गले की फांस बनता फैसला


पंजाब की आम आदमी पार्टी की भगवंत मान सरकार की ओर से सरकारी कार्यालयों का समय बदले जाने का फैसला लागू होने के बाद पहले ही दो दिनों में जहां इसके विवादास्पद हो जाने की आशंकाएं की बलवती हुई हैं, वहीं इस कवायद से लाभ की बजाय हानि होने की सम्भावनाएं भी बढ़ी हैं। नि:संदेह सरकार के परामर्शदाताओं ने जिन उम्मीदों और आशाओं के दृष्टिगत इस समय-सारिणी को बदले जाने की सलाह दी होगी, उसके भी विपरीत परिणाम निकलने की ही स्थितियां बनते हुए दिखाई देती हैं। यह भी पता चलता है कि जिस गुणा-भाग को जोड़ कर आम आदमी पार्टी की सरकार ने यह फैसला किया है, यह सारा गणित ही विपरीत दिशा की ओर चलते दिखाई देता है, और कि इससे बचत होने जैसी कोई भी उम्मीद बर आते दिखाई नहीं देती। सरकार ने इस फैसले के लिए एकमात्र तर्क यह दिया है कि इससे बिजली की बचत होगी। चूंकि सुबह-सवेरे मौसम में इतनी ऊर्जा अथवा गर्मी नहीं होती, अत: दफ्तरों में वातानुकूलन उपकरण न चलने से बड़ी सीमा तक बिजली की बचत होगी। स्वयं मुख्यमंत्री भगवंत मान ने यह स्वीकार किया है कि इस फैसले के पीछे एकमात्र कारण बिजली की बचत करना है। स्वयं मुख्यमंत्री के अनुसार इससे प्रतिदिन 350 मैगावाट बिजली की बचत होने की सम्भावना है। गर्मी के मौसम में चूंकि प्रदेश भर में अक्सर बिजली की खपत बढ़ जाया करती है, अत: दफ्तरों का कार्यकाल डेढ़ घंटा कम हो जाने से भी बिजली की जो बचत होगी, उससे सरकारी राजस्व पर खर्च का बोझ कम होगा।
तथापि, हम समझते हैं कि यह कल्पना हवा में घोड़े दौड़ाने जैसी ही हो सकती है। पंजाब के सरकारी कार्यालयों में जिस प्रकार की संस्कृति का प्रचलन है, उसके अनुसार प्रदेश की सड़कों पर रातों को तो बल्ब और ट्यूबलाईट नहीं जलने से अन्धेरा छाया रहता है, किन्तु दिन को जगह-जगह स्ट्रीट लाईट्स की रोशनी जगमगाते रहती है। अक्सर यह भी होता है कि कर्मचारी रोशनी करके आराम ़फरमाने लगते हैं, और स्ट्रीट लाईट्स सड़कों पर दिन-रात जलती रहती है। सरकारी कार्यालयों में यह भी देखा गया है कि प्राय: अधिकारियों एवं कर्मचारियों के आने से पहले ही कमरों को गर्मियों में ठंडा और सर्दियों में गर्म रखने की संस्कृति और परम्परा रही है। सरकारी कार्यालयों की समय-सारिणी बदल दिये जाने से इस संस्कृति और परम्परा पर कोई बड़ा अंकुश लग सकेगा, अथवा इससे सरकारी कोष पर पड़ने वाले प्रभाव को कहीं से भी कम किया जा सकेगा, इसकी सम्भावना कुछ अधिक बनते दिखाई नहीं देती। कर्मचारी और अधिकारी दोपहर बाद घरों में पहुंचेंगे, तो पूरी शक्ति के साथ पंखे और कूलर भी चलेंगे, तथा एयर-कंडीशनर भी प्रयुक्त होंगे। इससे घरेलू धरातल पर बिजली की खपत तीव्र गति से बढ़ेगी क्योंकि लोगों को मालूम है, कि दो मास में 600 यूनिट तक बिजली मुफ्त मिलनी है। अलबत्ता आम आदमी पार्टी की सरकार के इस पग से आम आदमी को ही इसका नुक्सान भरना पड़ सकता है। नि:सन्देह इससे उसका बिजली बिल 600 यूनिट से बढ़ जाएगा उसे पूरे बिल की अदायगी करनी पड़ सकती है। यह भी हो सकता है, कि इससे प्रदेश में बिजली की चोरी भी बढ़ जाए। लोग अपने घरेलू बिल को कम दिखाने के लिए अतिरिक्त ़गैर-कानूनी तरीके अपनाने की ओर अग्रसर हो सकते हैं।
