देश में कैसे कम होंगी सड़क दुर्घटनाएं ?

आज कोई भी दिन ऐसा नहीं गुज़रता है जिस दिन देश के किसी न किसी भाग में सड़क दुर्घटना न हुई हो। विकास की प्रतीक मानी जाने वाली सड़कें दुर्घटनाओं का कारण बनती जा रही हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक दुनिया भर में सड़क हादसों में मारे गए 10 लोगों में से कम से कम एक भारत से होता है। भारत में सड़क हादसों के आंकड़े बताते हैं कि देश में वर्ष 2021 में दुर्घटनाओं में 1.55 लाख से अधिक लोगों की मौत हुइ थी। यह आंकड़ा औसतन 426 लोग प्रतिदिन या हर घंटे 18 लोगों का है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार पिछले साल देश भर में 4.03 लाख सड़क दुर्घटनाओं में मौतों के अलावा 3.71 लाख लोग घायल भी हुए थे।
देश में दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों पर राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के मुताबिक सड़क दुर्घटनाओं के मामले 2020 में 3,64,796 से बढ़कर 2021 में 4,03,116 हो गए। मौतों में 16.8 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है। 2020 में 1,33,201 और 2021 में 1,55,622 लोगों ने सड़क हादसे में अपनी जान गवाई है। विश्लेषण से पता चलता है कि अधिकांश सड़क दुर्घटनाएं वाहनों की तेज़ गति के कारण हुई हैं।
देश में मोटर व्हीकल एक्ट में किया गया संशोधन 1 सितम्बर 2019 से लागू हुआ था। इसका मकसद देश में सड़क पर यातायात को सुरक्षित बनाना और सड़क दुर्घटनाओं में लोगों की मौत की संख्या को कम करना था। भारत में होने वाली सड़क दुर्घटनाओं में करीब 26 फीसदी खतरनाक या लापरवाह ड्राइविंग या ओवरटेकिंग की वजह से होती हैं। कोविड-19 महामारी की रोकथाम के लिए देश भर में लॉकडाउन लगाया गया था। इस दौरान सड़क दुर्घटनाओं में लगभग बीस हज़ार लोगों की जान बची थी। अप्रैल से लेकर जून 2020 तक सड़क दुर्घटनाओं में 20 हज़ार 732 लोगों की मौत हुई थी। जबकि 2019 में अप्रैल से जून के बीच 41 हज़ार 32 लोगों की सड़क दुर्घटनाओं में जान चली गई थी।
केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी के अनुसार भारत का राजमार्ग ढांचा 2024 तक अमरीका के बराबर हो जाएगा, जिसके लिए समयबद्ध मिशन मोड में काम चल रहा है और ग्रीन एक्सप्रेस-वे और रेल ओवर ब्रिज का निर्माण किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि भारतमाला-2 के लिए जल्द ही कैबिनेट की मंजूरी मिलने की संभावना है और एक बार इसके बाद यह देश में एक मज़बूत बुनियादी ढांचे की आवश्यकताओं को पूरा करेगा। गडकरी ने उम्मीद जतायी कि 2025 तक सड़क दुर्घटनाएं और इसके कारण होने वाली मौतें 50 प्रतिशत तक कम हो जाएंगी। 
गडकरी के अनुसार जानलेवा सड़क हादसों पर लगाम लगाने के लिये राज्यों को केन्द्रीय सड़क कोष के एक हिस्से का इस्तेमाल करना चाहिये और दुर्घटना वाली जगहों को दुरुस्त करना चाहिये। उन्होंने कहा कि हम न सिर्फ  राष्ट्रीय राजमार्गों पर बल्कि राज्य राजमार्गों पर भी हादसों को कम करने की कोशिश कर रहे हैं। जिलों में सड़क सुरक्षा समितियां गठित की जानी चाहिएं, जिनकी अध्यक्षता वरिष्ठ सांसदों को करनी चाहिए और जिलाधिकारियों को समिति का सचिव बनाया जाना चाहिए। यह समिति ज़िला स्तर पर दुर्घटना के सभी पहलुओं को देखे। 
