ई-रुपया गेमचेंजर हो सकता है बशर्ते सरकार ध्यान दे

 

भारतीय रिजर्व बैंक ने बड़े उत्साह से ई-रुपया को देश की मुद्रा के क्रमागत विकास के महत्वपूर्ण चरण के रूप में लॉन्च किया था। 1 नवम्बर 2022 को थोक और 1 दिसम्बर 2022 को खुदरा क्षेत्र में शुरुआती तौर पर चार शहरों और चार बैंकों के साथ ई-रुपया का पायलट प्रोजेक्ट आरंभ किया गया। जिनकी संख्या अब नौ बैंकों और 9 शहरों तक पहुंच चुकी है। बेशक इस मामले में जैसा तय और जितना सोचा गया था, उतना विकास हुआ। बैंक भी बढ़े और शहरों की संख्या भी, लेकिन ई-रुपया का लेनदेन करने वालों की संख्या में प्रगति बेहद निराशाजनक है। कई महीने बाद भी ज्यादातर लोग इसका इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं। खुदरा क्षेत्र वाले पायलट प्रोजेक्ट की शुरुआत के समय यह दावा किया गया कि यह तेज़ी से लोकप्रिय होगा। तीन महीने के भीतर ही इसकी समीक्षा कर इसे समूचे देश में बड़े पैमाने पर लागू किया जाएगा। लेनदेन के बहुत से मामलों को ई-रुपया निर्भर बना दिया जायेगा।
लेकिन सरकारी आंकडे के मुताबिक अभी तक महज 131 करोड़ के मूल्य का ई-रुपया ही चलन में है। इसमें खुदरा क्षेत्र में कुल तकरीबन साढ़े चार करोड़ रुपये और थोक में कुल साढ़े 126 करोड़ रुपये है। कुल ई-रुपये के चलन में थोक की संख्या यदि 96 प्रतिशत से ज्यादा है, तो जाहिर है कि इसमें नौ बैंकों का जिनमें भारतीय स्टेट बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया, एचडीएफसी बैंक, आईसीआईसीआई बैंक, कोटक महिंद्रा बैंक, येस बैंक, आईडीएफसी फर्स्ट बैंक और एचएसबीसी जैसे बड़े बैंकों का महती योगदान है। बैंकों के द्वारा 127 करोड़ के आस-पास का यह लेनदेन आधिकारिक तौर पर इस चलन को सुरक्षित और सफल दर्शाने की कवायद हो सकती है। नौ बैंकों के इस परियोजना से जुड़ने के बाद यदि यह आंकड़ा महज 127 करोड़ का ही है तो यह भी विचारणीय है। वह भी प्रायोगिक परीक्षण के नाम पर एक माह बाद शुरू हुई खुदरा चलन में सवा चार प्रतिशत से कम का हिस्सा दिखाता है कि लोग इससे बिल्कुल विमुख रहे। इस नई मुद्रा में तनिक भी रुचि नहीं ली।
लोगों ने डिजिटल भुगतान खूब किया, लेकिन ई-रुपये को नहीं अपनाया। यहां तक कि पेटीएम और गूगल पे के मुकाबले ई-रुपये से भुगतान एक प्रतिशत भी नहीं रहा। जाहिर है आखिर केन्द्रीय बैंक डिजिटल मुद्रा यानी सीबीडीसी का यह प्रोजेक्ट इतनी बुरी तरह असफल क्यों दिख रहा है। 45 वर्षीय एक फल विक्रेता के हाथों हुई इसकी बोहनी लेनदेन के संदर्भ में विशेष फलीभूत नहीं हुई। पेटीएम, यूपीआई और दूसरी डिजिटल मुद्रा अपनाने वाले लोग आखिर ई-रुपये से क्यों दूर हैं? बिना पारदर्शिता और नागरिकों की भागीदारी के विकसित किए गए सीबीडीसी या ई-रुपये से भविष्य में कितनी उम्मीद रखी जाए।  
