आईटी नियमों में संशोधन : क्या गलत सूचना पर रोक लग सकेगी ?

हालांकि केंद्र सरकार का दावा है कि आईटी (इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी) रूल्स, 2021 में किये गये संशोधनों को नोटिफाई करने से पहले उसने सभी स्टेकहोल्डर्स से विचार-विमर्श किया था, लेकिन एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया और इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन (आईएफ एफ) जैसे संगठनों ने इन संशोधनों को ‘सेंसरशिप जैसा’ कहते हुए ‘कानूनन विवादास्पद’ बताया है, जो इस बात का संकेत है कि उनसे विचार-विमर्श नहीं किया गया या उनके विचारों का संज्ञान नहीं लिया गया जबकि विपक्षी दलों ने संशोधित नियमों को ‘काले कानून व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन’ बताया है। नये संशोधित नियमों में ड्राफ्ट प्रस्ताव से एकमात्र अंतर तकनीकी है, जिसकी सिफारिश डिपार्टमेंट ऑफ लीगल अफेयर्स ने की थी। आईएफएफ  का कहना है, ‘फैक्ट चेक यूनिट... सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स और इंटरनेट स्टैक पर अन्य मध्यस्थों को टेकडाउन आर्डर (सामग्री हटाने का आदेश) दे सकता है जोकि संभवत: आईटी एक्ट, 2000 के सेक्शन 69-ए के तहत दी गई संवैधानिक प्रक्रिया को बाईपास करना होगा।’
गौरतलब है कि इलेक्ट्रॉनिक्स एंड इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी मंत्रालय ने 6 अप्रैल को आईटी (इंटरमीडिअरी गाइडलाइंस  एंड डिजिटल मीडिया एथिक्स कोड) रूल्स, 2021 में संशोधन किया, जिससे केंद्र सरकार को अधिकार मिल जाता है कि वह गलत सूचना (फेक न्यूज़) के लिए अधिकारिक फैक्ट चेकर नामित करे और ऑनलाइन रियल मनी गेमिंग उद्योग को नियंत्रित करे, जिसमें फं तासी स्पोर्ट्स साइट्स, रमी व पोकर जैसे एप्पस आते हैं। इन संशोधित नियमों के संदर्भ में महत्वपूर्ण सवाल यह हैं कि जिन खबरों को सरकार गलत सूचना के तौर पर चिन्हित करेगी उन पर प्रेस इनफार्मेशन ब्यूरो (पीआईबी) क्या कार्रवाई? क्या इनसे सोशल मीडिया कम्पनियों के विरुद्ध कानूनी कार्यवाही किये जाने के द्वार खुल जायेंगे? क्या ऑनलाइन बेटिंग व गैम्बलिंग गेम्स पर पूर्ण प्रतिबंध लग जायेगा? क्या ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स से गलत सूचनएं पूरी तरह से हटायी जा सकेंगी?
पहले यह जान लेते हैं कि संशोधन ‘गलत सूचना’ के बारे में क्या कहता है? पीआईबी का फैक्ट चेक यूनिट वर्षों से  केंद्र सरकार की योजनाओं व विभागों के बारे में व्हाट्सएप्प फॉरवर्ड्स व न्यूज़ आर्टिकल्स का ‘वास्तविक चेहरा’ दिखाता आ रहा है। अब यह केंद्र सरकार का अधिकारिक फैक्ट चेकर होगा। अत: जब भी कभी किसी खबर को फेक नोटिफाई किया जायेगा तो सोशल मीडिया कम्पनियां उस सामग्री के लिए अपना सुरक्षा कवच (सेफ  हार्बर) खो बैठेंगी, जिससे उनके विरुद्ध मुकद्दमा हो सकता है या अन्य कानूनी कार्यवाही हो सकती है। चूंकि आईटी एक्ट, 2000 सोशल मीडिया कम्पनियों को मध्यस्थ मानता है, इसलिए यूज़र्स द्वारा पोस्ट की गई सामग्री पर उनकी कोई कानूनी जवाबदेही नहीं थी। वह परम्परागत दृष्टि से कानूनी इम्युनिटी का आनंद ले रही थीं। संशोधित नियमों के तहत उनका यह सुरक्षा कवच हट जायेगा अगर, अन्य चीज़ों के अतिरिक्त, उनके पास भारत के लिए शिकायत अधिकारी नहीं है या वह यूज़र की शिकायत समय पर संबोधित नहीं करती हैं। इसके अलावा अब इस संशोधन के बाद वे अपनी सेफ  हार्बर इम्युनिटी उन पोस्ट्स के लिए खो देंगी, जिन्हें सरकार ने गलत सूचना के तौर पर चिन्हित किया