इस फैसले का दूसरा बड़ा नुक्सान भी आम आदमी का ही होगा। सरकारी कार्यालयों में छोटे-मोटे कामों के लिए अक्सर दूर-दराज के क्षेत्रों अथवा गांवों से आने वाले लोग इससे पूर्व प्राय: खाना आदि खा कर ही आया करते थे, क्योंकि पंजाब के सरकारी कार्यालयों की यह भी परिपाटी रही है कि यहां चुटकी बजाने से कभी कोई काम नहीं होता। अब होगा यह, कि जब तक गांव का आम आदमी शहरी दफ्तरों में पहुंचेगा, तब तक सरकारी बाबू अपनी ड्यूटी निपटा चुका होगा। इससे दफ्तरों में फरलो और आराम-परस्ती की प्रवृत्ति भी बढ़ेगी। बाबू लोग काम से पहले चाय-पानी लेने और फिर दोपहर में भोजनावकाश के अभ्यस्त होते हैं। अब सवेरे चाय-पानी, फिर नाश्ता और फिर दो बजे छुट्टी से पूर्व भोजनावकाश से समय की कद्र घटेगी। इस फैसले के बावजूद सरकारी अस्पतालों और सुविधा केन्द्रों में समय नहीं बदला। इससे ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों को दो-दो बार घर से निकलना पड़ सकता है, अथवा दिन भर प्रतीक्षारत रहने की नौबत आ सकती है। सरकारी दफ्तरों के बाहर और भीतर पलने वाले सैकड़ों-हज़ारों छोटे-छोटे उद्योग-धंधे भी सरकार के इस एकपक्षीय नादिरशाही फैसले से प्रभावित हो सकते हैं। दफ्तरों का समय बदलने के साथ ही, समय के सदुपयोग की नई संस्कृति को स्थापित करना भी सरकार के लिए समस्या होगी। यह भी ध्यान रखना होगा, कि पंजाब में सरकारी कार्यालयों से तीन गुणा अधिक निजी कार्यालय हैं, बड़ी इकाइयां हैं, मल्टी-स्टोर हैं, बड़े शो-रूम हैं। उनके बिजली-उपयोग पर अंकुश कैसे लगेगा। तथापि, दो बजे के बाद से घरेलू और व्यवसायिक धरातल पर बिजली कट लगाने का बहाना अवश्य सरकार को मिल सकता है।  
इस नये फैसले के दुष्परिणाम सामने आने भी लगे हैं। रजिस्ट्रियां कम होने से राजस्व आय में कमी दर्ज की गई है। सुबह-सवेरे सड़कों पर आवागमन और वाहनों की तीव्र आवाजाही से दुर्घटनाओं का ़खतरा भी बढ़ेगा। सबसे बड़ी बात यह है कि आम लोगों के सरकारी काम होने की सीमा और गति अवश्य प्रभावित होंगी। इससे दफ्तरों में पहले से व्याप्त मेज के नीचे वाले हाथ से काम करने की संस्कृति को  बल मिलेगा। पंजाब में एक बार पहले भी एक सरकार ने ऐसा फैसला किया था। वह भी कारगर सिद्ध नहीं हुआ था। हम समझते हैं कि अब भी हवाई घोड़ों पर सवार होकर किया गया यह फैसला कहीं पंजाब की आम आदमी पार्टी की सरकार के गले की फांस न बन जाए, यह देखने वाली बात होगी।