‘आप’ को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा देने में जल्दबाज़ी क्यों ?

 

आम आदमी पार्टी चाहती थी कि उसे कर्नाटक विधानसभा के चुनाव से पहले ही राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिल जाए। इसके लिए उसकी ओर से कर्नाटक हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी। आम तौर पर ऐसे मामलों में अदालत संबंधित पक्षों को नोटिस जारी कर जवाब तलब करती है और जवाब देने के लिए कुछ वक्त देती है। लेकिन इस मामले में अदालत ने शीघ्र सुनवाई कर चुनाव आयोग को सीधे निर्देश जारी कर दिया कि वह आम आदमी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा देने पर 13 अप्रैल तक फैसला सुनाए। चुनाव आयोग ने भी गजब की फुर्ती दिखाई और 10 अप्रैल को ही आम आदमी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा देने का ऐलान कर दिया। गौरतलब है कि 13 अप्रैल को ही कर्नाटक चुनाव के लिए अधिसूचना जारी होनी थी और उसी दिन से नामांकन शुरू होना था। सो, अधिसूचना जारी होने से पहले आम आदमी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी के तौर पर मान्यता मिल गई। 
आम आदमी पार्टी के नेता खुल कर कह रहे थे कि उनकी पार्टी को अगर राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिल जाता है तो कर्नाटक के चुनाव में उसे बहुत फायदा होगा। सब जानते हैं कि अरविंद केजरीवाल गुजरात की तरह कर्नाटक में भी कांग्रेस को हराने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं। इसलिए राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल करने को लेकर उनकी बेचैनी तो समझ में आती है, लेकिन हाईकोर्ट और चुनाव आयोग ने इस मामले में जैसी फुर्ती दिखाई, वह हैरान करने वाली है।
वंशवाद से भाजपा की लड़ाई 
वंशवाद से लड़ने का भाजपा ने अनोखा तरीका ईजाद किया है। इसके तहत वह अपनी पार्टी के बड़े नेताओं के बेटे-बेटियों को तो आगे बढ़ाती ही है साथ ही कांग्रेस और दूसरी पार्टियों से बड़े नेताओं के बेटे-बेटियों का आयात करती है और उनको भी आगे बढ़ाती है। उसके लिए वंशवाद सिर्फ भाजपा विरोधी पार्टियों में है। अगर उन पार्टियों के वंशवादी राजनीति के चेहरे अगर भाजपा में आ जाएं तो फिर वे वंशवादी नहीं रह जाते हैं। जैसे कांग्रेस के दिग्गज ए.के. एंटनी के बेटे अनिल एंटनी और चक्रवर्ती राजगोपालाचारी के प्रपौत्र सी.आर. केशवन अब वंशवादी नहीं रहे क्योंकि वे भाजपा में शामिल हो गए हैं। इससे पहले भी कांग्रेस के तमाम पूर्व राजा-महाराजा और बड़े नेताओं के बेटे, बेटी, पत्नी आदि को भाजपा ने सहर्ष अपनी पार्टी में शामिल किया है और उन्हें बड़ा पद भी दिया है। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे एन.टी. रामाराव की बेटी डी. पुरंदेश्वरी भाजपा की राष्ट्रीय महामंत्री हैं और कर्नाटक के मुख्यमंत्री रहे एस.आर. बोम्मई के बेटे बसवराज बोम्मई भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री हैं। माधवराव सिंधिया के बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया केंद्र में मंत्री हैं तो जितेंद्र प्रसाद के बेटे जितिन प्रसाद उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री हैं। पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह पूरे परिवार के साथ भाजपा में शामिल हो गए हैं। अगले चुनाव में उनकी पत्नी या बेटा भाजपा की ओर से चुनाव लड़े तो हैरानी नहीं होगी। इसके अलावा भाजपा के अपने और सहयोगी पार्टियों के नेताओं के बेटे-बेटियों की लम्बी सूची है, जो किसी न किसी पद पर हैं।
किन कारोबारियों से मिलते हैं राहुल?