हो। केंद्र सरकार में इलेक्ट्रॉनिक्स एंड इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी के राज्य मंत्री राजीव चन्द्रशेखर का कहना है कि यह संशोधन सेंसरशिप नहीं है बल्कि सिर्फ  सोशल मीडिया कम्पनियों की इम्युनिटी हटाता है, जब वह घोषित ‘गलत सूचना’ को अपने प्लेटफॉर्म्स पर बनाये रखने का चयन करेंगी। दूसरी ओर आईएफएफ  का कहना है, ‘इन संशोधित नियमों के नोटिफिकेशन का अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार पर गहरा कुप्रभाव पड़ेगा, विशेषकर खबर प्रकाशकों, पत्रकारों, एक्टिविस्ट्स आदि पर।’ विपक्ष का आरोप है कि इस सेंसरशिप से सरकार अब स्वतंत्र डिजिटल प्लेटफॉर्म्स को भी नियंत्रित करना चाहती है, जबकि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स, यूज़र्स, मीडिया हाउसेस सभी इस संशोधन के विरोध में हैं। कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत के अनुसार, ‘जिन खबरों से सरकार असहज होगी उन्हें ‘गलत सूचना’ घोषित कर दिया जायेगा। 
यह स्पष्ट नहीं है कि इस सिलसिले में प्लेटफॉर्म्स की क्या प्रतिक्रिया रहेगी। आम तौर से अमरीकी सोशल मीडिया फार्में सरकार से सार्वजनिक टकराव में संकोच करती रही हैं, ़खामोशी से टेकडाउन नोटिस का पालन करने को प्राथमिकता देते हुए। ट्विटर अपवाद रहा है, वह कर्नाटक हाईकोर्ट में कुछ सेंसरशिप आदेशों के विरुद्ध लड़ रहा है, लेकिन इस केस के जारी रहते हुए भी वह एलोन मस्क के मालिक बनने के बाद से सरकार के आग्रह पर पत्रकारों, नेताओं व एक्टिविस्ट्स के एकाउंट्स व पोस्ट्स को निरन्तर हटा रहा है। चन्द्रशेखर का यह कहना कि ‘गलत सूचना’ के तौर पर चिन्हित होने के बाद भी प्लेटफॉर्म्स सामग्री को रखने के लिए आज़ाद हैं, इस आधार (या अनुमान) पर है कि सोशल मीडिया फर्मों ने सरकार से अच्छे संबंध बनाये रखने पर यूज़र्स के अधिकारों के लिए खड़े होने का फैसला किया है। अगर प्लेटफॉर्म्स वास्तव में ऐसा करना चाहते हैं तो उन्होंने अभी तक खुलकर यह बात कही नहीं है।
रियल मनी गेमिंग सेवाओं में यूज़र्स को जीतने की उम्मीद में पैसे जमा करने पड़ते हैं। इनके सिलसिले में संशोधन यह किया गया है कि वे सेल्फ-रेगुलेटरी बॉडी (एसआरबी), जिसमें विशेषज्ञ व उद्योग के सदस्य हों, से स्वयं ‘वैध’ का सर्टिफिकेट लें। दशकों के संवैधानिक जूरिसप्रूडेंस ने ‘बेटिंग व गैंबलिंग’ की परिभाषा को काफी सीमित कर दिया है, जिसके लिए प्रशासनिक प्राधिकरण राज्यों के पास है। ‘वैध’ रियल मनी गेम्स संभवत: वह होंगे जिनके परिणाम पूर्णत: किस्मत पर आधारित न हों। रियल मनी गेमिंग उद्योग, जिसने अदालतों में राज्यों के विरुद्ध अक्सर सफलतापूर्वक होलसेल प्रतिबंध को चुनौती दी है, ने इस संशोधन का स्वागत करते हुए इसका पालन करने का संकेत दिया है। चन्द्रशेखर के अनुसार, जो गेम्स ‘वैध’ घोषित नहीं हैं वह ‘बेटिंग व गैंबलिंग’ श्रेणी में आयेंगे, जिसका अर्थ है कि जिन राज्यों में ऐसी गतिविधियों पर रोक है, वहां उन पर प्रतिबंध लग सकता है। सरकार ने इस बहस में पड़ने से साफ  इन्कार कर दिया है कि रियल मनी गेम कौशल का है या किस्मत का, जबकि यही अंतर महत्वपूर्ण है कानूनन यह तय करने के लिए कि एप्प बेटिंग या गैंबलिंग को प्रोत्साहित तो नहीं कर रहा। यह फैसला एसआरबी पर छोड़ दिया गया है। इसलिए अनुमान है कि प्रमुख फं तासी स्पोर्टिंग एप्पस व कार्ड गेम्स जिन्होंने कौशल का खेल होने के अदालती आदेश लिए हुए हैं, उन पर कोई असर नहीं पड़ेगा। 


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