ऐसे कैसे हो सकेगी विपक्षी एकता ?

 

दिल्ली में सभी विपक्षी पार्टियां एकजुटता बनाने के प्रयास में लगी हुई हैं और उधर कर्नाटक में सब एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ रही हैं। इसलिए सवाल है कि आपस में लड़ कर विपक्षी पार्टियां लोकसभा चुनाव के लिए किस तरह एकजुट होंगी? कर्नाटक में शरद पवार की पार्टी एनसीपी 45 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। एनसीपी नेताओं का कहना है कि उनका राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा छिन गया है, इसलिए वे विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं ताकि वोट हासिल करके राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा वापिस लिया जाए यानी उनके लिए कर्नाटक में भाजपा को रोकने की बजाय अपना राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा ज्यादा ज़रूरी है। इसी तरह आम आदमी पार्टी राज्य में 168 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। दिलचस्प बात यह है कि चित्तपुर की आरक्षित सीट पर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के बेटे प्रियंक खड़गे के खिलाफ  आम आदमी पार्टी ने उम्मीदवार उतारा है। सोचने वाली बात है कि दिल्ली में और संसद में खड़गे के साथ आम आदमी पार्टी का पूरा सद्भाव दिखता है। अरविंद केजरीवाल को सीबीआई ने पूछताछ के लिए बुलाया तो उन्हें सबसे पहले फोन करने वाले नेता खड़गे थे। अगर उनके बेटे के खिलाफ आम आदमी पार्टी का उम्मीदवार नहीं होता तो इससे एक सकारात्मक संदेश बन सकता था। गौरतलब है कि पिछले चुनाव में इस सीट पर प्रियंक खड़गे महज चार हज़ार वोट से जीते थे। इस बार आम आदमी पार्टी का उम्मीदवार अगर थोड़े से भी वोट काट लेता है तो प्रियंक के लिए मुश्किल हो सकती है।
 ‘ट्रिपल इंजन की सरकार’  
किसी भी राज्य के विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर भाजपा का हर छोटा-बड़ा नेता डबल इंजन सरकार की बात करता है। अब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने प्रदेश में हो रहे नगर निकाय चुनाव में ट्रिपल इंजन सरकार की बात की है। वह लोगों से कह रहे हैं कि शहरों में विकास की रफ्तार बढ़ाने के लिए तीसरा इंजन लगाने की ज़रूरत है। ज़ाहिर है कि डबल इंजन की सरकार यानी केंद्र और राज्य में भाजपा की सरकार होने के बावजूद पिछले छह साल से जो विकास नहीं हो पा रहा है, वह नगर निगम का तीसरा इंजन जुड़ने के बाद होगा। लेकिन सवाल है कि अगर भाजपा इन चुनावों में भी जीत जाती है तो क्या पंचायत चुनावों में चौथा इंजन लगाने के नाम पर वोट मांगे जाएंगे? वैसे यह प्रचार अपने आप में लोकतंत्र और संघवाद की संवैधानिक अवधारणा के खिलाफ  है कि डबल इंजन से विकास होगा। सवाल है कि अगर डबल इंजन नहीं है तो क्या विकास नहीं होगा? इसका एक अर्थ यह भी निकलता है कि केंद्र में जो सत्तारूढ़ दल है, अगर उसी दल की सरकार किसी राज्य में नहीं होती है तो उसके साथ भेदभाव होगा, उसे फंड कम मिलेगा या विकास योजनाओं में उसकी हिस्सेदारी कम होगी और अगर उसी दल की सरकार किसी राज्य में है तो उसे ज्यादा फंड मिलेगा। यह स्वाभाविक निष्कर्ष है, इसके बावजूद कोई भी डबल इंजन सरकार के प्रचार पर सवाल नहीं उठाता है। 
बिहार में भाजपा की मुश्किलें