सरकार सड़क दुर्घटनाओं को कम करने के लिए तेज़ी से काम कर रही है। इसके लिए नीतिगत सुधारों और सुरक्षित प्रणालियों को अपनाया जा रहा है। 2030 तक भारतीय सड़कों को ज़ीरो एक्सीडेंट बनाने की दिशा में कई कदम उठाए गए हैं। गडकरी के अनुसार सरकार सड़क पर दुर्घटना संभावित क्षेत्र की पहचान करने और इसके समाधान के लिए 14 हज़ार करोड़ रुपये खर्च करेगी।
सड़कों पर बने मोड़ों जैसे टी-जंक्शन और टी-वाई पर सबसे ज्यादा दुर्घटनाएं होती हैं। देश भर में हुए कुल दुर्घटनाओं में से 37 फीसदी दुर्घटनाएं उन्हीं चौराहों और मोड़ों पर होती हैं। उनमें से तकरीबन 60 फीसदी दुर्घटनाएं टी और टी-वाई जंक्शन पर रिकॉर्ड की गई। इनकी सबसे बड़ी वजह चालकों की गलती होती है। रफ्तार सीमा को पार करना, शराब पीकर वाहन चलाना, ओवरटेकिंग और मोबाइल पर बात करते हुए वाहन चलाना कुछ ऐसी गलतियां हैं, जिनसे बड़ी संख्या में सड़क दुर्घटनाएं हो रही हैं। कुल सड़क दुर्घटनाओं में से 84 फीसदी का कराण वाहन चालकों की गलती होती है। 
शहरों में सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था पूरी तरह से नगरीय बस सेवाओं के भरोसे है, जिनमें ज्यादातर बसें पुरानी हो चुकी हैं। कई अध्ययनों में यह बात सामने आई है कि शहरों की सार्वजनिक परिवहन प्रणाली को सुचारु रूप से संचालित करने के लिए इस समय सड़कों पर चल रही बसों के मुकाबले कई गुना अधिक बसों की ज़रूरत है। सड़क दुर्घटनाओं के कारण अक्सर परिवारों की आमदनी के स्रोत का नुकसान होता है व उनका रोज़गार छिन जाता है। संबंधित परिवार को आर्थिक दिक्कतें होती हैं। जो लोग सड़क दुर्घटनाओं में बच भी जाते हैं उनके इलाज में भारी रकम खर्च करनी पड़ती है। हालांकि 2019 का मोटर व्हीकल एक्ट सड़क दुर्घटना के शिकार लोगों को बीमा के जरिए आर्थिक मदद उपलब्ध कराता है, लेकिन इस कानून से सड़क दुर्घटनाओं का शिकार लोगों को होने वाली मानसिक क्षति की भरपाई नहीं होती। 
इंटरनेशनल रोड फेडरेशन के मुताबिक भारत में सड़क दुर्घटनाओं में सालाना करीब 20 अरब डॉलर का नुकसान होता है।  देश की सड़कों पर वाहनों का दबाव बढ़ता जा रहा है। इस पर नियंत्रण के उचित कदम उठाए जाने चाहिए। साथ ही वाहनों की सुरक्षा के मानकों की समय-समय पर जांच होनी चाहिए। स्कूलों में सड़क सुरक्षा से जुड़े जागरूकता अभियान चलाए जाएं। भारी वाहन और पब्लिक ट्रांसपोर्ट को परमिट दिए जाने की प्रक्रिया में कड़ाई बरती जाए। ड्राइविंग लाइसेंस के लिए योग्यता भी तय की जाए। साथ ही छोटे बच्चे और किशोरों के वाहन चलाने पर कड़ाई से रोक लगे। तेज़ रफ्तार, सुरक्षा बेल्ट का प्रयोग न करने वालों और शराब पीकर वाहन चलाने वालों के खिलाफ  सख्त कार्रवाई हो, तभी देश में सड़कों पर लगातार हो रही दुर्घटनाओं पर रोक लग पायेगी।
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