कांग्रेस छोड़ चुके गुलाम नबी आज़ाद का यह आरोप बहुत गंभीर है कि राहुल गांधी विदेश जाते हैं तो भारत विरोधी कारोबारियों से मिलते हैं। इस आरोप को लेकर भाजपा ने राहुल से पूछा है कि वह बताएं कि जब वह विदेश जाते हैं तो किन कारोबारियों से मिलते हैं। हालांकि उन्होंने नाम किसी का नहीं लिया है, लेकिन अगर भाजपा ने राहुल पर हमला करने के लिए उनकी बात का संज्ञान लिया है तो सरकार और केंद्रीय जांच एजेंसियों को भी इसका संज्ञान लेकर आज़ाद से पूछताछ करनी चाहिए कि राहुल विदेश जाते हैं तो किन कारोबारियों से मिलते हैं और उसका क्या मकसद होता है। आज़ाद ने नेहरू-गांधी परिवार के लोगों के कारोबारियों से मिलने के बात कही है लेकिन इसमें कोई दिक्कत नहीं है। असली दिक्कत वाली बात भारत विरोधी कारोबारियों से मिलने की है, जिसके बाद भाजपा ने कहा कि विदेश से लौट कर राहुल केंद्र सरकार पर ज़्यादा आक्रामक हो जाते हैं। इसका मतलब है कि विदेश में वह ऐसे भारत विरोधी कारोबारियों से मिलते हैं, जिसका एजेंडा भारत सरकार के विरोध का होता है। वह कारोबारी भारत का कोई नागरिक है या विदेशी नागरिक है? सरकार का विरोध कराने का उसका क्या एजेंडा है? इन सवालों के जवाब हासिल करने की ज़रूरत है। यह तो तय है कि अगर आज़ाद के पास ऐसी कोई जानकारी है तो वह भाजपा और केन्द्र सरकार को मिल चुकी होगी। अब सवाल है कि उस जानकारी पर सरकार कब कार्रवाई करेगी? क्या वह चुनाव का इंतज़ार करेगी?
गुलाम नबी आज़ाद की चिंता
गुलाम नबी आज़ाद को क्या सचमुच अपने बंगले की चिंता है जिसकी वजह से वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की खुल कर तारीफ  कर रहे हैं और सोनिया व राहुल गांधी को निशाना बना रहे हैं? इसमें संदेह नहीं है कि कोई इतना बड़ा नेता सिर्फ बंगले की खातिर अपनी पूरी राजनीति दांव पर नहीं लगाता है। इसलिए बंगले के साथ-साथ कुछ और भी राजनीतिक कारण हैं। लेकिन बंगला और सुरक्षा ये दो मुख्य कारण हैं। असल में गुलाम नबी आज़ाद के पास दिल्ली के साउथ एवेन्यू में तो सरकारी बंगला है ही, जम्मू-कश्मीर में भी एक सरकारी बंगला है। एक रिपोर्ट के मुताबिक जम्मू-कश्मीर में 50 से ज़्यादा ऐसे लोग हैं जिनको बंगला मिला था और उसके योग्य नहीं होने के बावजूद उन्होंने अभी तक बंगला खाली नहीं किया है। उसमें आजाद का भी नाम है। फिलहाल जम्मू-कश्मीर में भी केंद्र की ही सरकार चल रही है। अगर उप राज्यपाल मनोज सिन्हा का प्रशासन चाहे तो तुरंत आज़ाद को बंगला खाली करना होगा। सोचने वाली बात है कि राहुल गांधी को सदस्यता खत्म होने के दो दिन बाद ही एक महीने में बंगला खाली करने को कह दिया गया जबकि आज़ाद की सदस्यता समाप्त हुए एक साल से ज्यादा हो गया है। कश्मीर में तो बंगला रखने की उनकी पात्रता बहुत पहले ही खत्म हो गई थी। सो, बंगला एक कारण है। इसके अलावा भाजपा को उनकी उपयोगिता जम्मू-कश्मीर की राजनीति में दिख रही है। भाजपा को हर हाल में अगले चुनाव के बाद अपना मुख्यमंत्री बनाना है उसमें आज़ाद भूमिका निभा सकते हैं।
दुनिया के ताकतवर लोगों में मोदी नहीं 
अमरीका की ‘टाइम मैगज़ीन’ ने साल 2023 के लिए दुनिया के 100 प्रभावशाली लोगों की जो सूची जारी की है, वह भारत में खटकने वाली है। इस सूची में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम नहीं है, जबकि सत्तारूढ़ भाजपा और गोदी मीडिया इस समय उन्हें पूरी दुनिया का सबसे प्रभावशाली नेता बताने में जुटा हुआ है। टाइम की सूची में भारत से दो फिल्मी नाम अभिनेता शाहरुख खान और निदेशक एस.एस. राजामौली के नाम हैं। भारतीय मूल के प्रसिद्ध अमरीकी लेखक सलमान रुश्दी का नाम भी इस सूची शामिल है। ‘टाइम मैगज़ीन’ ने यह साफ  नहीं किया है कि उसकी कोई और सूची भी आएगी या नाम बढ़ेंगे। चूंकि सूची में अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडन का नाम भी शामिल है तो इससे ज़ाहिर है कि सूची में दुनिया के प्रभावशाली राजनीतिक चेहरों को शामिल कर लिया गया है और दोबारा कोई सूची नहीं आने वाली है। बहरहाल यह लगातार दूसरा वर्ष है जब ‘टाइम मैगज़ीन’ ने अपनी इस तरह की सूची में प्रधानमंत्री मोदी को शामिल नहीं किया है। 2022 की सूची में भी उनका नाम 100 ताकतवर लोगों में शामिल नहीं था।