अमरीका में बंदूक संस्कृति पर लगाम की तैयारी

 

यह सच्चाई कल्पना से परे लगती है कि विद्या के मंदिर में पढ़ाई जा रही किताबें हिंसा की रक्त रंजित इबारत लिखेंगी? लेकिन हैरत में डालने वाली बात है कि इन हृदयविदारक घटनाओं का अमरीका में लंबे समय से सिलसिला हकीकत बना हुआ है। शैक्षिक गुणवत्ता की दृष्टि से महत्वपूर्ण माने जाने वाले देश अमरीका में क्या कारण हैं कि वह शिक्षा के जरिए अपने ही लोगों के गुस्से और कुंठाओं पर काबू पाने में नाकाम रहा है? नतीजतन अब वहां के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने बंदूक के दुरुपयोग पर लगाम के लिए एक आदेश जारी कर दिया है। इसके अंतर्गत बंदूक या अन्य व्यक्तिगत अस्त्रों की बिक्री से पहले उपभोक्ता के चरित्र की पृष्ठभूमि जांची जाएगी। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए बंदूक से जुड़ी हिंसा के परिणाम झेल चुके समुदायों के समर्थन व उनकी मांगों पर अमल के लिए एक पूरा सरकारी तंत्र गठन का निर्देश दिया है। यही नहीं बंदूक विक्रेता को भी नियमों के दायरे में लाया जाएगा। अमरीका ऐसा देश है, जहां अधिकांश परिवारों के पास विभिन्न प्रकार की बंदूकें हैं इसलिए बड़े से बड़े कुंठित स्कूली छात्र भी अपने ही स्कूल के शिक्षक और छात्रों पर हिंसा का कहर वरपा देते हैं। बावजूद अमरीका में शस्त्र कारोबारी समूह का इतना दबदबा है कि वह इस खुले कारोबार पर कोई कानूनी अंकुश नहीं लगाने देता है। लेकिन अब हथियार संस्कृति के विरुद्ध जो सामूहिक आवाज़ें बुलंद हो रही हैं, उससे लगता है, बाइडेन मंत्रिमंडल बंदूक बाज़ार को कानूनी दायरे में लाने को मजबूर हुआ है।
अमरीका में पिछले साल रॉब एलीमैंट्री प्राथमिक विद्यालय में एक 18 वर्षीय छात्र साल्वाडोर रैमोस ने अंधाधुंध गोलीबारी करके 19 छात्रों सहित 21 लोगों की हत्या कर दी थी। इस छात्र ने घर पर दादी की हत्या के बाद स्कूल में पहुंचकर यह तांडव रचा था। इस घटना के बाद अमरीका ने चार दिन राष्ट्रीय शोक मनाया था। तब अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने राष्ट्र के नाम दिए संबोधन में कहा था कि ‘स्कूल में बच्चों ने अपने मित्रों को ऐसे मरते देखा जैसे वह किसी युद्ध के मैदान में हों। एक बच्चे को खोना ऐसा है, जैसे की आपकी आत्मा का एक हिस्सा चीर दिया गया हो। बावजूद इसके क्या हमें नहीं सोचना चाहिए कि आखिर हम बंदूक संस्कृति के विरुद्ध कब खड़े होंगे और कुछ ऐसा करेंगे, जो हमें करना चाहिए।’ साफ है, संवेदनशील बाइडेन ने इसी दिन संविधान में संशोधन कर ऐसा कानून बनाने का मन बना लिया था, जिससे बंदूक रखने पर अंकुश लगे। अब बाइडेन अपनी इस मंशा के क्रियान्वयन की ओर बढ़ते दिखाई दे रहे हैं।
अमरीका गन कल्चर से उभर नहीं पा रहा है। सार्वजनिक स्थानों, विद्यालयों, संगीत समारोहों आदि में आए दिन बंदूक की आवाज़ सुनाई दे जाती है। नतीजतन यूनाइटेड स्टेट का यह बंदूक संस्कृति उसके लिए आत्मघाती दस्ता साबित हो रहा है। अमरीका में औसतन रोज़ाना 53 लोगों की गोली मारकर हत्या होती है। इन हत्याओं में से 79 प्रतिशत लोग बंदूक से मारे जाते हैं। अमरीका की कुल जनसंख्या लगभग 33 करोड़ है, जबकि यहां व्यक्तिगत हथियारों की संख्या 39 करोड़ हैं। अमरीका में हर सौ नागरिकों पर 120.5 हथियार हैं। अमरीका में बंदूक रखने का कानूनी अधिकार संविधान में दिया हुआ है। ‘द गन कन्ट्रोल एक्ट’ 1968 के मुताबिक, राइफल या कोई भी छोटा हथियार खरीदने के लिए व्यक्ति की उम्र कम से कम 18 साल होनी चाहिए। 