को देश के आरक्षित अनाज भंडार में 154 लाख मीट्रिक टन गेहूं रह गया था, जबकि आरक्षित भंडार में 133 लाख मीट्रिक टन गेहूं बनाए रखना लाज़िमी माना गया है। विगत कई वर्षों से पंजाब जो पिछले कई दशकों से देश की अनाज सुरक्षा में बड़ा योगदान डाल रहा है, में भी इस बार आरक्षण भंडार दो लाख मीट्रिक टन ही रह गया है। पंजाब के अलग-अलग ज़िलों से जो रिपोर्टें मिल रही हैं, उनके मुताबिक बड़े स्तर पर बारिश के साथ-साथ तेज़ आंधी से गेहूं की फसल गिर गई है और बहुत-से किसानों का मत है कि राज्य में औसत गेहूं का झाड़ चाहे 20 क्विंटल प्रति एकड़ होता है लेकिन इस बार यह झाड़ 10-11 क्विंटल प्रति एकड़ ही रह जाएगा। इसके अतिरिक्त गेहूं का जो उत्पादन होगा उसमें भी बदरंग और सिकड़े दानों की मात्रा काफी बढ़ने की सम्भावना है। यदि केन्द्र सरकार ने खरीद के नियमों में कोई बहुत छूट न दी तो कीमत के पक्ष से भी किसानों को नुकसान होगा। मध्य प्रदेश जहां भाजपा की अपनी सरकार है और जहां इस साल के अंत में चुनाव भी होने वाले हैं, वहां भी गेहूं की खरीद में 10 प्रतिशत तक बदरंग दानों वाली गेहूं को ही बिना भाव में कटौती किये खरीदने की इजाज़त दी गई है। पंजाब के कृषि विशेषज्ञों की राय है कि यदि मध्य प्रदेश में ही खरीद के नियम बहुत कम नरम किये गये हैं, तो पंजाब में भी ऐसी समस्या खड़ी हो सकती है।
इस समूचे परिदृश्य में हमारी यह राय है कि उत्तर भारत के अलग-अलग राज्यों में गेहूं और अन्य फसलों का जो बड़ा नुक्सान हुआ है, उसकी पूर्ति संबद्ध राज्य सरकारों द्वारा अपने सीमित साधनों से किया जाना संभव नहीं है। इसलिए केन्द्र सरकार को भी किसानों की सहायता के लिए आगे आना चाहिए। राज्य सरकारों से केन्द्रीय कृषि मंत्रालय और सिविल सप्लाई मंत्रालय द्वारा आपसी तालमेल बनाकर रिपोर्ट हासिल करनी चाहिए और उसकी रोशनी में केन्द्र सरकार को भी किसानों की वित्तीय मदद करनी चाहिए। हमारा विचार है कि देश चाहे अब औद्योगिक उत्पादन और सेवाओं के क्षेत्र में भी काफी विकास कर रहा है लेकिन देश की अनाज सुरक्षा आज भी कृषि पर निर्भर है। आज भी 60 प्रतिशत से ज्यादा जनसंख्या सीधे-सीधे ढंग के साथ कृषि पर निर्भर है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर धरती की बढ़ रही तपिश के कारण और पर्यावरण में आ रहे असाधारण परिवर्तनों के कारण खाद्य वस्तुओं के उत्पादन में निरंतर कमी आ रही है। इससे अनेक देशों में खाद्यान्न की कमी की समस्या भी पैदा होती जा रही है। अंत: भारत में खाद्यन्न सुरक्षा को बनाये रखने के लिए केन्द्र सरकार और संबंधित राज्य सरकारों को कृषि और किसानों की तरफ विशेष ध्यान देना चाहिए। इसके लिए जहां कृषि संबंधी अनुसंधानों को और आगे बढ़ाने की ज़रूरत है, वहीं किसानों के समय-समय पर होने वाले नुकसान की पूर्ति के लिए भी प्रभावी फसल बीमा योजनाओं सहित अन्य पक्षों से भी ठोस योजनाबंदी की जानी चाहिए, ताकि किसान सब तरह की मुश्किलों का सामना करते हुए देश की खाद्यान्न सुरक्षा को बनाये रखने के समर्थ हो सकें।