भाजपा ने बिहार में लोकसभा चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है, लेकिन इस तैयारी में उसके सामने कई मुश्किलें हैं। पहली मुश्किल तो यह है कि पार्टी को उन सीटों के लिए उम्मीदवार तलाशने हैं, जहां पिछली बार जनता दल (यू) लड़ा था। पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने जनता दल (यू) को 17 सीटें दी थीं, जिनमें से वह 16 पर जीती थी। भाजपा खुद 17 सीट पर लड़ी थी और सभी सीटों पर जीती थी। भाजपा ने छह सीटें लोक जनशक्ति पार्टी को दी थी। अगर भाजपा 2014 के फार्मूले पर लड़ती है तो वह 30 सीटों पर लड़ेगी और 10 सीटें सहयोगियों को दी जाएंगी। ऐसे में भाजपा को 13 नए उम्मीदवार तलाशने होंगे। लम्बे समय तक जनता दल (यू) के साथ रहने की वजह से भाजपा के लिए इन सीटों पर सक्षम उम्मीदवार तलाशना आसान नहीं है। दूसरी मुश्किल लोक जनशक्ति पार्टी के दोनों गुटों यानी पशुपति पारस और चिराग पासवान के बीच एकता करवाने की है। दोनों अलग-अलग पांच-पांच सीटों की मांग कर रहे हैं। भाजपा दोनों को कुल छह से ज्यादा सीटें नहीं दे सकती है क्योंकि उसे उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी को भी सीटें देनी हैं और अगर जीतन राम मांझी व मुकेश सहनी भाजपा के साथ जुड़ते हैं तो उन्हें भी सीटें देनी होंगी।
भाजपा दक्षिण की ओर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह कर्नाटक में प्रचार कर ही रहे हैं लेकिन वे दक्षिण भारत के अन्य राज्यों में भी अपनी सक्रियता बनाए हुए हैं। कर्नाटक में विधानसभा चुनाव की घोषणा 29 मार्च को हुई थी उसके बाद आठ अप्रैल को मोदी तमिलनाडु गए, जहां उन्होंने रोड शो किया और हज़ारों करोड़ रुपए की योजनाओं की घोषणा की। उसी दिन वह तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद भी गए और कई परियोजनाओं का उद्घाटन व शिलान्यास किया। फिर 24 अप्रैल को मोदी केरल पहुंचे, जहां शाम को उन्होंने कोच्चि में पैदल रोड शो किया। अगले दिन यानी 25 अप्रैल को उन्होंने पहली वाटर मेट्रो को हरी झंडी दिखाई और कई अन्य बड़ी परियोजनाओं का उद्घाटन व शिलान्यास किया। इसके बाद वह कर्नाटक में प्रचार के लिए जुट गए। इसी तरह अमित शाह तो लगातार कर्नाटक में प्रचार कर रहे हैं लेकिन उन्होंने तेलंगाना पर भी फोकस किया है। वह पिछले रविवार को तेलंगाना में थे और वहां मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव पर मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप लगा कर वादा किया कि भाजपा की सरकार बनी तो वह मुस्लिम आरक्षण खत्म कर देगी। दरअसल कर्नाटक के अलावा दक्षिण के बाकी राज्यों में भाजपा हाशिए की पार्टी है। अगले लोकसभा चुनाव में उत्तर, पश्चिम और पूर्वी राज्यों में भाजपा को कुछ सीटों के नुकसान का अंदेशा है, जिसकी भरपाई दक्षिण से करने की कोशिश हो रही है। इसीलिए दोनों शीर्ष नेता दक्षिण में ज्यादा ज़ोर लगा रहे हैं।
केजरीवाल का 45 करोड़ का खर्च
आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल हमेशा सामान्य वेश-भूषा में दिखाई देते हैं। एकदम साधारण आदमी की तरह पैंट-शर्ट और साधारण सैंडिल या सर्दी के मौसम में जूते पहनते हैं। यानी पहनावे में किसी तरह का दिखावा नहीं करते हुए वह आम आदमी होने का अहसास कराते हैं, लेकिन अपने सरकारी आवास की साज-सज्जा पर उन्होंने 45 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। यह कोई विपक्ष का आरोप नहीं है कि केजरीवाल ने अपने घर की साज-सज्जा पर इतना खर्च किया है। यह दिल्ली सरकार के लोक निर्माण विभाग का आंकड़ा है कि 2020 से 2023 के बीच उनके बंगले छह, फ्लैग स्टाफ  रोड के नवीकरण पर 44.78 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं। इसी आधार पर भाजपा ने यह मुद्दा बनाया है। उनके बंगले की साज-सज्जा पर खर्च का पूरा ब्योरा सार्वजनिक हो गया। सिर्फ  रसोई घर 1.1 करोड़ रुपये का बना है। आठ-आठ लाख के पर्दे लगे हैं। विदेश से लाया गया मार्बल लगा है। केजरीवाल यह कह कर सत्ता में आए थे कि उन्हें बंगला नहीं चाहिए, गाड़ी नहीं चाहिए, बड़ा वेतन नहीं चाहिए। लेकिन अब घर की सजावट पर 45 करोड़ खर्च करते हैं, वेतन भी बड़ा लिया है और कई गाड़ियों का काफिला उनके साथ चलता है, उनका भी रूट लगता है और ट्रैफिक रोका जाता है। यह सब पहले से हो रहा है लेकिन बंगले की सजावट के खर्च का जो ब्योरा सामने आया है, वह उनकी राजनीति पर भारी पड़ सकता है।