21 वर्ष या उससे अधिक उम्र है तो व्यक्ति हैंडगन या बड़े हथियार भी खरीद सकते हैं। इसके लिए भारत की तरह किसी लाइसैंस की ज़रूरत नहीं है। इसी का परिणाम है कि जब कोरोना से अमरीका जूझ रहा था, तब 2019 से लेकर अप्रैल 2021 के बीच 70 लाख से ज्यादा नागरिकों ने बंदूकें खरीदीं। यहां घटने वाली इस प्रकृति की घटनाओं को सामाजिक विसंगतियों का भी नतीजा माना जाता है। अमरीकी समाज में नस्लभेद तो पहले से ही मौजूद है, अब बढ़ती धन-संपदा ने ऊंच-नीच और अमीरी-गरीबी की खाई को भी खतरनाक ढंग से अधिक कर दिया है। इसलिए वहां विद्यालयों में गरीब परिवार से आए छात्रों की अक्सर खिल्ली उड़ाई जाती है। जिस विद्यालय में 2022 में 21 सहपाठियों की सहपाठी ने ही हत्या कर दी थी, उसके सस्ते कपड़ों का अमीर छात्रों ने मजाक उड़ाया था। नतीजतन गरीबी को इंगित करने वाला यह उपहास 21 लोगों की मौत का कारण बन गया था। भारत में भी अमीरी-गरीबी की यह खाई लगातार विस्तृत हो रही है। एकाकी बालकों की बढ़ती संख्या भी बच्चों को कुंठा के मनोविकार में जकड़ रही है। विद्यालयों में छात्र हिंसा से जुड़ी ऐसी घटनाएं पहले अमरीका जैसे विकसित देशों में ही देखने में आती थीं, लेकिन अब भारत जैसे विकासशील देशों में भी क्रूरता का यह सिलसिला चल निकला है। हालांकि भारत का समाज अमरीकी समाज की तरह आधुनिक नहीं है कि जहां पिस्तौल अथवा चाकू जैसे हथियार रखने की छूट छात्रों को हो। अमरीका में तो ऐसी विकृत संस्कृति पनप चुकी है, जहां अकेलेपन के शिकार एवं मां-बाप के लाड-प्यार से उपेक्षित बच्चे घर, मोहल्ले और संस्थाओं में जब-तब पिस्तौल चला दिया करते हैं। आज अभिभावकों की अतिरिक्त व्यस्तता और एकांगिकता जहां बच्चों के मनोवेगों की पड़ताल करने के लिए दोषी है, वहीं विद्यालय नैतिक और संवेदनशील मूल्य बच्चों में रोपने में सर्वथा चूक रहे हैं। छात्रों पर विज्ञान, गणित और वाणिज्य विषयों की शिक्षा का बेवजह दबाव भी बर्बर मानसिकता विकसित करने के लिए दोषी है। 
वैसे मनोवैज्ञानिकों की मानें तो आम तौर से बच्चे आक्रामकता और हिंसा से दूर रहने की कोशिश करते हैं। लेकिन घरों में छोटे पर्दे और मुट्ठी में बंद मोबाइल पर परोसी जा रही हिंसा, अश्लीलता और सनसनी फैलाने वाले कार्यक्रम इतने असरकारी साबित हो रहे हैं कि हिंसा का उत्तेजक वातावरण घर-आंगन में विकृत रूप लेने लगा है। यही बालमनों में संवेदनहीनता का बीजारोपण कर रहा है। मासूम और बौने से लगने वाले कार्टून चरित्र भी पर्दे पर बंदूक थामे दिखाई देते हैं, जो बच्चों में आक्रोश पैदा करने का काम करते हैं। कुछ समय पहले दो किशोर मित्रों ने अपने तीसरे मित्र की हत्या केवल इसलिए कर दी थी कि वह उन्हें वीडियो गेम खेलने के लिए तीन सौ रुपए नहीं दे रहा था। लिहाजा छोटे पर्दे पर लगातार दिखाई जा रही हिंसक वारदातों के महिमामंडन पर अंकुश लगाया जाना भी ज़रूरी है। यदि बच्चों के खिलौनों का समाजशास्त्र एवं मनोवैज्ञानिक ढंग से अध्ययन तथा विश्लेषण किया जाए तो हम पाएंगे की हथियार और हिंसा का बचपन में अनधिकृत प्रवेश हो चुका है। इसीलिए मामूली बातों में आवेश में आकर बंदूक चला देने के पीछे हाथ में हथियार होना दिमाग में हिंसा का मनोविज्ञान यकायक रच देता है। हिंसा की यह विकृत क्रूरता तब और आसान हो जाती हैए जब हथियार की उपलब्धता भी सुगम बना दी गई हो गई हो? इसलिए बंदूक के क्रय-विक्रय कानून बदलने की मांग पर अमल का संकल्प बाइडेन ने लिया है तो उसे अंजाम तक पहुंचना ही चाहिए।

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