सच यह है कि ज्यादातर लोग नहीं जानते कि ई-रुपया क्या बला है, खुदरा लेनदेन में इसे कैसे इस्तेमाल करना है, यह किस कदर सुरक्षित है और इसके फायदे क्या हैं? कौन से बैंक इससे संबंधित हैं। जनजागरूकता की भारी कमी है। सरकार लोगों को यह बता नहीं पाई कि ई-रुपया एक डिजिटल टोकन, एक लीगल टेंडर है, यह भरोसेमंद और पूर्णतया वैध है। ये उसी मूल्यवर्ग में जारी नोट और सिक्कों का डिजिटल या इलेक्ट्रॉनिक रूप है, जिसमें वर्तमान में कागजी मुद्रा और सिक्के प्रचलित हैं। यह वित्तीय मध्यस्थों यानी बैंकों के माध्यम से अपना डिजिटल वॉलेट लेकर कोई भी ई-रुपये का लेनदेन किसी व्यक्ति या दुकान वगैरह के बीच ठीक उसी तरह से कर सकता है जैसे अपने बैंक में पैसे की जमा, निकासी करता है। वह इसे मोबाइल फोन या दूसरे उपकरणों पर रख सकता है। इसे रखने पर कैश को लेकर निर्भरता कम हो जाएगी। इसको इंटरनेट भी नहीं चाहिये। वित्तीय लेनदेन में यह सुधारात्मक प्रयोग ब्लॉकचेन तकनीक पर आधारित है, जिसके चलते यह बेहद सुरक्षित और सरल है। 
आरबीआई द्वारा संचालित करंसी के इलेक्ट्रॉनिक लेनदेन में कोई व्यक्तिगत, संस्थागत हैंडलर शामिल नहीं होता है, जैसा कि यूपीआई लेनदेन के मामले में होता है। सरकार यह भी बता सकती थी कि सरकार को रुपये छापने और उनके रखरखाव में हर साल जो 6000 करोड़ रुपये खर्च करने पड़ते हैं, ई-रुपया लागू होने पर यह खर्च काफी हद तक बचेगा जो विकास में लगेगा। डिजिटल रुपये से नकली करंसी पर रोक लगाने में मदद मिलेगी, रुपये को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने का व्यय भी न्यून होगा। बेशक, डिजिटल रुपये से इन सारी समस्याओं का समाधान मिल सकेगा पर सरकार संभवत: यह सब कुछ समझाने में असफल रही। इस विषय में जनजागरूकता का अभाव तो स्पष्ट परिलक्षित होता ही है, बहुत से बैंकरों ने भी आगे आकर कहा कि फिलहाल उनको भी यूनीफाइड पैमेंट सिस्टम यूपीआई वगैरह के मुकाबले इसमें कोई ज्यादा फायदा नहीं दिख रहा। फलस्वरूप आमजन आज ई-रूपये से बहुत परिचित नहीं है और ऊपर से बैंकरों के निरुत्साह के चलते ई-रुपया बहुप्रचलित न हो सका।   
वैश्विक स्तर पर नकद का प्रयोग घट रहा है। डिजिटल पेमेंट, ई वैलेट, सेंट्रल बैंक करंसी जैसे विकल्प बढ़ रहे हैं। संसार भर के तकरीबन दो अरब युवा बैंक का खाता नहीं रखते। यह उचित अवसर है सीबीडीसी को प्रचलन में लाने का। पर यह विकल्प मूलत: उनको आकर्षित करने वाला होना चाहिए, जो आज भी नकद खर्चने के अभ्यस्त हैं वे महीनेभर के लिए एकमुश्त पैसा निकालकर उस सीमित धन को अपने तरीके से नकद खर्च करते हैं ताकि सीमा से अधिक व्यय न हो जाये। सरकार पर भरोसा होना और बात है और अपने पैसों के मामले में विश्वास रखना वह भी तब, जब व्यवस्था के तहत अरबों के आर्थिक, वित्तीय घोटालों की खबरें आम हों, किंचित कठिन है। दूसरे रिजर्व बैंक ने कई बार यह दावा किया कि ई-रुपये से लेनदेन में निजता यह हर कीमत पर और पूरी तरह सुरक्षित रहेगी। लेकिन कैसे? यह वे कभी बता नहीं सके। असल में कोई भी भुगतान गुमनाम नहीं रहता, अपने निशान अवश्य छोड़ता है, बस कैश के साथ ऐसा किया जा सकता है। सीबीडीसी के लिए आईडी चाहिए ही चाहिए। खुद रिजर्व बैंक ने कहा था कि ई-रुपये के जरिए सरकार वित्तीय तंत्र पर निगरानी रख सकेगी यानी डिजिटल रुपए, उसके लेनदेन की ट्रैकिंग होगी। नि:संदेह भविष्य में यह गेमचेंजर साबित हो सकता है बशर्ते अभी इसका भविष्य कुछ साफ  नज़र आये।            

 -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर