देश के विकास हेतु प्रतिभा-पलायन को रोका जाना चाहिए

हमारे देश में प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं है।  बहुत सारे उम्दा और अच्छे भारतीय डॉक्टर्स को विदेशों में काम करते हुए देखा गया है। वहां वे नाम और शौहरत हासिल करते हैं। यह भारत के लिए गर्व की बात है। हमारे देश में एक से बढ़कर एक प्रतिभाएं हैं। इस विषय पर सरकारों को सोचने की आवश्यकता है।  सोचना यह है कि देश की प्रतिभाएं देश में काम न करके विदेशों में काम क्यों कर रही हैं। अगर देश की प्रतिभा बाहर चली जाए तो उसे प्रतिभा पलायन कहते हैं। प्रतिभा पलायन एक बहुत बड़ी समस्या है। जिन लोगों के पास प्रतिभा है और वे तरक्की करना चाहते है, उन्हें अधिक सुविधाएं चाहिएं। उन्हें जो वेतन और तरक्की चाहिए, वह उन्हें अपने देश में नहीं मिलती। यही वजह है कि वे विदेश चले जाते हैं। देश के प्रतिभाशाली लोग विदेश जाने के लिए मौके की तलाश में रहते हैं।
अच्छे डॉक्टर, इंजीनियर व अन्य शिक्षित लोग पश्चिमी देशों में जाकर बस गए हैं ताकि उन्हें सुख-सुविधाओं वाली ज़िन्दगी मिल सके। कुछ नोबेल पुरस्कार विजेताओं के कई नाम हमें मिल जाएंगे जो वास्तव में भारतीय है, लेकिन उन्होंने पश्चिमी देशों में रहना ही पसंद किया है। अनेक युवा उच्च शिक्षा के लिए विदेश जाना पसंद करते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि जो शिक्षा उन्हें वहां मिलेगी, वह भारत में मिलना संभव नहीं है। 
भारत से पलायन कर अमरीका, कनाडा और आस्ट्रेलिया जाने वाले भारतीय वहां स्थायी तौर पर रहने लग जाते हैं। ब्रिटेन, सऊदी अरब, कुवैत, संयुक्त अरब अमीरात, कतर और सिंगापुर आदि देशों में भी भारी संख्या में भारतीय बसे हुए हैं। गृह मंत्रालय के अनुसार 1.25 करोड़ भारतीय नागरिक विदेश में रह रहे हैं, जिनमें 37 लाख लोग ओसीआई यानी ओवरसीज सिटीज़नशिप ऑफ  इंडिया कार्डधारक हैं। उन्हें भी वोट देने, देश में चुनाव लड़ने, कृषि सम्पत्ति खरीदने या सरकारी कार्यालयों में काम करने का अधिकार नहीं होता। पढ़ाई, बेहतर कॅरियर, आर्थिक संपन्नता और भविष्य को देखते हुए भारत से बड़ी संख्या में नौजवान विदेश का रुख करते हैं। पढ़ाई के लिए विदेश जाने वाले लोगों में से करीब 80 प्रतिशत लोग वापस भारत नहीं लौटते। कॅरियर की संभावनाओं को देखते हुए और अच्छे अवसर मिलने के कारण वे विदेश में ही बस जाते हैं।
भारत जब आर्थिक तौर पर सशक्त बन रहा है, महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर है, देश की नीतियों की दुनिया में सराहना हो रही है, विकास की अनंत संभावनाएं उजागर हो रही हैं, तो इन सकारात्मक स्थितियों के बीच ऐसे क्या कारण हैं कि नागरिक एवं प्रतिभा पलायन जारी है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय और एसोचैम जैसे संस्थानों को इस बात पर ध्यान देने कि ज़रूरत है कि इसे कैसे रोका जाए। प्रतिभा पलायन अब निश्चित रूप से घाटे का सौदा बनता जा रहा है। इस रोकने के लिए आईआईटी और आईआईएम जैसे और संस्थान स्थापित किए जाने की ज़रूरत है। विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत में अपने कैम्पस खोलने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। उन्हे रियायतें और मूलभूत सुविधाएं दी जानी चाहिएं जिससे हमारे देश का शिक्षा स्तर ऊंचा हो। इससे प्रतिभा पलायन पर भी लगाम लगेगी। देश में अच्छे  उच्च शिक्षा प्राप्त लोगों को योग्यता के अनुसार अच्छी नौकरी मिलनी चाहिए।  अगर देश में अवसरों और सुविधाओं की कमी ना होती तो कल्पना चावला अपने देश में रहकर शिक्षा प्राप्त कर पाती। वह अपने देश में सपने पूरे ना कर पाती, इसकी वजह है सुविधाओं की कमी। इसलिए ज़्यादातर लोग अच्छी सुविधाओं की वजह से अमरीका और पश्चिमी देशों में चले जाने को विवश है। भारत में हर साल कई कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर इंजीनियर आदि बनकर निकलते है। सबको अपने मन मुताबिक नौकरी नहीं मिल पाती है। इसलिए वह अच्छी और अपनी योग्यता के अनुसार नौकरी करना चाहते हैं। इसके लिए वह उन्नत देशों जैसे कनाडा, अमरीका, ऑस्ट्रेलिया की ओर रुख कर लेते है। 
भारत से पलायन कर अमरीका जाने वाले 44 प्रतिशत भारतीय वहां की नागरिकता हासिल कर वहीं बस जाते हैं। कनाडा और आस्ट्रेलिया जाने वाले 33 प्रतिशत भारतीय भी ऐसा ही करते हैं। ब्रिटेन, सऊदी अरब, कुवैत, संयुक्त अरब अमीरात, कतर और सिंगापुर आदि देशों में भी बड़ी संख्या में भारतीय बसे हैं। गृह मंत्रालय के अनुसार 1.25 करोड़ भारतीय नागरिक विदेश में रह रहे हैं।
 देश में एक से बढ़कर एक प्रतिभाएं हैं। उन्हें अपने देश में इतनी अहमियत नहीं मिलती है। इसलिए उन्हें विदेशों का रुख करना पड़ता है, लेकिन अब प्रतिभा पलायन को रोकना अनिवार्य हो गया है। यह देश के लिए बहुत बड़ी चुनौती है।  देश में बेरोज़गारी और आर्थिक समस्याओं की वजह से युवाओं को अपने प्रतिभा दिखाने का मौका नहीं मिलता। 
-मो. 92212-32130